अपने डेढ़ साल के घायल बच्चे को इलाज के लिए अस्पताल-दर-अस्पताल भटकता रहा पिता,नोएडा और ग्रेटर नोएडा के पांच अस्पतालों ने किया निराश

आखिर, दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मिला सहारा 


नोएडा। कोरोना संक्रमण काल के बीच सरकारी व निजी अस्पतालों में इलाज करवाना लोहे के चने चबाना जैसा हो गया है। अगर पीड़ित गरीब है तो निजी अस्पताल उसे पास फटकने नहीं देते हैं। सरकारी अस्पताल कोरोना का हवाला देकर मरीज को टरका देते हैं। एक ऐसा ही बदनसीब पिता अपने डेढ़ साल के घायल बच्चे को इलाज के लिए अस्पताल-दर-अस्पताल भटकता रहा। आखिर, नोएडा और ग्रेटर नोएडा के पांच अस्पतालों से निराश होने के बाद बच्चे को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती किया गया। फिलहाल वह वेंटीलेटर सपोर्ट पर है।


डॉक्टरी पेशा अब धर्म नहीं, धन कमाने का जरिया बन गया है। जहां तक सरकारी अस्पतालों की बात है, वो हमेशा ही संसाधनों कमी का रोना रोकर मरीज को बला समझ कर टालते रहते हैं। ग्रेटर नोएडा के डाढा गांव में किराये पर रहने वाला रोशन भी इस सिस्टम का शिकार हुआ है। रोशन लाल का तीन साल बेटा छत पर खेलने के दौरान बच्चे नीचे गिर गया था। उसे सिर में गंभीर चोट आई है। पिता रोशन लाल बच्चे को लेकर ग्रेटर नोएडा के आइवरी अस्पताल पहुंचे। वहां डॉक्टरों ने प्राथमिक उपचार के बाद बच्चे को एक निजी एंबुलेंस से सीएचसी बिसरख रेफर कर दिया। वहां पहुंचने पर डॉक्टरों ने सिटी स्कैन व एक्सरे की सुविधा नहीं होने की बात कहकर ग्रेटर नोएडा के यथार्थ अस्पताल रेफर कर दिया।


यर्थाथ अस्पातल पहुंचने पर डॉक्टरों ने कहा, इस अस्पताल में सिर्फ कोविड मरीजों का इलाज होता है। इसलिए उसे नोएडा के सेक्टर-110 वाले यथार्थ अस्पताल जाना होगा। वहां पहुंचने पर डॉक्टरों ने बताया कि इलाज में करीब 25 हजार रुपये का खर्च आएगा। पैसा जमा करने पर ही उपचार शुरू होगा। रुपये जमा करने में असमर्थता जताने पर बच्चे को नोएडा के जिला अस्पताल रेफर कर दिया। 


रोशन लाल किसी तरह बच्चे को लेकर नोएडा के सेक्टर-30 स्थित जिला अस्पताल पहुंचे। वहां डॉक्टरों ने बाल रोग विशेषज्ञ व सिटी स्कैन सहित अन्य सुविधाएं नहीं होने की बात कहकर बच्चे को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले जाने को कहा। अस्पताल-दर-अस्पताल भटकने के बाद बच्चे को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में बुधवार को भर्ती कराया गया। वहां बच्चा फिलहाल वेंटीलेटर सपोर्ट पर है। लेकिन, निजी एंबुलेंस में एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के चक्कर काटने में ही रोशन लाल का बिना इलाज के 3600 रुपये का खर्च हो गए।


 


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