अतिक्रमण मुक्त होंगे पोखर-तालाब

 


   आज पूरे देश में  पोखर और तालाबों के समक्ष अस्तित्व का संकट खड़ा हुआ है ,अनेकानेक तालाब सूख कर सिमट गए हैं तथा अंतिम सांसे ले रहे हैं। बहुतों ने तो अपना अस्तित्व ही गंवा दिया है। उत्तर प्रदेश आगरा के राज पूरे देश गांव में स्थित खसरा नंबर 253 एवं 254 में कभी जल का अपार भंडार हुआ करता था तथा वह जल आसपास के लोगों तथा जीव-जंतुओं के लिए जीवन अमृत प्रदान करता था किंतु नवधनाढ्यों की नजर उस पर ऐसी लगी कि आज उस तालाब के स्थान पर विशाल अट्टालिकाएं खड़ी हैं।बदायूं जिले के अनेक तालाब भू माफिया की भेंट चढ़ चुके हैं। चंदोखर, पक्का तालाब तथा चमर तलैया जिन का क्षेत्रफल 50 बीघे से भी अधिक था अपना अस्तित्व गंवा चुके हैं और अब उनके स्थान पर कल्याण नगर, प्रोफ़ेसर कॉलोनी जैसी पाश कॉलोनियां उग आई हैं। पक्का तालाब का संबंध सुरंग के माध्यम से राजा महिपाल के महल से था ,जहां स्नान  के लिए रानियां  जाया करती थी। अब पक्के तालाब का अवशेष मात्र शेष है।इसी प्रकार कानपुर आगरा राजमार्ग पर एत्मादपुर से पहले कभी एक विशाल तालाब' बुढ़िया का तालाब 'विशाल दरिया के रूप में स्थित था,जिसमें रजवाहे के माध्यम से पानी निरंतर आता रहता था और वह वर्ष पर्यंत लबालब पानी से भरा रहता था किंतु अब वहां पर पानी का नामोनिशान नहीं है तथा बबूल सहित कांटेदार वृक्षों का जंगल खड़ा हो गया है। प्रयागराज स्थित तालाब नवल राय अब इतिहास का विषय बन गया है। शायद ही किसी को मालूम हो कि कभी यहां विशाल तालाब था जिसके स्थान पर आज इस नाम का मोहल्ला कायम हो गया है ।प्रयागराज में ही बारा तहसील के लालापुर मार्ग पर स्थित धरा गांव का तालाब अपने आप में अद्वितीय था ,40 एकड़ में फैले इस तालाब की भूमि कंक्रीट की बनाई गई थी और उसमें चारों ओर से आकर बरसाती पानी जमा होता था तथा वह अड़ोस पड़ोस के गांवों सहित धरा गांव के लोगों तथा अन्य जीव-जंतुओं के पेयजल के साथ-साथ फसलों की सिंचाई एवं अन्य आवश्यक कार्यों में उपयोग में लाने पर भी वर्ष पर्यंत लबालब भरा रहता था किंतु आज वहां पानी के स्थान पर सूखी भूमि नजर आती है। गोरखपुर स्थित असुरन पोखरा जिसे सन 1075 से1077 के मध्य राजा शूरपाल ने विष्णु मंदिर के साथ बनवाया था ।आज पानी रहित होकर असुरन मोहल्ले के नाम से गोरखपुर में जाना जाता है। कानपुर देहात घाटमपुर स्थित कुष्मांडा देवी मंदिर का तालाब भी अपनी यही कहानी कह रहा है ।गाजीपुर के सिद्ध पीठ भुड़कुड़ा के उत्तरी छोर पर स्थित पोखरा चमत्कारी पोखरा के नाम से जाना जाता है जिसे सिद्ध पीठ  कदूसरे महान संत गुलाल साहिब ने संवत्1766में लगभग 550 वर्ष पहले खुदवाया था ,आज अपने अस्तित्व से जूझ रहा है तथा अंतिम सांसे ले रहा है इसी प्रकार अलीगढ़ से अतरौली स्थित राजमार्ग पुर गांव का तालाब ,शाहजहांपुर की तहसील तिलहर और पुवाया की सीमा में लघौला चेना में 84 बीघा के विशाल क्षेत्र में फैला तालाब ,अमेठी के 109हेक्टेयर में फैला हुआ समदा ताल,नोएडा के बिलासपुर में स्थित 40 बीघा में फैले बूढ़े बाबा का तालाब , बदायूं के अनेक तालाब भू माफियाओं की बुरी नजर का शिकार होकर अपने अस्तित्व