कोरोना के कोहराम से मीडिया जगत मे हाहाकार ,पत्रकार हुए लाचार 

नई दिल्ली । कोरोना संकट काल के काले बादल प्रजातंत्र के प्राण वायु संचार करने पत्रकार बन्धुओ के लिए यमराज बन घूम रहा है ,वे कभी भी किसी के अपने काल के ग्रास बनाने को आतुर है।
 विश्व की सबसे बडे प्रजातंत्र के रूप मे भारत की पत्रकारिता विगत 73 साल में अपने सबसे निचले व बुरे वक्त में जा पहुँची है।लोकतंत्र के चोथे स्तम्भ के रूप अपने बल बुते अपनी  पहचान बना चुकी  पत्रकारिता ने अपनी उपस्थिति दर्ज की थी।समय के बदलते दौर में समाचार पत्र ,पत्रिका के संग ,आकाशवाणी ,दूरर्दशन ,व प्राइवेट चैनलोंं ने दस्तक दी, कुछ् खबरिया चैनलोंं ने बैकिग न्यूज कर स्ट्रगिग आप्रेशन कर दर्शकों के मध्य अपनी  पैठ व निजी जीवन मे तॉक झॉक करना  चालू कर  टी आर पी० व विज्ञापन के माध्यम से अपनी कमाई का जरिया बना ली ,तभी से भारतीय पत्रकारिता व पत्रकार पर बुरी काली छाया पड़ने लगी थी , प्रिन्ट मीडिया से जुड़े संपादकोंं ,पत्रकारोंं ने अपनी कड़ी मेहनत व राष्ट्र सेवा की भाव सें अपनी अनवरत सेवा भाव से अपनी कार्य क्षमता में कोई कमी नही छोड़ी,
तभी दिल्ली की सता पर परिवर्तन   की दस्तक दी ,सरकार ने अपनी सोच ब शक्ति के अनुसार सोशल मीडिया का वायरस का वायरल को किया ,नाम दिया डिजिटल इण्डिया का नारा दिया , देश के समर्पित सरकार व जनता के मध्य मे सूचना के आदान प्रदान करने बाले माध्यम को अनदेखी ही नही की बल्ककि  पूर्व केन्द्र सरकार के द्वारा विज्ञापन नीति के द्वारा आर्थिक पोषण  के लिए गठित डी० ए० वी० पी०  के निति मे परिवर्तन कर   गोदी मीडिया को प्रमोट करने कमर तो पहले ही टूटी हुई थी। रही सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी है ।इस महामारी का संक्रमण भारतीय पत्रकारिता की देह में दिनों दिन फैलता जा रहा है।प्रिंट हो या टेलिविज़न , रेडियो हो अथवा डिज़िटल - सारे रूप छटपटाते दिखाई देते हैं । कश्मीर से कन्याकुमारी तक छँटनी ,वेतन में कटौती ,नौकरी से बर्ख़ास्तगी ,पत्रकारों का मानसिक उत्पीड़न और संस्थाओं के दरवाज़े लटके अलीगढ़ी ताले सारी व्यवस्था को चिढ़ाने लगे हैं।ख़ौफ़नाक यह है कि निकट भविष्य में इस ख़तरे से रिहाई की कोई सूरत नज़र नहीं आ रही है। लोकतंत्र के चौथे खंभे पर लटकी यह तलवार इसलिए भी डराती है क्योंकि बाक़ी तीन स्तंभों के माथे पर इसकी शिकन या वेदना तक नहीं है। यह आत्मघाती है।इतना ही नहीं ,उनके विरोध में इन दिनों पुलिस और सरकार बदले की भावना से कार्रवाई करने पर उतारू लगती है।


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