बजट में दिल्ली के अधिकांश कामगारों की समस्या का समाधान नहीं


 

नई दिल्ली। 
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, जिनके पास वित्त विभाग भी है, उनके द्वारा प्रस्तुत बजट में दिल्ली के अधिकांश कामगारों की समस्या का समाधान नहीं किया गया है। दिल्ली के संयुक्त ट्रेड यूनियनों ने बजट पेश किए जाने से कई दिन पहले ही मुख्यमंत्री के समक्ष अपनी मांगें रखी थीं। इसमें 60 वर्ष से अधिक आयु के सभी असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए सामाजिक कल्याण पेंशन, शहरी रोजगार गारंटी योजना, न्यूनतम मजदूरी में संशोधन, औद्योगिक सुरक्षा के लिए आवंटन, राशन प्रणाली को मजबूत करने और महिला कामगारों के लिए समान मजदूरी, सुरक्षित और व्यवहार्य परिवहन सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की मांग की गई थी।
सीटू द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार अपने बढ़ते गिग वर्कफोर्स, वेंडर्स और असंगठित क्षेत्र के कामगारों के संदर्भ में यह बजट कोई राहत नहीं देता। यदि सरकार अपने नागरिकों के कल्याण का ख्याल रखने वाला विकास प्रशासन स्थापित करना चाहती है, तो सभी क्षेत्रों में खाली पड़े सरकारी पदों को भरा जाना चाहिए था। एक तरफ पी.एम.जे.ए.वाई  के लिए जोर देने से निजी स्वास्थ्य प्रदाताओं को प्रोत्साहन मिलता है, वहीं दूसरी तरफ इसके महत्वाकांक्षी 10 लाख रुपये के कवरेज के लिए पर्याप्त आवंटन नहीं होता है। वर्तमान आवंटन न तो 5 लाख रुपये के कवरेज में राज्य सरकार के 40 प्रतिशत हिस्से को पूरा करता है और न ही उसी राशि के लिए टॉप अप को, जिसे राज्य द्वारा 100 प्रतिशतः वित्तपोषित किया जाना चाहिए।
विज्ञप्ति के अनुसार बहुप्रचारित महिला समृद्धि योजना केवल 17 लाख महिलाओं को कवर करेगी, जो चुनावी वादे से बहुत कम है। जहां झुग्गी वहां मकान का वादा करने वाली पार्टी द्वारा झुग्गी विकास के लिए किया गया आवंटन मात्र 696 करोड़ रुपये है, जबकि दिल्ली में डीयूएसआईबी के तहत 675 जे.जे स्लम बस्तियों के 2 लाख से अधिक परिवारों की आवश्यकता है। गरीब तबके के लिए दो मुफ्त एल.पी.जी सिलेंडर और 500 रुपये प्रति सिलेंडर के वादे पर बजट चुप है। वादा किया गया कल्याण बोर्ड भी केवल कागजों पर ही रहेगा क्योंकि इसके प्रारंभिक कार्य के लिए भी कोई आवंटन नहीं है। इस सरकार ने दिल्ली की चरमराती राशन व्यवस्था के लिए कोई आवंटन नहीं किया है। संक्षेप में कहें तो मेहनतकश जनता के पास जनविरोधी बजट के खिलाफ सड़कों पर उतरने का ही विकल्प है।

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