को गवा बैठे हैं तथा उनके पेट में कंक्रीट के जंगल उग कर मुहल्लों के रूप में परिवर्तित हो गए हैं, बदायूं के इन तालाबों में चंदू खर पक्का तालाब एवं एवं चमर तलैया प्रमुख हैं इन तालाबों में अब कल्याण नगर प्रोफेसर कॉलोनी आदि मोहल्ले उग आए हैं,मुरादाबाद के खुशहालपुर रोड में स्थित लोको शेड के पास स्थित तालाब तथा चित्रकूट जिला कलेक्ट्रेट के पास स्थित चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए मिनी खजुराहो के नाम से विख्यात गणेश बाग स्थित बावड़ी एवं तालाब आज अपने अस्तित्व को गंवाकर अंतिम सांसे ले रहे हैं।उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है कभी समीपवर्ती गांव के सांस्कृतिक ,धार्मिक आयोजनों के केंद्र बनने वाले यह तालाब आज मृतप्राय हो गये हैं तथा अपने जीवन की रक्षा के लिए किसी भगीरथ की प्रतीक्षा कर रहे हैं । मृत प्राय तालाब पोखर ओं की का यह उल्लेख प्रतीक मात्र है इनकी संख्या पूरे देश में 20000 से ऊपर पहुंच गई है । उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में आज मेरठ में 1115 ,बुलंदशहर में 3997, मुजफ्फरनगर में 767 ,शामली में 348 ,मुरादाबाद में 2532 ,अमरोहा में 2101, रामपुर में 2257, संभल में 599, अलीगढ़ में 1848, हाथरस में 94, प्रयागराज में 2800, प्रतापगढ़ में 1378 ,वाराणसी में 1519 ,बलिया में 4622 ,बरेली में 6500, शाहजहांपुर में 5000 ,बदायूं में 2243 पीलीभीत में 1071 ,नोएडा में 1002 ,लखनऊ में 1345 ,कन्नौज में 1818 ,चित्रकूट में 1499 ,फतेहपुर में 6650 ,कानपुर देहात में 2750 ,तथा आगरा मंडल में 9423 आजमगढ़ में 45,000 सोनभद्र में 7000 गोरखपुर में 5646 एवं बस्ती मंडल में 4200 पोखरा और तालाब हैं, जिनमें से 10% तालाबों में भी गत जून माह में पानी नहीं था। प्रदेश सरकार इन तालाबों पर पानी भरवाने का प्रयास कर रही थी। जिला प्रशासन को मनरेगा के माध्यम से तालाबों में पानी भरने का निर्देश दिया गया था किंतु मनरेगा के अंतर्गत किए गए प्रयास के बावजूद जल भरे तालाबों की संख्या कुल के सापेक्ष 20% नहीं हो पाई थी। वर्षा ऋतु में अवश्य ही इनमें कुछ पानी देखने को मिला किंतु उसके जाते ही पानी सूखना प्रारंभ हो गया है ।ग्रीष्म ऋतु आते-आते अधिकांश तालाब जल विहीन हो जाएंगे। मनरेगा द्वारा  नए -नए तालाब बनाए जा रहे हैं किंतु उनका निर्माण बिना किसी योजना के अदूरदर्शिता पूर्ण ढंग से किया जा रहा है। निर्माण के लिए निर्माण तो हो रहा है किंतु यह नहीं देखा जा रहा कि इन तालाबों में पानी कहां से आएगा, जिसके कारण मनरेगा द्वारा बनाए गए तालाब मनरेगा से ही पानी भरने की अपेक्षा रखते हैं। उनमें प्रायः प्राकृतिक बरसाती पानी नहीं पहुंच पाता, जबकि तालाबों का निर्माण ऐसे स्थान पर होना चाहिए,जहां पर वर्षा का जल पहुंचकर एकत्रित हो तथा संचित होकर तालाबों को तो जल से परिपूर्ण करे ही , भूगर्भ के जल स्तर को भी बढ़ाये। । 


