गाँव केवल भौगोलिक स्थान नहीं होते, वे भावनाओं और मानवता के जीवित घर होते हैं - डॉ कुसुम पथारिया
एटा: आज ज़िला एटा के तीन छोटे से गाँव—जाहिदपुर,नगला भजना,और नगला लीलाधर—की धरती पर कदम रखते ही यह एहसास हुआ कि गाँव केवल भौगोलिक स्थान नहीं होते, वे भावनाओं और मानवता के जीवित घर होते हैं। कच्ची मिट्टी की पगडंडियाँ किसी इतिहास की पंक्तियों की तरह लगीं—सीधी, सादी, पर गहरी।
ये बातें एक भेंट वार्ता में सामाजिक न्याय एवं महिला
अधिकारिता बोर्ड की महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ कुसुम पथारिया ने कहीं.
उन्होंने बताया कि बैठक में उपस्थित बुज़ुर्ग माता -पिता को जब गरम शॉल पहनाकर सम्मानित किया गया, तो लगा जैसे वर्षों का संघर्ष, जो अक्सर अनदेखा रह जाता है, अचानक प्रकाश में आ गया हो। उनके काँपते हाथों में जीवन के अनुभवों की गहराई थी और आँखों में वह धैर्य, जिसे किसी विश्वविद्यालय की किताबों में नहीं सिखाया जा सकता। मातृशक्ति को नमन करते हुए लगा कि जैसे गाँव की आत्मा हमारे सामने खड़ी है—अटल और पवित्र।
डॉ कुसुम पथारिया ने बताया कि बाहर पेड़ों की छाँव में बैठे युवा—कुछ सपनों में खोए, कुछ उलझनों में घिरे। उनके चेहरे उसी दुविधा के आईने थे, जो आज हर युवा के सामने खड़ी है—एक राह चमकदार डिग्रियों की, और दूसरी राह मानवीय मूल्यों और कौशल की।मैंने उनसे कहा—“शिक्षा का अर्थ केवल प्रमाणपत्र नहीं, चरित्र है।अच्छा इंसान होना, किसी भी बड़ी नौकरी से बड़ा सम्मान है।”डॉ कुसुम पथरिया ने अनगिनत लोगों की शराब नशे की लत को छुड़ाया है .आज समय बदल रहा है—नौकरियाँ नहीं, कौशल भविष्य का असली धन है।मैंने उन्हें समझाया—“कला सीखो, हुनर अपनाओ।अपने हाथों में ताकत भरो, ताकि परिस्थितियाँ तुम्हें मोड़े नहीं,बल्कि तुम उन्हें दिशा दे सको।”
उन्होंने बताया कि सत्र समाप्त होने पर कुछ पल शांति छाई रही। मुझे लगा—शायद आज दिल से दिल की बात हुई। शायद कुछ बीज उम्मीद के बो दिये गये, जो वर्षों बाद हरे-भरे पेड़ बन कर इन्हीं धरती के लोगों को छाँव देंगे।गाँव की यही ख़ासियत है—यह छोटा होता है, पर भावना विशाल;सुविधाएँ कम होती हैं, पर संवेदनाएँ अनंत;लोग साधारण होते हैं, पर हृदय असाधारण।



