प्रजनन के लिये यमुना नदी को नया आशियाना बना रहे हैं जलीय जीव  

 इटावा। देश की सबसे प्रदूषित नदियों मे शुमार यमुना नदी में इन दिनों सैकड़ों नन्हें घड़ियालों की मौजूदगी इस बात का संकेत दे रही है कि डायनासोर प्रजाति के जलीय जीव प्रजनन के लिये चंबल नदी को छोड़कर यमुना को अपना नया आशियाना बना रहे हैं।


उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के भाऊपुरा गांव के पास प्रवाहित यमुना नदी में घड़ियाल ने प्रजनन करके करीब तीन दर्जन से अधिक बच्चों को जन्म दिया है। घड़ियाल के इन बच्चों को देखने के लिए सुबह शाम बड़ी तादाद में गांव वाले नदी के किनारे पहुंचते हैं। 15 जून को 43 बच्चे दिखे थे। इनमें से 2 की मौत हो गयी। उसके बाद बाद मात्र 24 बच्चे पानी मे तैरते हुए दिख रहे हैं। 


पर्यावरणविदों का मानना है कि घड़ियालों की मौजूदगी उस अवधारणा को खारिज करती प्रतीत हो रही है कि प्रदूषित जल में घड़ियाल का प्रजनन नहीं होता है। इससे यह उम्मीद भी बंध चली है कि आने वाले दिनों में चंबल के अलावा यमुना नदी भी घड़ियालों के प्रजनन के लिये मुफीद प्राकृतिक वास बन सकेगा।


भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के संरक्षण अधिकारी डा. राजीव चौहान का कहना है कि यमुना नदी में घड़ियाल का प्रजनन इस बात की ओर इशारा करता है कि इस क्षेत्र में यमुना नदी के पानी में शुद्धता बढ़ रही है और यह क्षेत्र घड़ियालों का प्राकृतिक आवास बन सकता है। यमुना के जल को शुद्व बनाने के प्रयास कारगर साबित होते हुए दिख रहे हैं और आने वाले दिनों में यमुना नदी जैव विविधता के संरक्षण का एक नया मॉडल साबित हो सकता है।


उन्होंने कहा कि असल में यमुना नदी का पानी आगरा के बटेश्वर के बाद काफी हद तक साफ होना शुरू हो जाता है और भाऊपुरा स्थित गांव के पास यमुना नदी में घड़ियाल ने प्रजनन किया है, वो बटेश्वर से अधिक दूरी पर नहीं है। इसलिए यह स्पष्ट है कि यमुना के जल मे कहीं ना कहीं बदलाव आ रहा है। तभी तो घड़ियाल प्रजनन के लिए यमुना की ओर से आकर्षित हो रहे हैं। डॉ. चौहान ने कहा कि फिर भी एक बड़े स्तर के शोध की जरूरत है, क्योंकि यह पहला मौका नहीं है, जब किसी घड़ियाल ने यमुना नदी में प्रजनन किया हो। इससे पहले भी साल 2011, 2019 और अब भाऊपुरा में प्रजनन करके पर्यावरण विशेषज्ञों को हैरत मे डाला है।


सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के सचिव संजीव चौहान बताते हैं कि 15 जून को यमुना नदी में मादा घड़ियाल ने यमुना नदी के किनारे अंडे फोड़े, जिनसे निकलते हुए छोटे छोटे बच्चे देखे गये। उनकी संस्था वन्यजीवों के संरक्षण की दिशा में काम करने में इटावा एवं आसपास के जिलों में सक्रिय है। इस लिहाज से उन्होंने दर्जनों के हिसाब से संस्था के वालंटियरों को एक्टिव कर रखा है, जो इलाके में होने वाली गतिविधियों की जानकारी समय समय पर साझा करते रहते हैं।


यमुना नदी में घड़ियालों के प्रजनन की खबर मिलने के बाद उनके संरक्षण के लिए गांव वालों की मदद ली जा रही है। इलाकाई वन दरोगा ताबिश अहमद ने बताया कि घड़ियाल के प्रजनन के बाद पर्यावरण विशेषज्ञ भाऊपुरा गांव को अपना अध्ययन केंद्र बना रहे हैं। ताबिश बताते हैं कि जब यमुना नदी में घड़ियाल के प्रजनन की जानकारी सामने आई तो बिना मौके पर आये यकीन कर पाना संभव नहीं था। इसलिए मौके पर आया तो देखा कि जो सूचना घड़ियालों को लेकर दी गई थी वो पूरी तरह सच पाई गयी। साथ ही एक नई उम्मीद यह भी जताती है कि यमुना जैसी प्रदूषित नदी में घड़ियाल का प्रजनन एक नये आशियाने की ओर इशारा कर रहा है।


