तीन पीढ़ियों के महाबलिदानी -गुरू गोविन्द सिंहजी



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विनोद बंसल

दुनिया में देश व धर्म की रक्षार्थ अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले महा पुरुष तो अनेक मिलेंगे किन्तु अपनी तीन पीडियोंबल्कि यों कहें कि अपने पूरे वंश को इस पुनीत कार्य हेतु बलिदान करने वाले विश्व में शायद एकमेव महा-पुरुष गुरू गोविन्द सिंह जी महाराज ही होंगे. दिल्ली के चाँदनीचौक के प्रसिद्ध गुरुद्वारे का तो नाम ही शीशगंज गुरुद्वारा इसीलिए पडा कि वहां पर मुगलों ने गुरु तेग बहादुर के शीश को इसी स्थान पर उनके धड से अलग कर दिया था क्योंकि वे किसी भी कीमत पर धर्मांतरण को तैयार नहीं थे.

पिता (गुरू तेगबहादुर जी) का दिन-रात देश औरसमाज का चिन्तन तथा धर्म रक्षा का संकल्प बालक के मन को अन्दर तक छू रहा था। एकदिन गुरू तेगबहादुरजी कश्मीरी पंडितों पर हुएमुगलों के अमानवीय अत्याचारों की कथा सुनते-सुनते कहने लगे - इस समय धर्म रक्षा काएक ही उपाय है कि कोई बड़ा धर्मात्मा पुरूष बलिदान दे। यह बात बालक गोविन्द बड़ेध्यान से सुन रहे थे। सभी लोग विषय कीगम्भीरता को देख मौन थे। अचानक बालक गोविन्द बोल पड़ा - पिताजी, आज के समयमें आप से बढ़कर दूसरा महात्मा व धर्मात्मा पुरूष और कौन हो सकता है। नौ वर्षीयबालक के इस उत्तर पर गुरू तेगबहादुर बहुत प्रसन्न हुए।

     मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी सन्1675 को पिता के बलिदान के पश्चात बालक गोविन्द नौ वर्ष तक आनन्दपुर साहिब में रहे जहाँ उन्होंने अपनी भावी जीवन की योजना बनाई। अपने बलिदान से पूर्व गुरू तेगबहादुर ने यहीं पर उन्हें गुरुता गद्दी प्रदान करते हुए देश, धर्म व दुखी जनता का उद्धार करने का आशीर्वाद दिया। बालक गोविन्द से गुरू गोविन्द बने दशम गुरू ने सिख समुदाय को हुक्मनामे भेज-भेज कर अस्त्र, शस्त्र और धन एकत्रित किया तथा सामाजिक धारा को क्रांतिकारी रूप देने के लिए एक छोटी सेना भी बनाई।

     भारत में मुगल शासकों के निरन्तर बढ़ते आक्रमणों से देश औरधर्म को बचाने के लिए सन्1699 में बैसाखी के दिन गुरू गोविन्द सिंहजी ने अपने अनुयाइयों की एक विशाल सभा बुलाईजिसे सम्बोधित करते हुए उन्होंने हाथ में नंगी तलवार लेकर प्रश्न किया किहै कोई, जो धर्मके लिए अपने प्राण दे सके?उनकी इसप्रेरणादायक ललकार को सुनकर बारी-बारी से दयाराम खत्री(लाहौर), धर्मदासजाट(दिल्ली), मोहकतचंद धोबी(द्वारिका), हिम्मतसिंह रसोइया(जगन्नाथ पुरी)तथा साहब चंद नाई(बिहार) से अग्रसर हुए। फ़िर क्या था, सारा निश्तेजसमाज ऊर्जावान होकर उठ खड़ा हुआ। उन्होंनेयहीं पर जात-पात के भेदभाव में बिखरे हिन्दू समाज कोसंगठितकर खालसा के रूप मेंखड़ा किया और इस प्रकार13 अप्रेल 1699 ई को पंजाब के आनन्दपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना हुई।

खालसाका अर्थ है खालिस अर्थात शुद्ध। इसकेलक्षण पूछने पर दशमेश गुरू ने कहा कि खालसा वह है जिसने काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकारपर काबू पा लिया हो तथा अभिमान, पर-स्त्री गमन, पर-निन्दातथा मिथ्या विश्वासों के भ्रमजाल से सदा दूर रहता हो। जो दीन दु:खियों की सेवा वदुर्जन-दुष्टों का विनाश कर निरन्तर श्रध्दापूर्वक प्रभु नाम के जप में लीन रहताहो। खालसा को चरित्रवान व पराक्रमी बनाये रखने के लिए उन्होनें पांच ककार धारणकरने के लिए कहा। ये हैं:1. कृपाण2. केश3. कंघा, 4. कच्छा व5. कड़ा।

