अंतहीन लक्ष्य

   









 















अंतहीन लक्ष्य


 


अंतहीन लक्ष्य की डगर पर, भटक रही है दुनिया सारी।


बह्यतत्व को सत्य समझकर, भौतिकता चुनती बारी बारी।।


 


छोर होता है जहाँ पर, शुरुआत की किरण वहीं से


चित्तवृत्ति पूर्ण हुई जहाँ पर, नयी का उद्गम वही से


 


मनो स्थिति और माया की कब तक करेगें सब सवारी।


 


अंतहीन लक्ष्य की डगर पर, भटक रही है दुनिया सारी।


बह्यतत्व को सत्य समझकर, भौतिकता चुनती बारी बारी।।


 


यद्यपि फल के सुक्ष्म बीज में पूरा वृक्ष छुपा होता है।


उसी तरह .....


आत्मतत्व में  सृष्टि का अस्तित्व छिपा होता है।


 


उन्मत्त विषय के झोको से। उद्विग्न हुऐ उन्मुक्त भी हुए।


उपशमन नहीं कर सकते तो उपलंभ में क्यूं उन्मुख हुए।


 


भटक भटक कर वसुधा पर सागर में मिलते बारी बारी।


 


अंतहीन लक्ष्य की डगर पर, भटक रही है दुनिया सारी।


बह्यतत्व को सत्य समझकर, भौतिकता चुनती बारी बारी।।


 

   ~ अटल नारायण 
     


 

 



 



 





 










 

 








 

 







 







 




 





 



 




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