पिछले साल जून माह में इटावा के सुमेर सिंह के किले के नीचे यमुना नदी में घड़ियाल ने प्रजनन किया था। इससे पहले साल 2011 में भी यमुना नदी में इटावा के ही हरौली गांव के पास भी एक घड़ियाल ने इसी तरह से प्रजनन किया था। तब यहां करीब 50 बच्चे देखे गये थे। इन बच्चों को यमुना नदी के देखे जाने के बाद खासी चर्चा हुई थी।


इटावा के प्रभागीय वन निदेशक राजेश कुमार वर्मा ने बताया कि यमुना नदी में घड़ियाल का प्रजनन निश्चित तौर पर अपने आप में सुखद अहसास कराने वाली सूचना है। घड़ियाल के मासूम बच्चों की सुरक्षा के लिए क्षेत्रीय वन रक्षकों की टीम के साथ साथ स्थानीय गांव वालों को भी सजग कर दिया गया है। ऐसा माना जा रहा है कि यमुना नदी का जल घड़ियालों के प्रजनन के मुफीद बन गया है। तभी घड़ियाल ने यहां पर प्रजनन किया है। 


गौरतलब है कि 2007 में जब इटावा मे घड़ियालों की मौत का सिलसिला शुरू हुआ तो यह बात घड़ियाल विशेषज्ञों की ओर से प्रभावी तौर पर कही जाने लगी कि यमुना नदी में हुये प्रदूषण की वजह से दुर्लभ प्रजाति के घड़ियालों की मौत हुई है, लेकिन इस बात को कोई भी घड़ियाल विशेषज्ञ साबित नहीं कर पाया कि घड़ियालों की मौत यमुना नदी के प्रदूषण का नतीजा है।


दिसंबर 2007 से जिस तेजी के साथ किसी अज्ञात बीमारी के कारण एक के बाद एक सैकड़ों से अधिक घडियालों की मौत हुई थी, उसने समूचे विश्व समुदाय को चिंतित कर दिया था। ऐसा प्रतीत होने लगा था कि कहीं इस प्रजाति के घड़ियाल किताब का हिस्सा बनकर न रह जाएं। घड़ियालों के बचाव के लिए तमाम अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं आगे आई और फ्रांस, अमेरिका सहित तमाम देशों के वन्य जीव विशेषज्ञों ने घड़ियालों की मौत की वजह तलाशने के लिए तमाम शोध कर डाले।


घड़ियालों की हैरतअंगेज तरीके से हुई मौतों में जहां वैज्ञानिकों के एक समुदाय ने इसे लीवर सिरोसिस बीमारी को एक वजह माना तो वहीं दूसरी ओर अन्य वैज्ञानिकों के समूह ने चंबल के पानी में प्रदूषण को घड़ियालों की मौत का कारण माना। वहीं दबी जुबां से घड़ियालों की मौत के लिए अवैध शिकार एवं घड़ियालों की भूख को भी जिम्मेदार माना गया। घड़ियालों की मौत की वजह तलाशने के लिए ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने करोड़ों रुपये व्यय कर घड़ियालों की गतिविधियों को जानने के लिए उनके शरीर में ट्रांसमीटर प्रत्यारोपित किए।


यमुना नदी में घड़ियाल ने प्रजनन करके एक नया इतिहास लिखा है। उसी यमुना नदी को अपने प्राकृृतिक स्वरूप को बनाये रखने के लिये देश की राजधानी दिल्ली में सर्वाधिक संघर्ष करना पड़ रहा है। यमुना नदी के किनारे दिल्ली, मथुरा व आगरा सहित कई बड़े शहर बसे हैं। ब्लैक वॉटर में तब्दील यमुना में करीब 33 करोड़ लीटर सीवेज गिरता है। इस सबके बावजूद यमुना नदी में हुये प्रजनन ने यमुना नदी के प्रदूषण को लेकर एक सवाल खड़ा कर दिया है कि अगर हकीकत मे यमुना नदी मैली है तो फिर घडियाल कैसे प्रजनन कर रहे हैं।


 


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