आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था के माध्यम से देश की मुख्यधारा में दलितों को शामिल करने का प्रयास विफल


नई दिल्ली : बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्व सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सुश्री मायावती जी ने आज कहा कि पहले कांग्रेस पार्टी और अब बीजेपी व इनकी केन्द्र व राज्य सरकारों के जातिवादी रवैये के कारण देश के करोड़ों दलितों, आदिवासियों व ओ.बी.सी. वर्ग को आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था के माध्यम से देश की मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास विफल होता दिख रहा है, जो अति-दुःखद, दुर्भाग्यपूर्ण व अति-चिन्ता की बात है।
अपने बयान में उन्हांेंने कहा कि वास्तव में चाहे कांग्रेस पार्टी हो या बीजेपी अथवा अन्य विरोधी पार्टियाँ इनकी कथनी व करनी में अन्तर का एक पुख्ता सबूत है आरक्षण की सकारात्मक व्यवस्था को ज़मीनी हकीकत में नहीं लागू होने देना। एस.सी./एस.टी. व   ओ.बी.सी. वर्ग को संवैधानिक सुविधा के तौर पर शिक्षा व सरकारी नौकरी आदि में मिले आरक्षण का विरोध तो ये पार्टियाँ वोट के भय से खुले तौर पर तो नहीं करती हैं, लेकिन अपनी नीयत व नीति एवं कार्यप्रणाली में हर वह काम करती हैं जिससे यहाँ सदियों से शोषित-पीड़ित, उपेक्षित व तिरस्कृत रहे इन कमजोर वर्ग के करोड़ो लोगांे को मिलने वाली आरक्षण की सुविधा निष्क्रिय व निष्प्रभावी हो जाए और अन्ततः यह प्रावधान केवल कागजी होकर ही रह जाये।
इन पार्टियों व इनकी सरकार के कोर्ट के भीतर भी इसी प्रकार के ग़लत रवैये के कारण अब माननीय कोर्ट के फैसलों से भी ऐसा लगता है कि आरक्षण एक संवैधानिक अनिवार्यता ना रहकर मात्र सरकारों की इच्छाओं पर निर्भर रह जायेगा, जिससे पूरे देशभर में इन वर्गो के साथ-साथ कानून-संविधान की मान-मर्यादा के हिसाब से काम करने वाले सर्वसमाज के अधिकतर लोग भी काफी ज्यादा दुःखी, चिन्तित व विचलित दिखते हैं। इसके बावजूद सत्ता के नशे में चूर ख़ासकर एस.सी./एस.टी. व ओ.बी.सी. वर्ग के लोग व मंत्रीगण आदि भी खुलकर समाज व देशहित की बात करने के बजाए काफी सहमे-सहमे व डरे-डरे से ही दिखाई देते हैं, जिन पर समाज की पैनी नज़र जरूर है।
साथ ही, ख़ासकर उत्तर प्रदेश में सन् 2012 में बी.एस.पी. की सरकार के जाने के बाद से तो आरक्षण की व्यवस्था के साथ-साथ सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था को एक प्रकार से समाप्त ही कर दिया गया है। इनके डिमोशन के मामले में लगातार ऐसी सक्रियता व तत्परता दिखाई गई है जैसे कि यही देश व समाज हित का सबसे बड़ा काम सरकारों के लिए रह गया हो। यह सब विरोधी पार्टियों की जातिवादी मानसिकता नहीं तो और क्या है? और अब बीजेपी की वर्तमान सरकार में इसी जातिवादी रवैये का शिकार केवल एस.सी./एस.टी. समाज के लोग ही नहीं बल्कि ओबीसी वर्ग भी काफी ज्यादा सताए जा रहे हैं।
ऐसे में केन्द्र सरकार से पुनः माँग है कि वह आरक्षण की सकारात्मक व्यवस्था को संविधान की 9वीं अनुसूची में लाकर इसको सुरक्षा कवच तब तक प्रदान करे जब तक उपेक्षा व तिरस्कार से पीड़ित करोड़ों लोग देश की मुख्यधारा में शामिल नहीं हो जाते हैं, जो आरक्षण की सही संवैधानिक मंशा है।


 


 


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