सच्चा भक्त वही है जो भगवान के प्रेम में इतना डूबा हो कि उसे अपने दर्द या पीड़ा का पता ही न चले, दरअसल यहां सारा खेल प्रेम और पीड़ा का है: स्वामी आद्यानंद



कृष्ण बिहारी मिश्रा

सच्चा भक्त वही है जो भगवान के प्रेम में इतना डूबा हो कि उसे अपने दर्द या पीड़ा का पता ही न चले, दरअसल यहां सारा खेल प्रेम और पीड़ा का है, जिसने इस खेल को समझ लिया, वह सबकुछ छोड़कर भगवान में डूब गया। समझ में नहीं आया, वह भगवान से दूर होता चला गया। स्वामी आद्यानंद गिरि ने यह बातें आज रविवारीय सत्संग के दौरान नोएडा में योगदा भक्तों के बीच कहीं। जिसका ऑनलाइन प्रसारण रांची के योगदा सत्संग आश्रम में भी हो रहा था, जिसे ऑडिटोरियम में रांची के योगदा भक्त मानयोग से सुन रहे थे।

स्वामी आद्यानंद गिरि ने विश्वास और स्मरण- शाश्वत प्रेम का मार्ग विषय पर विभिन्न प्रकार की आध्यात्मिक कथाओं से भक्तों को समझाने में सफलता पाई। उन्होंने कहा कि नौवीं शताब्दी में एक सूफी संत थे, जिनका नाम इब्राहिम था। उनके पास एक गुलाम आया और कहा कि वह उनकी सेवा करेगा। इब्राहिम ने दास से पूछा कि तुम उसके लिए क्या करोगे? दास ने कहा कि वह उनके लिए अच्छा खाना बनाएगा और जो वह कहेंगे, वही करूंगा? इब्राहिम ने फिर पूछा और तुम अपने लिए क्या करोगे? उन्होंने कहा, उसका दास क्या है, दास को क्या चाहिए, अपने स्वामी की सेवा के अलावा। उक्त दास की बातों से इब्राहिम विचलित हो गए। उन्होंने कहा कि वह एक दास है, जो प्रभु की सेवा के अलावा, अपने बारे में नहीं सोचता है, और एक हम हैं जो प्रभु की सेवा के फल के लिए अभी भी झुके हुए हैं। ऐसे में वह हमसे बेहतर दास है। हमने इस समर्पण के साथ अपने प्रभु की सेवा कभी नहीं की। आद्यानंद गिरि ने कहा कि विश्वास समर्पण का आधार है। उन्होंने कहा कि प्रभु के लिए सबकुछ त्यागने से व्यक्ति ईश्वर के करीब पहुंच जाता है और त्याग वह त्याग है, जो आनंद लाता है। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता के 16वें अध्याय में, जिसमें पहला, दूसरा और तीसरा श्लोक है, केवल 26 गुण हैं जो हमें देवत्व की ओर ले जाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि निर्भय वह है जो ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को सदैव भगवान से प्रार्थना करते रहना चाहिए। याद रखें यदि हम भगवान से प्रेम करते हैं तो हमें कभी भी अविश्वसनीय नहीं होना चाहिए। जिनके हृदय में आस्था होती है, वे भक्त शीघ्र ही भगवान के पास पहुंच जाते हैं, क्योंकि आस्था आपको समर्पण के करीब ले जाती है। याद रखें हमें भगवान के सामने कभी भी कुछ नहीं मांगना चाहिए। भगवान आपको बिना मांगे ही वह दे देंगे जिसकी आपको आवश्यकता है। कई बार आप कुछ चाहते हैं, लेकिन भगवान आपको कुछ और देना चाहते हैं। जैसे एक सज्जन भगवान से बार-बार मारुति मांग रहे थे, तो भगवान ने उन्हें मारुति दे दी। जब भगवान उस सज्जन के सपने में आए और कहा कि मैं आपको बीएमडब्ल्यू देना चाहता था, लेकिन आप मारुति में खुश हैं, तो मैं क्या कर सकता हूं। इसलिए हमने आपको मारुति दे दी। उन्होंने कहा कि भगवान से कुछ भी मांगना लाभ कम, हानि ज्यादा है, क्योंकि जो भगवान आपके आने से पहले ही आपके लिए सारी व्यवस्था कर देते हैं, वे आपकी सामान्य आवश्यकताओं को कैसे पूरा नहीं करेंगे और आपको समस्याओं से घिरा हुआ कैसे देखेंगे। हमेशा याद रखें। भगवान हमें वही चीज देते हैं, जिसमें हमारा कल्याण भी शामिल है। उन्होंने कहा कि जहां सच्ची लगन होती है, वहां जीवन के सभी संघर्ष समाप्त हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने कई लोगों को देखा है जो अपने दर्द को जाने भी नहीं देते, समय-समय पर अपने दुखों को अपने बीच रखकर सहानुभूति चाहते हैं, यह सही नहीं है। ऐसे लोगों को कभी आनंद नहीं मिल सकता। गुरु जी कहते हैं कि अगर आपको कोई दर्द है तो सबसे पहले खुद उन समस्याओं से लड़ने की कोशिश करें। उसका समाधान खोजने की कोशिश करें। लेकिन इस बीच भगवान को न भूलें। अच्छा होगा कि जब आप उनसे उबरने के लिए संघर्ष कर रहे हों तो सबसे पहले भगवान को याद करें, उनकी कृपा प्राप्त करें और जब आप उनसे उबर जाएं तो उनका धन्यवाद करना न भूलें। भगवान से कहें कि सब आपकी कृपा से हुआ है और अपने कर्म उन्हें समर्पित कर दें। उन्होंने कहा कि आत्मा की एक स्वाभाविक अवस्था है- संतोष। लेकिन उससे ऊपर- शांति और आनंद। उन्होंने कहा कि जैसे भगवान का शाश्वत रूप है, वैसे ही भगवान आपको अनंत रूपों में सजाते रहेंगे। उन्होंने कहा कि समर्पण हमेशा ध्यान की अवस्था में करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि कभी भी भावना के लिए ध्यान न करें। हालांकि भावना जरूरी है। लेकिन इसके बावजूद अपने प्रेम को भगवान को समर्पित करने पर ध्यान केंद्रित करें। यानी भगवान को पाने से पहले किसी और चीज की अपेक्षा न करें। आप जितनी सहजता से ध्यान करेंगे, आपको उतना ही आनंद मिलेगा। स्वामी आद्यानंद ने इस दौरान रव्या और हसन की कहानी सुनाई। हसन को आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के कारण कुछ सिद्धियां प्राप्त हुई थीं। इसी बीच हसन ने पानी के बीच में एक चादर फेंकी और उस पर जाकर बैठ गए और रव्या से कहा कि तुम यहां आकर ध्यान करो। रव्या को समझते देर नहीं लगी कि हसन अपनी आध्यात्मिकता का परिचय दे रहे हैं। रव्या ने तुरंत हवा में एक चादर बिछाई और वहां जाकर हसन से कहा कि तुम यहां ध्यान करो। दरअसल, रव्या हसन को बताना चाहती थी कि जो हसन कर रहा है या जो रव्या ने किया, वह कोई भी कर सकता है। जैसे मछली पानी में वही कर सकती है, जो हसन ने किया और मक्खी भी हवा में वही कर सकती है, जो रव्या ने किया। यह कोई बड़ी बात नहीं है। आध्यात्मिकता का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। स्वामी आद्यानंद ने कहा कि हमारे सभी कर्म गुरु और भगवान के लिए होने चाहिए। उन्होंने कहा कि जो भी कर्म करो, उसमें भगवान को याद करो, ताकि समय-समय पर उनका मार्गदर्शन मिलता रहे और तुम उस कार्य में सफल हो सको। उन्होंने कहा कि गहन समर्पण ही एकमात्र उपाय है।

