*अमेरिकी घाटे का वर्ल्ड ट्रेड वार*
*आचार्य श्रीहरि*
वर्ल्ड टेªेड वार छिड़ चुका है। क्रिया और प्रतिक्रिया भी बहुत तेज हुई है। दुष्परिणाम कितना घातक होगा, कितना नुकसानकुन होगा, उससे प्रभावित कौन लोग होंगे? डोनाल्ड ट्रम्प की धौंस वाली टैरिफ रणनीति चीन जैसे आक्रामक देशों को कितना झुका पायेगी? विश्व व्यापार संगठन हाथी का दांत बना रहेगा या फिर अपनी सार्थकता और सक्रियता भी दिखायेगा? इस पर मंथन चल रहा है। ऐसे वर्ल्ड टेªेड वार की शुरूआत डोनाल्ड ट्रम्प ने की है। डोनाल्ड ट्रम्प खुलकर और निडर होकर अपनी नीतियां खेलते हैं, जिन्हें अपना हित सर्वोपरि होता है, मुफ्त की रेवडि़यां बांटना उन्हें पंसद नहीं होता है, परहित को सुरक्षित रखना और परहित को समृद्ध रखना उन्हें स्वीकार नहीं होता है। कुछ लोगों को यह आश्चर्य की बात लग रही है कि डोनाल्ड ट्रम्प इतनी खुलकर और आक्रामक ढंग से बैटिंग क्यों कर रहे हैं, इससे अमरिका भी संकट में पड़ सकता है, अमेरिका भी चपेट में आ सकता है, अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो सकती है, अमेरिकी नागरिकों को भी अपनी आमदनी से अधिक खर्च करना पड सकता है, विश्व संवाद नियामकों और अन्य विश्व नियंत्रक नियामकों में अमेरिका अलग-थलग पड सकता है।
अगर डोनाल्ड टैरिफ और डॉलर के खिलाफ शेष दुनिया गोलबंदी की वीरता दिखायी और कोई सर्वमान्य मुद्रा खोज लिया या फिर अमेरिका के खिलाफ कोई सशक्त आर्थिक मोर्चा बना डाला तो फिर अमेरिका कैसे नहीं मुसीबत में पडेगा? लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प को जानने-समझने वाले लोग यह जानते हैं कि वह वर्तमान को देखते हैं, वर्तमान में अपनी नीतियां बनाते हैं, भूत काल को याद नहीं करते हैं और भविष्य की ओर भी नहीं देखते है। उनका पहला कार्यकाल में यह सब अनिवार्य तौर पर सिद्ध हो चुका था। चीन, मैक्सिकों और कनाडा की सांसें थम गयी हैं और उनकी अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल बनेंगे, उनके उत्पादित वस्तुएं अगर महंगी होगी तो फिर उनकी उत्पादित वस्तुएं अमेरिकी बाजार से बाहर हो जायेंगी। चीन, मैक्सिकों और कनाडा को यही डर सता रहा है। अमेरिका में टैरिफ मुक्त देशों की संभावनाएं बहुत ज्यादा बढेगी और भारत जैसे देश इस अवसर का लाभ उठा सकते हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प का टैरिफ प्रेक्षापास्त्र कितना शक्तिशाली है और टैरिफ प्रेक्षापास्त्र चीन, कनाडा और मैक्सिकों की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान पहुंचा सकता है? यह सिर्फ बाजारवाद पर ही आधारित नहीं है। कोई अगर यह समझ रहा है कि टैरिफ का वार सिर्फ बाजारवाद को ही प्रभावित करेगा और नुकसान करेगा, तो यह गलत है और ऐसी उसकी सोच सही नहीं है। डोनाल्ड ट्रम्प ने तो टैरिफ लगाने की नीति को सिर्फ हथकंडा बनाया है, इस हथकंडे से न केवल अपनी अर्थव्यवस्था को संरक्षित व मजबूत करना