संघ, स्वयंसेवक और श्री गुरुदक्षिणा अपने पांव पर मजबूती से खड़ा है विश्व का सबसे बड़ा संगठन

गुरु पूर्णिमा 16 जुलाई पर विशेष (भाग-2)


भारतवर्ष के सम्पूर्ण राष्ट्रजीवन के प्रतीक, भगवान भास्कर के उदय की प्रथम रणभेरी, भारतीय संस्कृति की पूर्ण पहचान और भारत के वैभवकाल से लेकर आजतक के कृमिक इतिहास के प्रत्यक्षदर्शी परम पवित्र भगवा ध्वज को श्रीगुरु मानकर राष्ट्र के पुर्नउत्थान में कार्यरत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक देश और विदेश में 'भगवा जागरण' के लिए कठिबद्ध है भारतवर्ष पुनः जगदगुरु के सिंहासन पर विराजमान हो इस हेतु कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ते जा रहे हम स्वयंसेवक किसी की सहायता, अनुदान, आर्थिक सहारे और प्रमाण पत्र पर आश्रित नहीं हैं। सम्भवतः संघ ही विश्व का एकमात्र ऐसा विशाल संगठन है जो विचारधारा (हिन्दुत्व), उद्देश्य (परम वैभव), कार्यपद्धिति (नियमित शाखा) और पवित्र साधनों (श्रीगुरु दक्षिणा) के साथ अपने स्वयं के मजबूत आधार पर खड़ा है।


वास्तव में संघ की वास्तविक पहचान है संघ का स्वयंसेवक और स्वयंसेवक की पहचान है त्याग, बलिदान, तप, सेवा और समर्पण। इन सभी गुणों को हम स्वयंसेवक भगवा ध्वज से प्राप्त करते हैं। श्रद्धाभाव से किया गया समर्पण गुरु दक्षिणा कहलाता है। इस समर्पण की कोई सीमा अथवा परिधि नहीं होती। तन-मन-धन के समर्पण के साथ आत्मसमर्पण के अंतिम पड़ाव तक पहुंचना यही श्रद्धाभाव है। यहीं से मोक्ष की यात्रा प्रारम्भ होती है। यह भी सत्य है कि मनुष्य के अंतिम लक्ष्य 'मोक्ष' की यात्रा का कोई एक मार्ग भी नहीं हो सकता। संत महात्मा ज्ञान के मार्ग से इस यात्रा को प्रारम्भ करते हैं। अनेक महापुरुष भक्ति के माध्यम से इस यात्रा पर निकलते हैं। कई सज्जन पुरुष नर सेवा - नारायण सेवा के रास्ते पर चलकर मोक्ष की ओर बढ़ते हैं। वीर योद्धा रणभूमि में प्राणोत्सर्ग करके मोक्ष प्राप्त करते हैं। भामाशाह जैसे धनाढ्य अपना सब कुछ राणा प्रताप जैसे वीर पुरुष को समर्पित करके राष्ट्र सेवा का अनूठा आनन्द लेते हैं। उनके लिए यही मोक्ष का सर्वोत्तम मार्ग है। संघ के स्वयंसेवक समाजसेवा, धर्मरक्षा और राष्ट्र भक्ति के रास्ते पर चलते हुए मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं।


बगदादी जैसे दुर्दांत दहशतगर्द समझते हैं कि दुनियाभर से सज्जन लोगों को समाप्त करके जो बचेगा, वही उनके लिए खुदा की नियामत होगी। दहशतगर्दी के रास्ते से 'निजाम-ए-मुस्तफा' की हुकूमत की स्थापना करना। अर्थात खुदा के बंदों का साम्राज्य खड़ा करना, ये मार्ग भी अख्तयार किया जा रहा है। इसके खतरे से संसार कांप उठा है। विश्व में तलवार के जोर पर कत्लोगारत करके सज्जन लोगों को एक ही मार्ग पर चलने के लिए बाध्य करने का रास्ता है यह। जाहिर है इस रास्ते में विवेक नाम की कोई चीज नहीं है, मानवता भी कहीं नजर नहीं आती। इसी तरह एक और मानव समुदाय ने भी सेवा की आढ़ में दुनियाभर में जिस साम्राज्य की स्थापना की थी उसने कई मानवीय सभ्यताओं को समाप्त कर दिया। गरीबी और गुरबत के मारे लोगों को सेवा के झांसे में फंसाकर अपने मजहब से शिकंजे में लेकर उनके मूल धर्म, समाज और राष्ट्र का दुशमन बना देना इनके मोक्ष का मार्ग बन गया। हमारे देश भारत के लोगों (हिन्दुओं) के गौरवशाली इतिहास को बिगाड़ने में कुछ हद तक सफल रहे इन लोगों ने हमारे राष्ट्रीय/धार्मिक अस्तित्व को समाप्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। परिणामस्वरूप आज हमारे देश में काले अंग्रेजों का बोलबाला है। एक तीसरे वर्ग ने भी मजदूरों और किसानों के नाम पर पूरे विश्व पर अपना परचम लहराने की कोशिश की थी। लाल सलाम की भावुकता के साथ दुनिया के मजदूरों को एक हो जाने का आवाहन किया था। 'पूंजीवाद का सर्वनाश और 'मेहनतकशों का राज इन दो ध्येयवाक्यों के साथ ये लोग प्रारम्भ में तो बहुत शीघ्र ही सफलता की सीढ़ियां चढ़ गए।


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

*"आज़ादी के दीवानों के तराने* ’ समूह नृत्य प्रतियोगिता में थिरकन डांस अकादमी ने जीता सर्वोत्तम पुरस्कार

ईश्वर के अनंत आनंद को तलाश रही है हमारी आत्मा

सेक्टर 122 हुआ राममय. दो दिनों से उत्सव का माहौल