दिव्यांग कलाकारों ने खड़ा किया प्रेरणा का पहाड़

नौएडा लोकमंच के मंच पर
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-राजेश बैरागी-
ऊंचे शिखर वाले पहाड़ की जड़ें गहरी खाइयों में होती हैं। पहाड़ इसलिए पहाड़ है क्योंकि उसे खाई का सान्निध्य प्राप्त है।जब कोई पंगु पहाड़ की चोटी फतह करता है,जब कोई अधूरी देह का कर्जदार पूरी देह के स्वामियों के सामने चुनौती पेश करता है तब कला मस्त होकर नाचने लग जाती है और कंठ से स्वर लहरियां फूटने लगती हैं।
       आज शाम ऐसा ही हुआ जब उत्तराखंड के गहन पहाड़ों से निकलकर सुरेन्द्र कमांडर ने न केवल गाया बल्कि नृत्य किया और कॉमेडी पेश की। मौका था एमेटी विश्वविद्यालय सेक्टर १२५ नौएडा के ऑडिटोरियम में नौएडा लोकमंच द्वारा आयोजित'जीना इसी का नाम है' कार्यक्रम का। कमांडर को प्रकृति ने अधूरी देह दी है। उसके पैर हैं भी और नहीं भी।उसी के जैसे बीस और दिव्यांग कलाकारों निर्मल कुमार,पनीराम,घनसिंह कोरंगा, कल्पना चौहान आदि ने बेहद खूबसूरत गीत, संगीत और नृत्य पेश किया। व्हीलचेयर पर नृत्य करने वाले कलाकार किसी बाजीगर से कम नजर नहीं आ रहे थे। प्राकृतिक रूप से दिव्यांग और हादसों में हाथ पांव गंवा देने वाले इन कलाकारों ने ईश्वर को दोष देने में समय नहीं गंवाया। उनके हौंसले ने चुनौतियों को अवसरों में बदल दिया। राजेन्द्र चौहान ने उन्हें तराशा तो हीरे अपनी चमक पा गए और नौएडा लोकमंच ने इन नगीनों को दुनिया की नजर में लाने का बड़ा काम आज कर दिखाया।


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