किसानों के मुद्दों पर व्यापारियों के लिए बिचोलिए शब्द का इस्तेमाल पर देश भर के व्यापारी बेहद नाराज़
अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल का जवाब दिया जाएगा
दिल्ली एवं दिल्ली के आस पास चल रहे किसान आंदोलन में देश के व्यापारियों के लिए बिचोलिए शब्द का उपयोग बेहद अपमानजनक रूप से हो रहा है जिसको लेकर देश भर के व्यापारियों में ख़ासी नाराज़गी है । आज इस मुद्दे को बेहद गम्भीरता से लेते हुए कन्फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्ज़ (कैट) ने गहरा एतराज जताते हुए कहा की देश के व्यापारी जो जीवन भर व्यापार क़ी चक्की में पिसते हैं और सरकार के लिए बिना किसी पारिश्रमिक के राजस्व इकट्ठा करते हैं , उन्हें बिचोलिया कह कर उनका अपमान करना बेहद अफ़सोस जनक है । कैट ने कहा क़ी देश में किसान को यदि उसकी उपज का सही दाम नहीं मिलता तो इसका दोष व्यापारियों को बिचोलिए कह कर उनके माथे नहीं माँड़ा जाना चाहिए । इसका सीधा दोष देश की त्रुटिपूर्ण कृषि व्यवस्था ,अक्षम सरकारी प्रशासन और व्यवस्था है जिसने आज़ादी के 75 वर्षों के बाद भी किसान को घाटे की खेती करने पर मजबूर कर रहा है । सभी दल बिचोलिए कहकर व्यापारियों को अपमानित करने पर तुले हुए हैं उन्हें समझ जाना चाहिए की देश का व्यापारी इस मुद्दे पर बोलने वाले हर शब्द को सुन रहा है और समय आने पर इसका माकूल जवाब देने की ताक़त भी रखता है ।
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी सी भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने किसान आंदोलन के मुद्दे पर *बिचोलिये ख़त्म करने* पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा की जिनको बिचोलिया कह जा रहा है वो कौन है - स्पष्ट रूप से ये वो व्यापारी हैं जो हर सूरत में देश के किसान की फसल को बिकाने में किसान की सहायता करते हैं , ये वो लोग हैं जब देश के बैंक और सरकारी व्यवस्था किसान की मदद करने में फेल ही जाती है तब ये लोग किसान को वित्तीय एवं अन्य सहायता देते हैं , ये वो लोग हैं को किसान को बीज देने से लेकर उसके उत्पाद को आम उपभोक्ता तक अपनी सप्लाई चैन के द्वारा देश भर में पहुँचाते है , ऐसे लोगों को बिचोलिया कहना उनके साथ बेहद अन्याय और सरासर उनका अपमान करना है ।
श्री भरतिया एवं श्री खंडेलवाल ने कहा की बहुत हो गया और अब यह स्पष्ट होना चाहिए कि बड़े कॉर्पोरेट घराने या अन्य लोग कृषि क़ानूनों के लागू होने के बाद अब बिचौलिए कौन और किस प्रकार के होंगे। इन संस्थानों में काम करने वाले मैनेजर, कलेक्शन सेंटर, सैंपलर, ग्रैडर, मज़दूर, दामन उठाने या लादने वाला एवं अन्य लोग, क्या बिचोलिए नहीं होंगे? क्या उनको दिए जाने वाला पैसा या कमीशन या ब्रोकरेज ग्राहकों से वसूला नहीं जाएगा? क्या वो रक़म कृषि व्यवस्था का हिस्सा नहीं बनेगी ? क्या कोई दान में यह सब काम करेगा ? व्यापारियों के प्रति हल्के शब्दों का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. पूरा आर्थिक ढांचा व्यापारियों के ऊपर ही खड़ा है. पूरी वितरण प्रणाली व्यापारियों के ऊपर ही खड़ी है | सरकारी वितरण प्रणाली पूरे देश में विफल रही है. यह बात भी याद रखना जरूरी है.। इसलिए इतने बड़े वर्ग को जो अर्थव्यवस्था का महतवपूर्ण हिस्सा है, को बिचोलिया कह कर अपमानित करना और उसको ख़त्म करने का दावा कहाँ तक जायज़ है इस पर सरकार, सभी राजनीतिक दलों और अन्य लोगों को गम्भीरता से विचार करना चाहिए ।
श्री भरतिया एवं श्री खंडेलवाल ने कहा की यह कहना बेहद आसान है की बिचोलिये ख़त्म हो जाएँगे पर अफ़सोस किसी ने यह नहीं सोचा क़ी अगर यह लोग जिनको बिचोलिया कह जा रहा है , अगर ख़त्म हो गए तो उसका क्या परिणाम होगा, देश में कितनी बेरोज़गारी बड़ेगी और देश की अर्थव्यवस्था को कितना बड़ा नुक़सान होगा । किसी एक वर्ग को ख़ुश करके एक अन्य बड़े वर्ग के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करना उस वर्ग के साथ बड़ा अन्याय है ।