*सिद्धार्टन की हस्र विदाई से केजरीवाल को झटका लगा*




 *सिद्धार्टन के ब्राम्हण, सुंदरता, गांधी छाप वाद से भाजपा को मुक्ति मिली* 


 *नड्डा के लिए भी सिद्धार्टन खतरे की घंटी व भस्मासुर साबित होंगे* ?


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 *आचार्य श्री विष्णुगुप्त* 

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भाजपा के दिल्ली प्रदेश के संगठन महामंत्री सिद्धार्टन की हस्र विदाई से अरविन्द केजरीवाल को जोरदार झटका लगा है, इस झटके से केजरीवाल को अब बाहर निकलना मुश्किल होगा, उसे एक साथ कई परेशानियों का सामना करना पडेगा, जैसे भाजपा का उग्र विरोध, उग्र बयानबाजी, उग्र जनससमयाओं की शिकायत के साथ ही साथ मजबूत भाजपा संगठन की चुनौती को स्वीकार करनी पडेगी। सबसे बड़ी बात यह है कि शराब घोटाले को लेकर सीबीआई के शिंकजे के बाद भी अरविन्द केजरीवाल को उतना नुकसान नहीं हो पा रहा था जितना नुकसान होना चाहिए था पर अब शराब घोटाले को लेकर भाजपा और भी अधिक शक्ति के साथ केजरीवाल को घेरेगी, उप राज्यपाल की कानून सम्मत कार्रवाइयों के प्रति समर्थन भी जोरदार ढंग से करेगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में भी केजरीवाल की महत्वाकंक्षाएं दमन होगी।

             सिद्धार्टन कहने के लिए भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री थे पर भाजपा की सबसे बड़ी कमजोर  और अरविन्द केजरीवाल के लिए सबसे मजबूत कड़ी थे। सिर्द्धाटन संघ के प्रचारक हैं। संघ के प्रचारकों की बहुत सारी निष्ठाएं तय होती हैं। निष्ठाएं ऐसी होती हैं जो आम आदमी को आकर्षित करती हैं, संगठन की क्षमता को सुखद परिणाम में बदल देती है। लेकिन सिर्द्धाटन में इस तरह की क्षमताएं और निष्ठाएं अस्पट थी। उनका रहन-सहन और बात-व्यवहार से लेकर प्रश्न थे अन्य दैनिक क्रियाएं भी एक प्रचारक से भिन्न थी। उनकी मानसिकताओं में उदारता थी, मनोरंजन था, सुंदरता के प्रति अतिरिक्त मोह और दर्शन था। सुलभता भी नहीं थी। जबकि संघ के प्रचारक या पूर्व प्रचारकों का जीवन अति सुलभ होता है, उनसे कोई भी और कभी भी मिल सकता है, उनसे किसी भी समस्या को लेकर परामर्श कर सकता है, मार्गदर्शन ले सकता है पर सिद्धार्टन इस प्रकार के जीवन चर्या और सक्रियता की कसौटी पर बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं होते थे।

            जानना यह भी जरूरी है कि भाजपा में अध्यक्ष की कम और संगठन मंत्री की ज्यादा चलती है, संगठन मंत्री ही एक तरह से शक्तिशाली होता है। जिलाध्यक्ष और पदाधिकारियों के चयन में संगठनमंत्री की ही अधिक भूमिका होती है। अध्यक्ष भी संगठनमंत्री को ही विश्वास में लेकर चलता है। इसलिए किसी प्रदेश का संगठन कितना मजबूत है और कितना कमजोर है, उसका अधिकतम श्रेय संगठनमंत्री को ही जाता है। दिल्ली प्रदेश भाजपा का संगठन बहुत ही कमजोर ही नहीं बल्कि निचले स्तर का रहा है। यह संगठन महामंत्री सिद्धार्टन की कमजोरी और अदूरदर्शिता का ही परिणाम रहा है।

           दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल की चुनौती को देखते हुए मजबूत संगठन की जरूरत थी और मजबूत संगठन को खड़ा करने की जिम्मेदारी सिद्धार्टन पर थी। सिद्धार्टन ने अगर मजबूत संगठन खड़ा किया होता तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता था कि दिल्ली में भाजपा इतनी कमजोर नहीं होती और अरविन्द केजरीवाल की लात बार-बार नहीं खाती। दिल्ली में भाजपा कोई एक-दो साल से नहीं बल्कि पूरे 25 साल से सत्ता से बाहर है। 15 सालों तक दीक्षित ने और अब 10 सालों से अरविन्द केजरीवाल राज कर रहा है। इन 25 सालों में कभी भी भाजपा अपने लिए प्रशंसा के लायक जन समर्थन हासिल नहीं कर पायी।

          सिद्धार्टन मजबूत संगठन खड़ा क्यों नहीं कर पाये? इसका उत्तर यह है कि जब आप कार्यकर्ताओं से मिलना पंसद नहीं करेंगे,  कार्यकर्ताओं के दूख-दर्द में शामिल नहीं होगे, संकट के समय में कार्यकर्ताओं की मदद नहीं करेंगे तो फिर कार्यकर्ता पार्टी के लिए जान देने और अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देने के लिए क्यों और कैसे तैयार होंगे। सिद्धार्टन के समय में कार्यकर्ता का मतलब ब्राम्हणवाद होता था, प्रोपटी डीलरवाद होता था, पैसेवाद होता था और सुंदरतावाद होता था। ऐसी श्रेणी के लोग संगठन के लिए फैशन शो तो कर सकते हैं पर सर्दी, गर्मी और बरसात में अपना समय देना स्वीकार नहीं करते हैं।

