मछुआरों के हित में संसद तक गूंज उठी बिहार की आवाज
· रुडी ने कहा, बिहार मछली उत्पादन में अग्रणी, परंतु सुविधाओं से वंचित!
· 95 करोड़ भारतीय मछली उपभोक्ता, 1 करोड़ लोग उत्पादन से जुड़े, बिहार में 40 लाख मछुआरे।
· 2014 में फिशिंग 46 लाख टन, 2025 में 126 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 131 लाख टन
· 2013-14 में कुल मछली उत्पादन 95.7 लाख टन वहीं 2023-24 में 184.02 लाख टन।
· 4500 रुपये की सहायता योजना बिहार में प्रक्रियागत अड़चनों के कारण तीन वर्षों से शून्य
· बिहार के लिए 91.9 करोड़ रुपये स्वीकृत, जिसमें 1,708 परिवहन सुविधाएँ, 52 कोल्ड स्टोरेज, 1 होलसेल फिश मार्केट और 90 फिश कियोस्क
· लोकसभा में हल्के-फुल्के हास्य-व्यंग्य की लहरें भी चली
· बिहार के मछुआरों को बेहतर वित्तीय सहायता और आधुनिक बाजार सुविधाओं की माँग सांसद ने की।
· बिहार में मछली उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, देशभर में बिहार अब चौथे स्थान पर, पहले नौवें स्थान पर था।
· वर्ष 2014-15 में 4.7 लाख टन से बढ़कर 8.73 लाख टन, जबकि कुल क्षमता 12.70 लाख टन।
· बिहार में मत्स्यपालन के लिए विस्तृत जल संसाधन उपलब्ध, लेकिन आधुनिक बाजार और संरचना की जरूरत।
· बिहार में प्रति व्यक्ति मछली खपत 6.4 किलोग्राम, जिससे मत्स्यपालन के और विस्तार की संभावनाएँ।
नई दिल्ली : बिहार की पावन धरती पर बहती गंगा के जल में मछुआरों के श्रम का पसीना घुल जाता है, लेकिन उनके परिश्रम का मूल्य उन्हें नहीं मिलता। आज लोकसभा में सारण से भाजपा सांसद सह पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री राजीव प्रताप रूडी ने इस पीड़ा को संसद के पटल पर रखा और बिहार के लाखों मछुआरों की आवाज़ को बुलंद करने के साथ मत्स्यपालन से जुड़े देश के मछुआरों एवं उनके परिवारों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की। उन्होंने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के तहत बिहार के मछुआरों को वित्तीय सहायता, मत्स्य खुदरा बाजार में उचित मूल्य, तथा राज्य में मॉडल मत्स्यपालन ग्राम परियोजना से संबंधित विषयों पर सांसद ने सरकार से जवाब मांगा।
लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला द्वारा तारांकित प्रश्न संख्या 101 बुलाए जाने पर सांसद श्री रूडी ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘बहुत दिनों बाद नंबर आया है!’ फिर उन्होंने गंभीर मुद्दे पर आते हुए बताया कि भारत में मछली खाने वालों की संख्या 95 करोड़ है, जबकि मछली खिलाने वाले मछुआरों की संख्या मात्र 1 करोड़। इसमें से 40 लाख मछुआरे अकेले बिहार में हैं, जो तालाबों, पोखरों और नदियों के जल में परिश्रम की लहरें बहाते हैं।
उन्होंने लोकसभा में बताया कि वर्ष 2014 में इनलैंड फिशिंग उत्पादन 46 लाख टन था, जो 2025 में बढ़कर 131 लाख टन हो गया। यह केंद्र सरकार की योजनाओं का परिणाम है, परंतु बिहार के मछुआरों को वित्तीय सहायता योजना का लाभ क्यों नहीं मिला? सांसद ने यह भी उल्लेख किया कि 2022-23, 2023-24 और 2024-25 में बिहार के मछुआरों को योजना के तहत एक भी रुपया नहीं मिला! उन्होंने मंत्री महोदय से आग्रह किया कि बिहार के मछुआरों को उनका हक़ मिलना चाहिए।
केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री श्री ललन सिंह ने उत्तर देते हुए स्वीकार किया कि 2013-14 में देश में 95.7 लाख टन मछली उत्पादन था, जो अब बढ़कर 184.02 लाख टन हो गया है। इनलैंड फिशिंग184.02 लाख टन हो गया है। इनलैंड फिशिंग में 126 प्रतिशत वृद्धि हुई है। उन्होंने बताया कि प्रतिबंधित समय के दौरान मछुआरों को 4500 रुपये की सहायता दी जाती है, जिसमें केंद्र, राज्य और लाभार्थी की हिस्सेदारी होती है। हालाँकि, बिहार में यह योजना क्यों लागू नहीं हुई, इस पर स्पष्ट उत्तर नहीं मिला।
सांसद श्री रूडी ने इस पर चुटकी लेते हुए कहा, ‘मेरा प्रश्न अनुत्तरित रह गया, परंतु मंत्री जी का जवाब सुलझा हुआ था।’ उन्होंने सुझाव दिया कि इस योजना को संशोधित कर मछुआरों के लिए लाभार्थी योगदान को हटाया जाए, ताकि योजना अधिक प्रभावी हो सके।
सांसद ने बिहार के मत्स्य बाजार की खस्ताहाल स्थिति की ओर भी ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश में 150 से अधिक अत्याधुनिक फिश मार्केट हैं, परंतु बिहार में शायद एक भी नहीं। बिहार में मधुबनी, दरभंगा, सहरसा, सुपौल और छपरा जैसे स्थानों पर संरचनात्मक सुधार की आवश्यकता है।
केंद्रीय मंत्री ने इसका उत्तर देते हुए बताया कि बिहार के लिए 91.906 करोड़ रुपया की स्वीकृति दी गई है, जिसमें 1,708 परिवहन सुविधाएँ जिसमें रेफ्रिजरेटेड वाहन, टू-व्हीलर, थ्री-व्हीलर आदि है। इसके साथ 52 कोल्ड स्टोरेज, 1 होलसेल फिश मार्केट, 90 फिश कियोस्क, ई-मार्केटिंग और ई-ट्रेनिंग सुविधाएँ शामिल हैं। सांसद ने इस पर संतोष व्यक्त किया, लेकिन साथ ही मॉडल मत्स्यपालन ग्राम परियोजना की स्थिति पर भी जानकारी मांगी।
सांसद श्री रूडी ने चर्चा के दौरान हल्के-फुल्के अंदाज में लोकसभा अध्यक्ष से पूछा, ‘महोदय, पता नहीं आप मछली खाते हैं कि नहीं?’ इस पर अध्यक्ष ने उत्तर दिया, ‘नहीं, मैं वेजिटेरियन हूँ।’ जवाब सुनते ही सांसद ने मुस्कुराते हुए कहा,: ‘बहुत अच्छा! लेकिन भारत में 95 करोड़ लोग मछली खाते हैं, यह शायद बहुतों को पता न हो।’ केंद्रीय मंत्री ने भी मज़ाकिया अंदाज में कहा, गिरिराज जी मछली खाते हैं, परंतु खिलाते नहीं! इस पर सदन में ठहाके गूंज उठे।
सांसद श्री राजीव प्रताप रूडी ने बिहार के 40 लाख मछुआरों की समस्याओं को मजबूती से उठाया और बिहार के लिए बेहतर संरचना, वित्तीय सहायता और अत्याधुनिक मत्स्य बाजार की माँग की। मंत्री महोदय ने योजनाओं का ब्यौरा दिया, लेकिन बिहार में योजनाओं के ठप पड़ने पर स्पष्ट उत्तर नहीं दे सके। सांसद ने सरकार से अपील की कि बिहार के मछुआरों को उनका हक़ मिले और योजनाओं का लाभ सही समय पर उन तक पहुँचे।
सदन के बाहर मीडियाकर्मियों से बातचीत में सांसद राजीव प्रताप रूडी ने भारत और बिहार में मत्स्यपालन की स्थिति पर महत्वपूर्ण आंकड़े साझा किए। उन्होंने बताया कि देश में 1.12 लाख हेक्टेयर तालाब, 9 हजार हेक्टेयर ऑक्सबो झीलें, 2.40 लाख हेक्टेयर आर्द्र भूमि, 3,200 किलोमीटर लंबी नदियाँ और 64,000 हेक्टेयर जलाशय मत्स्यपालन के लिए उपलब्ध हैं।
बिहार में मछली उत्पादन 2014-15 में 4.7 लाख टन था, जो अब बढ़कर 8.73 लाख टन हो गया है, जबकि राज्य की कुल क्षमता 12.70 लाख टन है। इस उछाल के साथ बिहार 2014-15 में देश में नौवें स्थान से अब चौथे स्थान पर आ गया है। देशभर में आंध्र प्रदेश पहले, पश्चिम बंगाल दूसरे और ओडिशा तीसरे स्थान पर है।
सांसद ने यह भी बताया कि बिहार में प्रति व्यक्ति मछली खपत 6.4 किलोग्राम है, जो राज्य के बढ़ते मत्स्य उत्पादन और उपभोग क्षमता को दर्शाता है। उन्होंने मछुआरों की आय बढ़ाने और आधुनिक बाजार संरचना विकसित करने की जरूरत पर जोर दिया।