इलेक्ट्रॉनिक सेंसर से मिलेगी सीवर में मौजूद जहरीली गैसों की टोह
नई दिल्ली (इंडिया साइंस वायर): गहरे और संकरे सीवर में उतरकर उसे साफ करना जोखिम भरा काम है। भारत में हर साल सीवर की सफाई करते समय कई सफाई कर्मचारियों की मौत हो जाती है। केन्द्र सरकार ने संसद में एक लिखित प्रश्न के जवाब में कहा है कि पिछले चार सालों में सीवरों की हाथ से सफाई के दौरान 389 लोगों की मौत हुई है। यह मौत सीवर में पहले से मौजूद जहरीली गैसों के कारण होती है।
सीवर में जहरीली गैसों की जानकारी प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक इलेक्ट्रॉनिक नाक, जो एक प्रकार का सेंसर है, विकसित किया है। यह सेंसर दलदली क्षेत्रों और सीवरों में उत्पन्न होने वाली जहरीली और ज्वलनशील गैस- हाइड्रोजन सल्फाइड का पता लगाने में सक्षम है। हाइड्रोजन सल्फाइड, ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में कार्बनिक पदार्थों से उत्पन्न होने वाली एक प्राथमिक गैस है, जो सीवर और दलदली क्षेत्रों में अक्सर पायी जाती है।
इस सेंसर की दो परते हैं, जिसमें सेंसर की ऊपरी परत पर मोनोमर है। साथ ही, यह परत छिद्र-युक्त है, और हाइड्रोजन सल्फाइड के अणु इसमें मौजूद है। मोनोमर वे अणु होते हैं, जो अपने जैसे अणुओ की पहचान करके उनसे रासायनिक प्रतिक्रिया करते हैं। वहीं, सेंसर की निचली परत मौजूद गैस की गतिशीलता को प्रदर्शित करती है। इस प्रकार यह सेंसर हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) के अणुओं को पूर्व-केंद्रित कर रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू करता है, जिसके कारण उपकरण के व्यापक वाहकों (छेद) में बदलाव होता है।
वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह सेंसर अपने आसपास हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) गैस का पता लगाने में सक्षम है। प्रायोगिक सीमा में यह अति संवेदनशील सेंसर प्रति बिलियन लगभग 25 भागों का पता लगाया जा सकता है। यह सेंसर उच्च गुणवत्ता और सक्षमता के साथ लगभग 8 महीने तक काम कर सकता है।
इस सेंसर को बेंगलूरू स्थित सेंटर फॉर नैनो ऐंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस) के वैज्ञानिकों ने सऊदी अरब के सहयोग से तैयार किया है। इस सेंसर द्वारा सीवर साफ करने के दौरान अक्सर होने वाली मानव क्षति को रोकने में मदद मिल सकती है।
शोधकर्ताओं की टीम में सीईएनएस के डॉ चन्नबसवेश्वर येलामगाड और किंग अब्दुल्ला यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (केएयूएसटी) से प्रोफेसर खालिद एन. सलामा और उनकी टीम शामिल है। यह शोध हाल ही में 'मैटेरियल्स होराइजन'और 'एडवांस्ड इलेक्ट्रॉनिक मैटेरियल्स' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।