हिंदी एक भाषा नहीं है जीवनशैली है, हिंदी एक दर्शन है.

अतंरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन


हिन्दी की इसी आन, बान और शान के लिए हम हर वर्ष 14 सितंबर को मनाते हैं हिन्दी दिवस।  विश्व हिंदी परिषद द्वारा  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जन्म जयंती को समर्पित हिंदी दिवस के मौके पर दिल्ली के एनडीएमसी, सभागार में दो दिवसीय (13 - 14 सितंबर) को अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन का शुभारंभ महामहिम गोवा की राज्यपाल श्रीमति मृदुला सिन्हा, केंद्रीय राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल, आरएसएस के राष्ट्रीयकार्यकारिणी सदस्य डॉ.इंद्रेश कुमार जी, विश्व हिंदी परिषद के महासचिव डॉ.बिपिन कुमार , जेडीयू के नेता के.सी.त्यागी जी, नीति आयोग के प्रमुख सलाहकार अनिल श्रीवास्तव जी,  एनडीएमसी के सचिव रश्मि सिंह  द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया।


इस मौके डॉ.बिपिन कुमार ने मंच पर मौजूद सभी अतिथिथों का कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए आभार व्यक्त किया और हिंदी के महत्व पर प्रकाश डाला और इसके विकास के लिए उत्तम कार्य किए जाने का आह्वान किया।


विश्व हिंदी परिषद द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन कार्यक्रम की भागीदार पार्टनर एनडीएमसी के सचिव श्रीमति रश्मि सिंह ने इस मौके पर कहा कि हर माता - पिता को अपने बच्चों को हिंदी के महत्व के बारे में बताना चाहिए और उनके भीतर हिंदी का भाव पैदा करने की बचपन से ही कोशिश करनी चाहिए। 


मौके पर उपस्थित नीति आयोग के मुख्य सलाहकार अनिल श्रीवास्तव ने कहा कि ''हिंदी हमारे ह्दय की भाषा है, गांधी ने कहा था कि तबतक कोई देश स्वतंत्र नहीं हो सकता जबतक वो अपनी राष्ट्रभाषा को गले नहीं लगाता''...


कार्यक्रम में उपस्थित जेडीयू के वरिष्ठ नेता के.सी.त्यागी ने कहा कि हम भारत सरकार और पीएम मोदी जी को बहुत – बहुत बधाई देता हूं कि गांधी जी की 150वीं जन्म जयंती को देश और दुनियाभर में धूम – धाम से मनाने का फैसला लिया है. गांधी जी के सपने को साकार करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दिया था. आज जब भी हिंदी की बात होती है तो मेरे स्मरण में स्वर्गीय सुषमा स्वराज जी जरूर आती है। इस दौरान त्यागी ने आपातकाल के दौरान अपने संघर्षों और आजादी के समय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की भुमिका पर प्रकाश डाला। साथ ही कहा कि सभ्य समाज में हिंसा की कोई जगह नहीं. जीवन का सही आनंद गांधीवादी विचारधारा में ही समाहित है।


केंद्रीय राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल ने विश्व हिंदी परिषद के आयोजकों को अतंरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने के लिए बधाई देते हुए कहा कि बिना भाषा की पहचान का कोई राष्ट्र राष्ट्र नहीं कहलाता। मेघवाल जी ने इस मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जी को याद करते हुए कहा कि अटल जी और सुषमा जी हिंदी के वो वक्ता थे जो अपने हिंदी वाणी से विरोधियों पर भी छाप छोड़ जाते थे।


केंद्रीय राज्य मंत्री(प्रधानमंत्री कार्यालय) जितेंद्र सिंह ने ऱाष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मुझे खुशी है कि 'स्वच्छ भारत व खादी' सहित गांधी के हर सपनों को साकार करने का जिम्मा माननीय प्रधानमंत्री मोदी को मिला। गांधी जी की इच्छा थी कि आजादी के बाद भारत कांग्रेस से मुक्त हो लेकिन आज 70 साल बाद मोदी जी के नेतृत्व में ही गांधी का एक और सपना पूरा होने के कगार पर पहुंच गया है। ''2014 के पहले तक देश की सरकारें अंग्रेजी में सोचती थी लेकिन मोदी जी के नेतृत्व में आज हर सरकारी कामकाज हिंदी में हो रहा है। वास्तव में हिंदी समाज की तभी भाषा बनेगी जब लोग इसे बोलने पर प्रतिष्ठावान महसूस करेंगे। भाषा की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वो कितनी बड़ी आपकी पहचान है।


सम्मेलन में उपस्थित डॉ. इंद्रेश कुमार( राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, राष्ट्रीय स्वंस सेवक) ने कहा कि हिंदी मानवीय जीवन के अनुकूल भाषा है. जिसने बापू और हिंदी को अपना जीवन शैली माना है वहीं हिंदी का सपना पूरा करेगा। हमने 70 साल तक विदेशी मेहमानों को उपहार में ताज सौंपते थे आज 5 साल से हम उन्हें 'गीता' सौंप रहे है। आज भारत दुनिया का नेतृत्व कर रहा है।


कार्यक्रम के अंत में महामहिम गोवा की राज्यपाल, श्रीमति मृदुला सिन्हा ने संबोधन की शुरूआत में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ बिताए एक पल को साझा किया और हिंदी के महत्व पर रोशनी डालते हुए कहा कि ''भारतीय संस्कृति की वो बात नहीं रही, बच्चे बिगड़ रहे हैं'' हिंदी और भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए सभी को आगे आना पड़ेगा। इस दौरान श्रीमति सिन्हा ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन पर भी रोशनी डाला और कहा कि गांधी सत्य का प्रयोग करते थे और वो ऐसा करने में किसी से डरते नहीं थे। जब भी हिंदी की बात आती है गांधी की बात जरूर होती है, नेल्सन मंडेला की बात जरूर होती है. हिंदी दिल की भाषा है लेकिन इसे पेट की भाषा बनाने की जरूरत है. जब हिंदी पेट की भाषा बनेगी तब हर लोग अपने बच्चे को हिंदी में पढ़ाने में गर्व महसूस करेंगे। उन्होंने सम्मेलन में मौजूद लोगों से आह्वान किया कि हिंदी को हीन भावना से ना बोले, हिंदी को परिवार की भाषा बनाएं।


कार्यक्रम के मध्य पीएसयू से प्रतिभागियों को सम्मानित भी किया गया।


 


 


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