नशा मुक्त भारत : भ्रम बनाम सच का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण
“दम मारो… पर नशा छोड़ो—अपने सपनों को नहीं!” नशे की धुंध में खोता समाज डॉ उमेश शर्मा “दम मारो दम मिट जाये…”—यह फ़िल्मी पंक्ति हमारे समाज की वास्तविकता से कभी-कभी मेल खाती दिखाई देती है। देश में नशामुक्ति अभियान तेज़ी से चल रहा है, यद्यपि नशे के प्रकार और उनके प्रभाव को लेकर आम नागरिकों में कई भ्रांतियाँ मौजूद हैं। एक ओर भाँग/गांजा/Marijuana पर कानूनी रोक है, जबकि दूसरी ओर शराब खुलेआम उपलब्ध है—और कई बार हर गली-कूचे में दुकानें खुली मिल जाती हैं। इस विरोधाभास ने यह बहस जन्म दी है कि कौन-सा पदार्थ कितना हानिकारक है और किसका दुष्प्रभाव समाज पर अधिक गहरा पड़ता है। इस लेख का उद्देश्य किसी भी नशे का महिमामंडन नहीं, बल्कि एक स्वास्थ्य एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टि से तथ्यपरक तुलना प्रस्तुत करना है, ताकि नशामुक्ति के अभियान को सही समझ और दिशा मिले। Marijuana (भाँग/गांजा) और शराब : स्वास्थ्य प्रभाव 1. शारीरिक प्रभाव Marijuana: • यह फेफड़ों, प्रतिक्रिया-समय और याददाश्त पर प्रभाव डाल सकती है। • नियमित और अधिक उपयोग से मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। • लेकिन शराब की तुलना में इससे होने ...