नई न्यूनतम मजदूरी - दिल्ली में मेहनतकश वर्ग के संघर्ष की जीत

 


सीपीआई(एम) की दिल्ली राज्य कमेटी AAP सरकार द्वारा अकुशल श्रमिकों का  मासिक न्यूनतम वेतन बढ़ाकर 14,842 रुपये प्रति माह तय करने की घोषणा का स्वागत करती है। इसके साथ ही अर्ध-कुशल एवं कुशल श्रमिकों के वेतन में वृद्धि  का भी स्वागत है। मजदूरों के न्यूनतम वेतन में हुई यह बढ़ोत्तरी दिल्ली के वामपंथी ट्रेड यूनियनों एवं श्रमिकों के लंबे संघर्षों तथा दिल्ली उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय में उनके द्वारा की गई कानूनी लड़ाई का परिणाम है। माकपा इस जीत के लिए दिल्ली के मजदूरों को हार्दिक बधाई देती है।


दिल्ली सरकार द्वारा अधिसूचित 14,842 रुपये प्रति माह न्यूनतम मजदूरी भाजपा की केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित न्यूनतम मजदूरी से एकदम उलट है। केंद्र की भाजपा सरकार ने कोड-ऑन-वेजेस बिल 2019 में राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मजदूरी 4,628 रुपये प्रति माह (178 रुपए प्रति दिन) तय करना प्रस्तावित किया है। इससे भाजपा और उसकी केंद्र सरकार का मजदूर विरोधी चेहरा और चरित्र बेनकाब होता है।


नए न्यूनतम वेतन अधिसूचना का स्वागत करते हुए, माकपा इस तथ्य को भी रेखांकित करती है कि दिल्ली के श्रमिकों के विशाल बहुमत को न्यूनतम वेतन नहीं मिल रहा  है। दिल्ली राज्य सरकार द्वारा दिसंबर 2018 में 'मिशन न्यूनतम मजदूरी' – के तहत किए गए सर्वेक्षण से इस बात की पुष्टि होती है।  इस सर्वेक्षण के निष्कर्षों से पता चलता है कि दिल्ली में 98% मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिल रहा।


यह राज्य सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी को लागू करने के लिए अपेक्षित मशीनरी खड़ा करने  के किसी गंभीर प्रयास के अभाव का परिणाम है। दिल्ली के श्रम विभाग में मुलाजिमों की भारी कमी है। दिल्ली के 31 औद्योगिक क्षेत्रों में अभी सिर्फ 15 श्रम निरीक्षक हैं। हम मांग करते हैं कि नए न्यूनतम मजदूरी के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक औद्योगिक क्षेत्र में कम से कम एक श्रम निरीक्षक तैनात किया जाए। राज्य सरकार को श्रम विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को रोकने के लिए भी कदम उठाने चाहिए। माकपा आगाह करती है कि यदि न्यूनतम मजदूरी को लागू करने में राज्य सरकार द्वारा किसी भी तरह की आनाकानी हुई तो उसे   दिल्ली के लाखों मजदूरों के गुस्से का सामना करना पड़ेगा।


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