जब मुख्यमंत्री और मंत्री को इंतजार करना पड़ा 45 मिनट  



नई दिल्ली। इंतज़ार का फल मीठा होता है, यह कहावत तो आपने अपने परिवार के सदस्यों व मित्रो सें अवश्य ही सुनी होगी।भक्त अपने भगवान से ,एक प्रेमी अपनी प्रेमी से मिलने का ,एक समर्पित शिष्य अपने सद्गुरू से मिलने के प्रतीक्षा करते है ,कभी कभी इंतज़ार करना बहुत कष्टदायक भी होता है।  सिर्फ याचक ही इंतज़ार करते है। जो समृद्ध है, सक्षम है, वो शायद ही इंतज़ार करते है। हालाकि आज के बदलते परिवेश मे लेटलतीफी का फैशन चल पड़ा है, बड़े और सेलेब्रिटी ,राज नेताओंं द्वारा अपने प्रसंशक व समर्थकों के बीच मे तय समय पर काफी ही विलम्ब से पहुँचने पर अपनी शान व गौरव मानते है।ऐसी खबर अक्सर आती रहती है कि अमुख नेता या खिलाड़ी या फिर कोई फ़िल्मी स्टार कार्यक्रम में बहुत देर से पहुंचे। बॉलीवुड में तो देर से पहुँचने का एक तरह से प्रचलन है। कई ऐसे हीरो हेरोइन थे, हैं जिनकी लेटलतीफी बहुत ही मशहूर है।  हालांकि कई ऐसे नेता हैं जो समय से अपने कार्यक्रम में पहुँच जाते हैं।
आप सोच रहे होगें कि मैंं आप को स्वर्ग लोक की परी की बातें  बताने वाला हूँ, जिसमें कोरोना संकट छड़ी जादूू से मुक्त करने के उपाय बताऊंगा तो आप शत् प्रतिशत गलत है,ऐसे मैंं कुछ बताने वाला नहीं हूँ जो मित्र मुझे व्यक्तिगत रूप से जानते हैंं वे मेरे स्वाभाव से भलीभॉति परिचित हैंं।
अब आप सोच रहे होंगें कि इतनी बड़ी भूमिका की क्या जरुरत।आज मैंं अविभाजित बिहार राज्य के सच्ची प्रेरक कहानी से रू ब रू कराने जा रहा हूँ।  ये बात मेरे गृह राज्य झारखण्ड के  स्वाभिमानी कर्मठ ,जझारू युवक की है, जिसे भाग्य विपरीत परिस्थिति ने एक भिखारी बनने को विवश कर दिया,जिस पर प्रजातंत्र के प्रहरी की नजर पड़ी ।


उसी की दुःख भरी कहानी ने मुख्यमंत्री को मिलने के लिए  ४५ मिनट तक इंतज़ार कराया ,वही  दूसरी ओर उस मुख्यमंत्री की सहृदयता ब शालीनता देखिये, उन्होंने भी हंसी ख़ुशी उस इंतज़ार का लुत्फ़ उठाया। जहाँ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके साथी मंत्री मिथिलेश ठाकुर भीख मांगकर गुजारा करने वाले राजकुमार रविदास से मिलने के लिए 45 मिनट तक इंतजार करते रहे।


रविदास का गृह जिला हजारीबाग है, लेकिन करीब 4 साल पहले वह रांची आ गए और रिक्शा चलाकर अपना और परिवार का भरण पोषण कर रहे थे। कुछ महीने पहले उनका रिक्शा चोरी हो गयी, उसके बाद वे कूड़ा बिनकर गुजारा करने लगे। कूड़ा में मिले लोहे को वो कबाड़ी को बेचकर अपने परिवार का पालन कर रहे थे। अब कोरोना के कारण लॉकडाउन हो गया और कबाड़ी की दुकानें बंद हो गई हैं, जिसके चलते रविदास के सामने भूखमरी की नौबत आ गई।


अब रविदास के पास भीख मांगने के आलावा कोई उपाय नहीं बचा था। वो रांची के संत जेवियर कॉलेज के पास बैठकर भीख मांगने लगे। लॉकडाउन में उन्हें भीख भी नहीं मिल रही थी। जब स्थानीय मिडिया में रविदास की कहानी प्रकाशित हुई तो पेयजल एंव स्वच्छता मंत्री मिथलेश ठाकुर ने व्यक्तिगत कोष से एक रिक्शा खरीदा और मुख्यमंत्री के हाथों इसे रविदास को दिलाने का कार्यक्रम रविवार को रखा।
रविवार को मुख्यमंत्री कार्यालय से रविदास को सूचना दी गयी कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उन्हें रिक्शा देने के लिए  बुलाया है, पहले तो रविदास को भरोसा नहीं हुआ, फिर वह जैसे तैसे सीएम आवास के बाहर पहुंच गए। रविदास को सीएम आवास तक पहुंचने में थोड़ा वक्त लग गया और इसी वजह से देर हो गयी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और मंत्री मिथलेश ठाकुर तक़रीबन 45 मिनट तक नया रिक्शा लेकर उसका इंतजार करते रहे। जब से ये घटना प्रकाश में आई है । रविदास ने  रिक्शा मिलने के बाद कहा कि वैसे भी उन्हें भीख मांगना अच्छा नहीं लगता था, लेकिन मजबूरी में ऐसा कर रहे थे। अब रिक्शा चलाकर दोबारा मेहनत शुरू करेंगे और परिवार का पोषण करेंगें ।


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