आज देश का तीन चौथाई भाग पेयजल की समस्या से जूझता नजर आता है।देश के अनेक भागों में जल की अनुपलब्धता के कारण आंदोलन और संघर्ष हो रहे हैं।दक्षिण भारत के चेन्नई से लेकर उत्तर भारत के अनेक शहरों में पेयजल की समस्या मुंह बाए खड़ी है। देश के लगभग 70% घरों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं है ।लोग प्रदूषित पानी पीने के लिए बाध्य हैं,जिसके चलते लगभग 4 करोड़ लोग प्रतिवर्ष प्रदूषित पानी पीने से बीमार होते हैं तथा लगभग 6 करोड लोग फ्लोराइड युक्त पानी पीने के लिए विवश हैं। उन्हें पीने के लिए शुद्ध जल उपलब्ध नहीं है। देश में प्रतिवर्ष लगभग 4000 अरब घन मीटर पानी वर्षा के जल के रूप में प्राप्त होता है किंतु उसका लगभग 8% पानी ही हम संरक्षित कर पाते हैं, शेष पानी नदियों ,नालों के माध्यम से बहकर समुद्र में चला जाता है।  हमारी सांस्कृतिक परंपरा में वर्षा के जल को संरक्षित करने पर विशेष ध्यान दिया गया था, जिसके चलते स्थान स्थान पर पोखर ,तालाब, बावड़ी, कुआं आदि निर्मित कराए जाते थे , जिनमें वर्षा का जल एकत्र होता था तथा वह वर्ष भर जीव-जंतुओं सहित मनुष्यों के लिए भी उपलब्ध होता था,  किंतु वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर इन्हें संरक्षण न दिए जाने के कारण अब तक लगभग 4500 नदियां तथा 20000  झील,पोखर, तालाब आदि सूख गये हैं तथा वह भू माफिया के अवैध कब्जे का शिकार होकर लगभग अपना अस्तित्व गंवा बैठे हैं तथा उनके समक्ष अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है।
देश का कोई भी ऐसा हिस्सा या प्रदेश नहीं है जहां पर पोखर एवं तालाब दिन प्रतिदिन सूख  न रहे हों तथा उन पर भू माफिया तथा बिल्डरों का  अवैधानिक कब्जा न हुआ हो। इसे देखते हुए प्रकृति प्रेमी तथा जल संरक्षण तथा संवर्धन की दिशा में कार्य कर रहे लोगों द्वारा समय-समय पर ऐसे जल स्रोतों की सुरक्षा हेतु माननीय उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय मैं भी गुहार लगाई गई ।श्री हिंचलाल तिवारी ,जगपाल व अन्य की जनहित याचिका में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा देश के सारे झील तालाब झरनों को अतिक्रमण मुक्त करने का आदेश दिया गया था । इसकेे बाद बाद गाजीपुर के इकबाल अहमद की जनहित याचिका में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के तत्कालीन न्यायमूर्ति श्री शंभू नाथ श्रीवास्तव ने सुनवाई करते हुए तालाबों से अतिक्रमण हटाने के लिए 2005-06 में आदेश पारित करते हुए कहा गया कि 1952 के पहले के राजस्व अभिलेखों में पोखर ,तालाबआदि के रूप में अंकित जलाशयों को अतिक्रमण मुक्त कर उन्हें बहाल किया जाए। माननीय न्यायालयों द्वारा पारित उक्त निर्णयों से समस्या विशेष का तो समाधान हुआ तथा कुछ जलाशयों को जीवनदान मिला किंतु उनका व्यापक प्रभाव नहीं पड़ा, भू माफिया राजनेता एवं अधिकारियों के गठजोड़ ने जलाशयों की मुक्ति एवं उनकी बहाली की दिशा में ठोस कार्यवाही नहीं की गई। उत्तर प्रदेश के आगरा के राजपुर गांव के खसरा नंबर 253 एवं 254 में स्थित तालाब को बहाल कराने हेतु संघर्ष कर रही सपोर्ट इंडिया वेलफेयर सोसाइटी आगरा के लोग उक्त निर्णय के आलोक में शासन प्रशासन से संबंधित तालाब की मुक्ति हेतु निरंतर अनुनय विनय करते रहे किंतु परिणाम कुछ नहीं निकला। हार कर उन्होंने भी माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद