धनौरी वेटलैंड में जल कुंभी की सफाई को लेकर प्राधिकरण और वन विभाग में रार
(यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में)
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-राजेश बैरागी-
यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यीडा) क्षेत्र में धनौरी स्थित एकमात्र आर्द्र भूमि (वेटलैंड) एक बार फिर चर्चाओं में है। इस आर्द्र भूमि में भरे रहने वाले जल में अप्रत्याशित रूप से उगने वाली जल कुंभी को निकालने को लेकर यमुना प्राधिकरण और वन विभाग आमने-सामने आ गए हैं। प्राधिकरण के खर्चे पर पिछले दो वर्षों में वन विभाग द्वारा की गई जलकुंभी की सफाई से प्राधिकरण संतुष्ट नहीं है तो उधर वन विभाग का दावा है कि उसके द्वारा किया गया काम पर्यावरण की दृष्टि से एकदम सही है। दोनों के बीच पैदा हुए इस झगड़े को सुलझाने के लिए प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक डॉ फैयाज खुदसर को आमंत्रित किया गया है।
गौतमबुद्धनगर जनपद के दनकौर कस्बे से सात आठ किलोमीटर दूर धनौरी वेटलैंड 112.89 हेक्टेयर में फैला हुआ है। प्राकृतिक रूप से यह भूमि वर्ष भर पानी से आच्छादित रहती है। यहां भरे रहने वाले पानी में स्वाभाविक रूप से जलकुंभी जन्म लेती है और काफी बड़े भाग को ढंक लेती है। पिछले कुछ वर्षों में यहां जलकुंभी का अप्रत्याशित उत्पादन हो रहा है जिससे इस आर्द्र भूमि पर निवास करने वाले जलीय जीवों तथा प्रवासी पक्षियों के रहन-सहन में समस्या आ रही है।
दो वर्ष पहले जलकुंभी को निकालने के लिए यमुना प्राधिकरण द्वारा जिला वन विभाग को नब्बे लाख रुपए भुगतान किया गया था। इस धनराशि में वन विभाग ने पांच वर्षों तक प्रतिवर्ष दो बार जलकुंभी के समूल नाश की जिम्मेदारी ली थी।वन विभाग कहता है कि उसने नियमानुसार सही काम किया है। परंतु प्राधिकरण ऐसा नहीं मानता। यमुना प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी डॉ अरुणवीर सिंह कहते हैं कि वन विभाग ने मात्र साढ़े तीन हेक्टेयर भूमि से जलकुंभी हटाई है जिससे जलकुंभी को हटाने का लक्ष्य बहुत दूर चला गया है। वो वन विभाग पर काम में लापरवाही और एक प्रकार से धोखाधड़ी का आरोप लगाते हैं। उधर जिला वन अधिकारी पी के श्रीवास्तव बताते हैं कि उनके द्वारा पिछले दो वर्षों में धनौरी वेटलैंड में आवश्यकता के अनुसार जलकुंभी की सफाई कराई गई है। हालांकि वे मानते हैं कि इस क्षेत्र में जलकुंभी का पुनरुत्पादन न्यूनतम समय में हो रहा है। प्राधिकरण और वन विभाग के बीच मची इस रार के पीछे इस संबंध में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण में चल रहे एक मुकदमे में न्यायाधिकरण द्वारा अपनाया गया सख्त रुख भी एक बड़ा कारण है।
एनजीटी ने हाल ही में सुनवाई के दौरान धनौरी वेटलैंड में जलकुंभी की सफाई न किए जाने को लेकर प्राधिकरण और वन विभाग को न केवल फटकार लगाई बल्कि इस संबंध में किए जा रहे कार्यों के संबंध में रिपोर्ट भी तलब की है। एनजीटी की फटकार के असर में प्राधिकरण और वन विभाग,दोनों ने ही प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक डॉ फैयाज खुदसर को पत्र लिखकर आमंत्रित किया है। डॉ खुदसर शीघ्र ही इस वेटलैंड का दौरा कर जलकुंभी के निस्तारण के लिए उपाय सुझाएंगे। उल्लेखनीय है कि इस वेटलैंड की अधिकांश भूमि संबंधित किसानों के पास है। यमुना प्राधिकरण ने केवल 25 हेक्टेयर भूमि का ही अधिग्रहण किया है। प्राधिकरण द्वारा यहां सेक्टर 16 का के ब्लॉक विकसित करना था।यहां धनौरी,ठसराना आदि चार गांवों के किसान अपनी भूमि पर खेती करते हैं। इसमें काफी भूमि एल एम सी की भी बताई जाती है। किसान बिना अधिग्रहण अपनी भूमि पर किसी भी प्रकार के सरकारी कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं। किसानों के विरोध के चलते भी जलकुंभी का सफाई कार्य नहीं हो पाता है।(नेक दृष्टि)