डेलाइट हार्वेस्टिंग तकनीक के विकास की नई पहल


नई दिल्ली,(इंडिया साइंस वायर): किसी संस्था, व्यक्ति या उत्पाद द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड या ग्रीनहाउस गैसों के रूप में किये जाने वाले कुल कार्बन उत्सर्जन को कार्बन फुटप्रिंट के रूप में जाना जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार मानव के लगभग सभी क्रियालाप उसके कार्बन फुटप्रिंट का कारण बनते हैं, जो पृथ्वी के पर्यावरण के लिए एक बड़ी चुनौती है। ऊर्जा उत्पादन और दक्षतापूर्वक ऊर्जा का उपयोग उन आयामों में शामिल है, जिनका संबंध कार्बन फुटप्रिंट से सीधे तौर पर जुड़ा है। 

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कार्बन फुटप्रिंट कम करने और ऊर्जा दक्षता के निर्माण को बेहतर बनाने के लिए नवीनतम डेलाइट हार्वेस्टिंग तकनीक में एक अनूठे स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) एवं प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्यमंत्री, डॉ. जितेंद्र सिंह द्वारा इस संबंध में जानकारी प्रदान की गई है। डॉ जितेंद्र सिंह की उपस्थिति में बृहस्पतिवार को डेलाइट हार्वेस्टिंग प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत हैदराबाद स्थित स्टार्ट-अप कंपनी ‘स्काईशेड डेलाइट्स प्राइवेट लिमिटेड’ एवं विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के वैधानिक निकाय प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड (टीडीबी) के साथ इस संबंध में करार किया गया है। 

डेलाइट हार्वेस्टिंग या डेलाइट प्रतिक्रिया, एक स्वचालित प्रकाश नियंत्रण रणनीति है, जिसमें आंतरिक विद्युत प्रकाश; कम ऊर्जा लागत में लक्ष्य प्रकाश स्तर बनाए रखने के लिए समायोजन स्थापित किया जाता है। दिन के समय लगातार पर्याप्त रोशनी प्राप्त करने वाले स्थानों पर यह प्रौद्योगिकी अधिक प्रभावी है, जिसमें खिड़कियों से सटी हुई अथवा रोशनदान के पास स्थित प्रकाश व्यवस्था शामिल है।

10 करोड़ रुपये की इस परियोजना के अंतर्गत चौबीसों घंटे बेसमेंट रोशनी के लिए नई प्रौद्योगिकी के विकास के लिए 05 करोड़ रुपये टीडीबी की ओर से स्काईशेड कंपनी को प्रदान किए जाएंगे। कंपनी एट्रियम और सौर तापीय प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए बड़े रोशनदान वाले गुंबदों के डिजाइन और निर्माण का कार्य कर रही है। 

यह स्टार्ट-अप हाल ही में दो नये समाधान लेकर आया है, जिसमें जलवायु अनुकूल भवन का अगला हिस्सा (अग्रभाग) और केंद्रीय एकीकृत डेलाइटिंग सिस्टम शामिल है। सौर ऊर्जा स्पेक्ट्रम में दृश्य प्रकाश के रूप में 45% ऊर्जा होती है और दिन में लगभग 9-11 घंटे तक इसका उपयोग भवनों में रोशनी करने के लिए किया जा सकता है।

यह प्रौद्योगिकी पूरी तरह से स्वदेशी, आर्थिक रूप से व्यावहारिक एवं उपयोग में आसान है और लंबे समय तक इसके कम से कम रखरखाव की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, प्रस्तावित प्रौद्योगिकियां किसी इमारत के लिए भारी मात्रा में धूप का उपयोग करती हैं और उसे भवन में रोशनी के लिए उपलब्ध कराती हैं। इससे एयर कंडीशनिंग (कूलिंग लोड) खपत कम करने के अलावा विद्युत प्रकाश ऊर्जा की खपत 70-80 फीसदी तक कम होती है।

टीडीबी सचिव, आईपी ऐंड टीएएफएस, राजेश कुमार पाठक ने कहा – “सूर्य का प्रकाश सार्वभौमिक रूप से उपलब्ध है और यह ऊर्जा का एक बहुत ही स्वच्छ और लागत प्रभावी स्रोत है। वर्ष 2070 तक भारत को नेट जीरो उत्सर्जन देश बनाने के लिए हम मानते हैं कि यह अनूठी परियोजना परिवर्तनकारी साबित हो सकती है, और पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन-शैली के लिए एक जन-आंदोलन बन सकती है।”

भारत ने वर्ष 2022 के अंत तक अक्षय ऊर्जा स्रोतों से अपनी ऊर्जा आवश्यकता के 175 गीगावाट की क्षमता प्राप्त करने का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है, और 2030 तक 500 गीगावाट प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है, जैसा कि प्रधानमंत्री ने ग्लासगो में सीओपी-26 शिखर सम्मेलन में कहा था। (इंडिया साइंस वायर)


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