की शरण ली और जनहित याचिका दाखिल कर तालाब को मुक्त कराने का अनुरोध किया जिसमें निर्णय पारित करते हुए जिलाधिकारी आगरा को संबंधित तालाब को अतिक्रमण मुक्त कराकर उसे बहाल कराने का आदेश दिया गया किंतु जिलाधिकारी उसे अतिक्रमण मुक्त कराकर बहाल नहीं करा सके क्योंकि संबंधित तलाब में कंक्रीट की अट्टालिकाओं का मायाजाल फैला हुआ था। भू माफिया राजनेता एवं अधिकारियों का रचना संसार अपने प्रभाव से जिलाधिकारी को तालाब को अतिक्रमण  मुक्त कराने में सफल नहीं होने दिया  ।फलस्वरूप जनहित याचिकाकर्ता 'सपोर्ट इंडिया वेलफेयर सोसाइटी' ने पुन:एक बार माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद की शरण जनहित याचिका संख्या 1479/19 के माध्यम से ली ,जिसमें निर्णय पारित करते हुए न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार सिंह बघेल तथा न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की खंडपीठ ने प्रदेश के सभी जिला अधिकारियों को तालाबों से अतिक्रमण हटाकर उनकी पुनर्बहाली का आदेश देते हुए प्रदेश में 1951-52 के राजस्व अभिलेखों में अंकित तालाबों से अतिक्रमण हटाकर उन पर किए गए पट्टे समाप्त करके उनकी बहाली का निर्देश दिया है। साथ ही मुख्य सचिव को राजस्व परिषद के चेयरमैन के परामर्श से एक मानिटरिंग कमेटी गठित करने का निर्देश देते हुए कहा है कि प्रदेश के प्रत्येक जिला अधिकारी, अपर जिलाधिकारी वित्त राजस्व तालाबों की सूची तैयार करें तथा अतिक्रमण  हटा कर उनकी पुनर्बहाली का कार्य करें। साथ ही कार्रवाई की सूचना मुख्य सचिव द्वारा गठित मानिटरिंग कमेटी को हर छह माह में सौंपी जाए ,कमेटी को भी तीन या चार माह में अवश्य बैठक करके तथा तालाबों की बहाली की रिपोर्ट पर विचार करने का आदेश दिया गया है ।न्यायालय ने जिलाधिकारी आगरा को तालाब को बहाल कर अपनी रिपोर्ट 3 माह के भीतर महानिबंधक माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष पेश करने का आदेश दिया है ।। साथ ही माननीय उच्च न्यायालय ने कहा है कि मानिटरिंग कमेटी में पूर्व न्यायाधीश श्री राम सूरत राम मौर्या को भी आमंत्रित किया जाए। पहले से गठित राज्य स्तरीय जिला स्तरीय समितियां भी अपनी रिपोर्ट नवगठित कमेटी को दें,। राज्य के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के आदेशों के पालन में लापरवाही बरती है अब अगर लापरवाही बरती जाती है तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए। उच्च न्यायालय के आदेश में राज्य प्रशासन को समय पत्थर ढंग से तालाब उनको अतिक्रमण मुक्त करने तथा उनकी पुनर बहाली का आदेश निर्गत किया गया है जिससे यह विश्वास हो रहा है कि आगे आने वाले दिनों में पोखरा तालाब सुरक्षित होंगे , अतिक्रमण से मुक्त होंगे तथा समाप्तप्राय तालाब पुन:जलाप्लावित होकर जल संरक्षण तथा जल संवर्धन का कार्य करेंगे ,जिससे प्रकृति  एवं समस्त जीव-जंतुओं को पर्याप्त जल प्राप्त होगा तथा वर्षा -जल संचय से भूगर्भ का जल स्तर भी संवर्धित होगा, वृद्धि को प्राप्त करेगा जिससे जल समस्या का भी समाधान होगा।


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