         पिछले एमसीडी चुनाव के दौरान सिद्धार्टन का ब्राम्हणवाद देख लीजिये। 250 एमसीडी चुनाव क्षेत्र में से लगभग 50 टिकट ब्राम्हणों को दिया था। कहने का अर्थ है कि  

एमसीडी चुनाव में भाजपा का हर पाचवां उम्मीदवार ब्राम्हण था। इस ब्राम्हणवाद का जमकर दुष्प्रचार हुआ। भाजपा की छबि खराब की गयी। कहा यह गया कि हिन्दुत्व की बात करने वाली भाजपा ब्राम्हणवाद पर इतना अभियानी कैसे है? पर सच्चाई सामने थी। खासकर वैश्य और पिछडे मतदाताओं के बीच संशय पैदा हुआ, भाजपा को लेकर नाराजगी हुई। जिसका लाभ केजरीवाल को मिला। वैश्य जाति ही एक मात्र जाति है जो जाति पर नहीं बल्कि सनातन के नाम पर वोट करती है। वैश्य जाति को निपटाने का कार्य सिद्धार्टन ने पर्दे के पीछे से खूब किया था। टिकट बटवारे में ब्राम्हणवाद का खेल सिद्धार्टन ने अपने बल खेला था, ऐसी चर्चा है। महिला कार्यकर्ताओं की जगह नेताओं की घर में रहने वाली पत्नियों की टिकट क्यों मिला? एमसीडी का टिकट सिद्धार्टन ने खूद बांटा था पर बलि का बकरा आदेश गुप्ता को बना दिया गया।

                सिद्धार्टन को दिल्ली में कोई मजबूत प्रदेश अध्यक्ष नहीं चाहिए, कमजोर प्रदेश अध्यक्ष चाहिए था? आखिर क्यों? इसलिए कि मजबूत प्रदेश अध्यक्ष को अपने अनुसार हांक नहीं सकते थे। मनोज तिवारी जैसा सक्रिय अध्यक्ष भी कामयाब इसलिए नहीं हो पाये कि सिद्धार्टन के सामने उनकी नहीं चल सकी। मनोज तिवारी की चलती तो फिर दिल्ली में भाजपा मजबूत होती। तीसरी बार जब केजरीवाल चुनाव जीता था तब भी मनोज तिवारी की जगह सिद्धार्टन की इच्छा सर्वपरि मानी गयी थी। पिछले दिल्ली विधान सभा चुनावों में भी सिर्द्धाटन की इच्छा सर्वोपरि मानी गयी। दिल्ली में श्याम जाजू, प्रकाश जावेडकर और कई गंभीर नेता प्रभारी थे पर सिद्धार्टन की कमजोरी के कारण ये भी अच्छे परिणाम देने में बहुत ही पीछे रह गये। कपिल मिश्रा और प्रवेश वर्मा जैसे गर्म और उग्र नेता जो केजरीवाल को जैसे को तैसे में जवाब दे सकते थे को अध्यक्ष नहीं बनने दिया गया।

          भाजपा में दंडित करने की प्रक्रिया अप्रत्यक्ष चलती है, गुनाहों की सजा धीरेे-धीरे मिलती है। सिद्धार्टन को भी सजा धीरे-धीरे मिलेगी। दिल्ली से हटा कर उन्हें हिमचाल प्रदेश का संगठन महामंत्री बनाया गया है। जिस प्रकार से सिद्धार्टन ने दिल्ली को डूबोया, सुंदरता और गांधी छाप के कारण भाजपा के संगठन को मृत बनाया उसी प्रकार से हिमाचल को अपनी करतूतों से बर्बाद कर सकते हैं। हिमाचल जगत प्रकाश नड्डा का अपना गृह प्रदेश है। इसलिए जगत प्रकाश नड्डा के लिए भी सिद्धार्टन खतरे की घंटी और भस्मासुर की तरह स्थापित होंगे।

         सिद्धार्टन को हटा कर भाजपा ने अच्छा कार्य तो किया है पर कमजोर संगठन से केजरीवाल का सामना करना बड़ा ही मुश्किल है। अच्छा और उग्र अध्यक्ष ही केजरीवाल का जवाब होंगे । दिल्ली में दो नाम इस तरह के हैं। एक कपिल मिश्रा और दूसर प्रवेश वर्मा। यही दोनों नेता केजरीवाल को उसकी भाषा में ही जवाब दे सकते हैं। पर क्या भाजपा कपिल मिश्रा और प्रवेश वर्मा जैसे उग्र और समय की मांग के अनुसार नेता को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी देने के लिए तैयार है? सिद्धार्टन से छूटकारा पाना दिल्ली भाजपा के लिए शोक नहीं बल्कि खुशी-हर्ष की बात है और केजरीवाल के लिए खतरे की घंटी के सामान है।



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