चाहते हैं बल्कि अपनी साख और शक्ति को भी हासिल करना चाहते हैं। दुनिया में अमेरिका की साख और शक्ति प्रभावित हो जाये, कमजोर हो जाये और असहाय हो जाये, यह न तो डोनाल्ड ट्रम्प को स्वीकार है और न ही अमेरिकी नागरिकों को भी यह स्वीकार है। अमरिकी नागरिक तो अपनी अराजक और उपनिवेशिक संस्कृति की शक्ति पर गर्व करते हैं और गर्व के साथ कहते हैं कि हम दुनिया के राजा है, दुनिया के चौधरी है, दुनिया के चौकदार है और दुनिया के थानेदार है, पूरी दुनिया को हमारे पैरों के नीचे रहना ही होगा। जो बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका की शक्ति बहुत ही कमजोर हुई थी, अमेरिका की चौधराहट भी कमजोर हुआ था, अमेरिका की विश्व थानेदारी भी कमजोर पडी थी। चीन और रूस के सामने अमेरिका असहाय और कमजोर ही हुआ था। चीन और रूस उसे सिर्फ आर्थिक मोर्चो पर ही नहीं बल्कि हर वैश्विक मोर्चो पर पटकनी दर पटकनी दे रहे थे।
चीन को दंडित थोडा कम किया है पर मैक्सिकों और कनाडा पर वज्रपात करने का काम किया है। चीन को सिर्फ दस प्रतिशत का टैरिफ लगाया है जबकि मैक्सिको और कनाडा पर 25 प्रतिशत का टैरिफ लगाया है। आखिर चीन को कम दंडित करने के पीछे कौन सा कारण है? मैक्सिको और कनाडा को अधिक दंडित करने के पीछे कौन सा कारण है? चीन एक आर्थिक शक्ति है, चीन के पास आर्थिक बाजार क्षेत्र भी विस्तृत है, वह अन्य किसी देश की दया और सहायता पर निर्भर नहीं है, लेकिन मैक्सिको और कनाडा तो अमरिका की दया और सहायता पर निर्भर है और इनकी अर्थव्यवस्था भी शक्तिशाली नहीं है। चीन पर कम टैरिफ लगाने के पीछे बहुत ही सटीक कारण और मजबूरी है। चीन के सस्ते माल के कारण अमेरिका का बाजार बहुत ही गुलजार रहता है। अमेरिका की चीन पर आर्थिक निर्भरता कुछ ज्यादा ही है। कई ऐसी वस्तुए हैं जो अमेरिका में बनती ही नहीं है, क्योंकि अमेरिका में उन वस्तुओ के उत्पादकता लागत ज्यादा होता है, इसलिए वस्तुए महंगी होती है, अमेरिका का श्रम बाजार भी महंगा है, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि अमेरिका में श्रम शक्ति सीमित है, श्रम शक्ति के लिए अमेरिका को अवैध शरणार्थियों पर निर्भर रहना पड सकता है, अवैध शरणार्थी अमेिरका की अर्थव्यवस्था को ही नुकसान पहुंचाते हैं। जबकि चीन में कम्युनिस्ट तानाशाही होने के कारण श्रम लागत कम होता है, कंपनियां हायर और फायर नीति यानी मजदूर रखो और मजदूर हटाओं के अधिकार का प्रयोग करती हैं, इस अधिकार से कंपनियां अपने हितों को ज्यादा सुरक्षित करती हैं, यही कारण है कि अमेरिकी कंपनियों को लागत खर्च कम आता है। इसी अचूक हथियार से चीनी कपंनियां दुनिया भर में छायी हुई हैं। पर चीन की वर्तमान प्रतिक्रिया यह कहती है कि उसकी परेशानियों की लंबी फेहरिस्त है और उसकी चिंता भी गंभीर है। चीन ने टैरिफ वार की आलोचना करते हुए कहा है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने दुनिया के आर्थिक मंच को न केवल प्रभावित किया है बल्कि खतरे में भी डाला है। चीन ने बदले की कार्रवाई करने की भी धमकी पिलायी है। इसके साथ ही साथ अमेरिका को विश्व व्यापार संगठन में भी घसीटने की अतिरिक्त धमकी पिलायी है। विश्व व्यापार संगठन की सार्थकता पर प्रश्न खडा हुआ है और उसके लिए यह परीक्षा की घंडी है।
