दिल्ली में प्रदूषण का सामना करने के लिए तैयार स्मॉग टावर
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ई दिल्ली (इंडिया साइंस वायर): दिल्ली को दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों शुमार किया जाता है, जहाँ अत्यधिक प्रदूषण के कारण हवा में पाए जाने वाले पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे सूक्ष्म कणों से वायु गुणवत्ता प्रभावित होती है। हवा में तैरते ये सूक्ष्म कण श्वसन तंत्र के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुँचा सकते हैं। सर्दियों के दौरान स्मॉग की धुंधली चादर इस ख़तरे को कई गुना बढ़ा देती है। इस चुनौती से निपटने के लिए कई तरह के उपाय किए जा रहे हैं। इसी क्रम में, दिल्ली में वायु-गुणवत्ता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से स्मॉग टॉवर स्थापित किया जा रहा है।
स्मॉग टॉवर एक ऐसी विशिष्ट संरचना है, जिसे वायु प्रदूषण को कम करने के लिए बड़े/मध्यम पैमाने के एयर प्यूरीफायर के रूप में डिज़ाइन किया गया है। आनंद विहार, दिल्ली में भारत के इस पहले क्रियाशील स्मॉग टॉवर का वर्चुअल रूप से उद्घाटन करते हुए केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने आशा व्यक्त की है कि पायलट स्मॉग टॉवर परियोजना प्रभावी परिणाम देगी और वायु गुणवत्ता में सुधार के प्रयासों का पूरक बनेगी। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी एक वक्तव्य में यह जानकारी दी गई है।
आनंद विहार में 20 मीटर से अधिक की ऊंचाई वाला यह एक डॉउनड्राफ्ट स्मॉग टॉवर है। इसमें प्रदूषित हवा टॉवर के ऊपर से आती है और साफ हवा नीचे से निकलती है। इसका उद्देश्य वायु प्रदूषण (पार्टिकुलेट मैटर) में स्थानीय तौर पर कमी लाना है। टावर में उपयोग की जाने वाली निस्पंदन प्रणाली को मिनेसोटा विश्वविद्यालय द्वारा 90% की अपेक्षित दक्षता के साथ डिजाइन किया गया है। 1000 घनमीटर प्रति सेकंड की दर से एयरफ्लो दर प्रदान करने के लिए इसमें बड़े पंखे लगाए गए हैं। टावर का निर्माण टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड द्वारा एनबीसीसी (इंडिया) लिमिटेड के साथ मिलकर किया गया है।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) 2019 से देश में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) को लागू कर रहे हैं, जिसमें वर्ष 2024 तक देश भर में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 10 और पीएम 2.5) सांद्रता में 20 से 30% की कमी हासिल करने का लक्ष्य है। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत वायु प्रदूषण के नियमन के लिए "PRANA" (पोर्टल फॉर रेगुलेशन ऑफ एयर-पॉल्यूशन इन नॉन अटेनमेंट सिटीज) नामक पोर्टल भी लॉन्च किया गया है। पोर्टल www.prana.cpcb.gov.in शहरों की वायु संबंधी कार्ययोजना के कार्यान्वयन की भौतिक और वित्तीय स्थिति की ट्रैकिंग करने में मदद करेगा और जनता को वायु गुणवत्ता से जुड़ी जानकारी प्रदान करेगा।
ऐसे शहरों को ‘नॉन-अटेनमेंट’ श्रेणी में रखा जाता है, जो लगातार 5 साल तक पीएम 10 (पार्टिकुलेट मैटर, जो 10 माइक्रोन या उससे कम व्यास का होता है) या नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के लिए राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) को पूरा नहीं कर पाते हैं। शहरों के वायु प्रदूषण स्रोतों (मिट्टी एवं सड़कों पर उड़ने वाली धूल, वाहन, घरेलू ईंधन, म्युनिसिपल कचरे का जलाया जाना, निर्माण सामग्री और उद्योग) को लक्षित करने वाले 132 नॉन-अटेनमेंट शहरों (एनएसी)/मिलियन प्लस शहरों (एमपीसी) के लिए वायु गुणवत्ता में सुधार हेतु शहर-विशिष्ट कार्य योजनाएं तैयार की गई हैं, और इन पर अमल किया जा रहा है।
केंद्रीय मंत्री, जो नई दिल्ली में दूसरे इंटरनेशनल-डे ऑफ क्लीन एयर फॉर ब्लू स्काईज को चिह्नित करने के लिए एक कार्यक्रम में बोल रहे थे, ने कहा कि केंद्र सरकार ने पूरे देश में वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए कई पहल की हैं, जिसमें प्रधानमंत्री स्वयं 100 से अधिक शहरों में वायु गुणवत्ता में समग्र सुधार का लक्ष्य निर्धारित कर रहे हैं। पर्यावरण मंत्री ने कहा, "वर्ष 2018 की तुलना में 2019 में 86 शहरों में बेहतर वायु गुणवत्ता दर्ज की गई है, जो 2020 में बढ़कर 104 शहरों तक पहुँच गई।" (इंडिया साइंस वायर)