'कोरोना वायरस से हमें डरना नहीं, लड़ना',मानवता पर भारी पड़ने लगा यह नारा

 परिवारों को व्यथित रहा इलाज के लिए संघर्ष और मौत के बाद उपेक्षा 


कोविड सैंपल लेने के बाद घर भेजने के दो मामले उजागर, दोनों की मौत
 
नोएडा। कोरोना वायरस से हमें डरना नहीं, लड़ना है। सरकार की ओर से दिया गया यह नारा अब मानवता पर भारी पड़ने लगा है। कोरोना के इलाज के लिए जहां मरीजों को भटकना पड़ रहा है, वहीं मौत के बाद हो रही उपेक्षा परिवारों को व्यथित करने वाली है। लापरवाही पर एफआईआर और फटकार के बावजूद अस्पताल नहीं सुधर रहे हैं। 


ताजा मामला शारदा हॉस्टल में हुई लापरवाही का है। वहां कोविड-19 टेस्ट के लिए सैंपल लेने के बाद कोरोना संदिग्ध मरीज को घर भेज दिया गया। घर पहुंचने के बाद उसकी मौत हो गई। उसका शव घर में पड़ा रहा। टेस्ट रिपोर्ट में पॉजिटिव पाए जाने के बाद उसका अंतिम संस्कार प्रोटोकाल के तहत होना था। इस बात की सूचना के बाद अगले दिन स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उसका अंतिम संस्कार किया। 


इस मसले की शुरुआत 08 जून को हुई। इस बार सवालों के घेरे में ग्रेटर नोएडा का शारदा अस्पताल आया है। उसकी बड़ी लापरवाही उजागर हुई है। मृतक के बेटे के दोस्त लोकेश कश्यप ने बताया कि अस्पताल ने 08 जून को कारोना संदिग्ध मरीज का कोविड सैंपल लेकर घर भेज दिया। अगले दिन यानि 9 जून की सुबह 06 बजे उसकी घर में ही मौत हो गई। जबकि 09 जून की दोपहर आई रिपोर्ट में वह कोरोना पॉजिटिव पाया गया। पॉजिटिव पाए जाने के कारण उसका अंतिम संस्कार सरकार की ओर से जारी प्रोटोकॉल के तहत होना था। इसलिए, शव घर में ही पड़ा रहा। शाम 07 बजे इस बात की सूचना सीएमओ डॉ. दीपक ओहरी को मिली। उसके बाद वह खुद मौके पर गए और बॉडी का पैक कराया। उसके बाद नियमानुसार उसका अंतिम संस्कार किया हो सका।  


गौतमबुद्ध नगर के नोएडा और ग्रेटर नोएडा में अस्पतालों की लापरवाही का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले खोड़ा कालोनी के आजाद विहार से भी एक मामला सामने आया था। वहां रहने वाले संदीप रावत के पिता भी कोरोना संक्रमित थे। 5 जून को उन्हें सेक्टर-33 के एक निजी अस्पताल में ले जाया गया। वहां डॉक्टरों ने कोरोना जांच के लिए कहा। उन्होंने जिला अस्पताल में जांच के लिए नमूना दिया। वहां पहले उन्हें क्वारंटाइन करने के लिए कहा और बाद में उन्हें घर जाने के लिए कह दिया। अगले दिन सुबह सांस लेने में दिक्कत होने लगी। जिला अस्पताल ले जाते समय रास्ते में ही उनकी मौत हो गई। संदीप रावत को बताया गया कि पिता कोरोना संक्रमित हैं। इसके बावजूद अंतिम संस्कार प्रोटोकॉल के तहत नहीं किया गया। 


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