स्वामी आद्यानंद ने कहा कि हमारे सभी कर्म गुरु और भगवान के लिए होने चाहिए। उन्होंने कहा कि जो भी कर्म करो, उसमें भगवान को याद करो ताकि समय-समय पर उनका मार्गदर्शन मिलता रहे और उस कार्य में सफलता मिल सके। उन्होंने कहा कि गहन समर्पण ही ध्यान में है। उन्होंने भगवान के प्रति हमारी आस्था कैसी होनी चाहिए, इसका सुंदर उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि आपने देखा होगा कि बंदर का बच्चा जहां भी जाता है, वह अपनी मां को कसकर पकड़ लेता है और मां के साथ अधिक समय बिताता है। बिल्ली के बच्चे को देखते हुए वह वहीं लेट जाता है, जहां उसकी मां उसे छोड़ देती है, यह जानते हुए कि उसकी मां उसे जहां लिटा देगी, वहां उसे कोई परेशानी नहीं होगी। इसलिए भगवान के प्रति हमारा प्रेम उस बिल्ली के बच्चे जैसा होना चाहिए, जहां भी भगवान हमें रख दें। हमें कोई संकट नहीं आने वाला है और यदि संकट आ भी जाए तो डर किस बात का? भगवान सर्वशक्तिमान हैं। वह हमें हर संकट से बचाएंगे। उन्होंने कहा कि भगवान ने हमें संभाल कर रखा है, बस उनका हाथ थाम कर चलो। दरअसल यह सारा खेल प्रेम और पीड़ा का है। भगवान के प्रेम को समझो। इससे ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है। - लेखक बिहार-झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार और रिबेल 24 के संपादक हैं।

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