     पौष शुक्ल सप्तमी को पटना साहिब में प्रकट हुए गुरू गोविन्द सिंहजी एक बड़े समाज सुधारकथे। सती प्रथा, कन्या वध, अस्पृश्यता (छूआ-छूत) इत्यादिसामाजिक बुराईयों से दूर समानता पर आधारित सामाजिक संरचना के वे पक्षधर थे। वीरताव पराक्रम में उनका मुकाबला नहीं था।

औरंगजेब समर्थक, पंजाब के पर्वतीय नरेशों को, भंगाणी के युध्द में पराजित किया और1703 मेंउन्होंने चमकौर के युध्द में केवल40 सिखोंकी सहायता से मुगलों कीविशाल सेना के छक्के छुड़ा दिएथे। इसमें गुरू गोविन्द सिंहके दो बड़े पुत्रों अजीत सिंह व जुझार सिंह के साथ पांच प्यारों में से तीन प्यारेशहीद हो गये।

सन्1703 में सरहिन्द के नवाब वजीर खाँ ने उनके दो छोटे पुत्रों जोरावरसिंह और फतेह सिंह को, इस्लाम स्वीकार न करने के कारणदीवार में जीवित चिनवा दिया। चारों पुत्रों और पत्नी की क्रूर हत्या होने केबावजूद भी गुरूजी एक महान योगी की तरह बिल्कुल भी विचलित नहीं हुए,1706 मेंउन्होंने खिदराना का युध्द लड़ा। 

वे महान योद्धातो थे ही, संगीत, साहित्य व कला के क्षेत्र मेंभी उनकी गहरी रूचि थी। वेरचनाकार कवि भी थे। उनके द्वारा रचित दशम ग्रन्थ हैं जिसमें - जापु साहेब, अकालस्तुति, विचित्र नाटक, चण्डीचरित्र, चण्डी दीवार, जफरनामा, चौबीस अवतार, ज्ञान प्रबोध आदि प्रमुखहैं। उनके दरबार में52 कवि थे।उन्होंने अपने बाद श्रीगुरुग्रन्थ साहेब को गुरूमानने का आदेश देकरगुरुतागद्दी पर आसीन किया।सन् 1666 में पटना में जन्मे प्रकाश पुंज(गुरूजी) ने सन्1708मेंनांदेड़ में गोदावरी के तट पर देह त्याग कर स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया। उनकेद्वारा जलाई गई स्वतन्त्रताकी ज्योति तथा अन्याय केविरुद्धलड़ने की भावना आज भीविश्वके लिए प्रेरणा स्त्रोतहै।गऊ रक्षा के लिए उनका मत था

'यही दे हु आज्ञा तुरकन गहि खपाऊं,गऊ घात का दोख जगसों मिटाऊं।

-उग्रदन्ती

अर्थात्,हे मां भवानी, मुझेआशीर्वाद और आदेश दे कि धर्म विरोधी अत्याचारी तुर्कों को चुन-चुनकर समाप्त कर दूंऔर इस जगत से गौ हत्या का कलंक मिटा दूं। वे देवी दुर्गाभवानी के अनन्य उपासक थे।'खालसा' सृजन सेपहले उन्होंने शक्ति यज्ञ का अनुष्ठान किया था। उनकी इच्छा थी कि

सकल जगत मो खालसा पंथगाजै,जगै धरम हिन्दुक तुरक दुंद भाजै।

                                                -उग्रदन्ती

अर्थात्, सारे जगतमें खालसा पंथ की गूंज हो, हिन्दू धर्म का उत्थान हो तथातुर्कों द्वारा पैदा की गईविपत्तियां समाप्तहों।

अपने नाम के तीनों शब्द ‘गुरु’,‘गोविन्द’ व‘सिंह’ को शब्दश: चरितार्थ कर देश, धर्म, इतिहास, संस्कृति व स्वाभिमान की रक्षार्थ ज्ञान के भण्डार एक श्रेष्ठ गुरु, गोविन्दकी राह के पथ प्रदर्शक तथा सिंह गर्जना के साथ शत्रुओं के छक्के छुडा देने वाले गुरू गोविन्द सिंह जी यदिनहीं होते तो मुगलों के अत्याचार के आगे विवश समस्त हिन्दू समाज इस्लाम स्वीकार कर स्वधर्म, स्वराज व स्वाभिमान को सदा के लिए तिलांजलि दे चुका होता। ऎसी महान  विश्वात्मा कोउनकी 355वीं जयंती पर शत्शत्नमन.

 

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