मैक्सिकों और कनाडा को अधिक दंडित करने के पीछे सीाम विवाद भी है। मैक्सिको और कनाडा से लंबी सीमा मिलती है। अमेरिका का चिंतन है कि कनाडा और मैक्सिको जैसे देश अमेरिका की परेशानियां बढाते हैं, उनके लिए समस्याएं खडी करते है और हमारी अर्थव्यवस्था को भी खतरे में डालते हैं। मैक्सिको, कनाडा को बार-बार चेतावनियां पिलायी गयी थी कि वे अपनी सीमा क्षेत्र को मजबूत करें और अवैध शरणार्थियों को रोके। पर ये माने नहीं और अमेरिकी धमकियों को भी नजरअंदाज किये। कुछ दिन पूर्व ही डोनाल्ड ट्रम्प ने कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो को अमेरिका में विलय करने का प्रस्ताव दिया था और कहा था कि कनाडा को अमेरिका का एक प्रदेश बन जाना चाहिए। जस्टिन टूडों का कहना है कि यह टैरिफ नहीं हटे तो फिर कनाडा में मंदी की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी, कनाडा को आर्थिक समस्याएं कठिन होगीे। टूडों ने अपने देश से स्वदेशी वस्तुएं खरीदने की अपील की है। कनाडा में उत्पादित वस्तुओं का बडे पैमाने पर निर्यात अमेरिका को होता है। 75 प्रतिशत वस्तुएं कनाडा अमेरिका को निर्यात करता है। निश्चित तौर पर कनाडा के लिए अमेरिका एक बहुत बडा बाजार है। मैक्सिकों को भी टैरिफ से मंदी और कंगाली जैसी परिस्थितियो का सामना करना पडेगा।
डोनाल्ड ट्रम्प अपना पक्ष मजबूती के साथ रखते हैं। ट्रम्प ने टैरिफ को महंगाई से जोडने से इनकार कर दिया। उनका कहना है कि टैरिफ से महंगाई नहीं बढती है बल्कि टैरिफ कामयाबी के प्रतिक होते हैं, थोडे समय के लिए रूकावटें आती हैं पर लोगों को समझदारी विकसित करनी चाहिए। ट्रम्प आगे कहते हैं कि मेरे पिछले कार्यकाल में टैरिफ हमारे लिए वरदान साबित हुआ था और हमने कई देशों पर टैरिफ लगाये थे , टैरिफ के माध्यम से हमनें 600 अरब डॉलर कमाये थे। इस टैरिफ प्लान से भी हम कई सौ डॉलर कमा सकते हैं और स्वदेशी वस्तुओं और स्वदेशी बाजार को समृद्ध कर सकते हैं, हम अपनी बैरोजगारी की समस्या को नियंत्रित कर सकते हैं। फिर भी अमेरिका को परेशानी नहीं होगी, यह कहना मुश्किल है। कई उपयोगी और अनिवार्य क्षेत्र की जरूरतें महंगी और चुनौतीपूर्ण होगी। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि टैरिफ वार के कारण अमेरिकी नागरिकों का जीवन चुनौतीपूर्ण होगा और संकट में खडा होगा, हर अमरिकी नागरिकों पर सालाना 1200 डॉलर का अतिरिक्त भार पडेगा। डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ एक धौंस वाली रणनीति का हिस्सा है और दुनिया को अपने पैरों के नीचे रखने का हथकंडा भी है।