छठ पर्व यानी बड़का परब
लेखिका विजया भारती (लोक गायिका)
भगवान सूर्यदेव की पूजा-आराधना का पवित्र एवं प्राचीन पर्व छठ आज भारत के विभिन्न राज्यों के अलावा दुनिया के उन तमाम देशों में लोक आस्था के महापर्व के रूप में स्थापित हो चुका है जहां भारतीय खासकर उत्तर भारत के लोग निवास करते हैं।
भारतीय लोक संस्कृति में सबसे ज्यादा भक्ति भाव, नेम धर्म और पवित्रता के साथ मनाये जाने वाले इस छठ पर्व के अवसर पर गाये जाने वाले भक्ति गीत ही लोकगीत बनकर प्रचलित हो गये। घरों, घाटों और गांवों-चौबारों में पहले से प्रचलित इन छठ गीतों को सर्वप्रथम आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से सुनकर लोग अभिभूत हुए और इनको बड़ा विस्तार और लोकप्रियता मिली। बाद में ये दूरदर्शन, मंचों और फिर संगीत कंपनियों से होते हुए निजी चैनलों और आज यू-ट्यूब आदि सोशल मीडिया के माध्यम से विश्व स्तर तक लोकप्रिय हो गये हैं।
छठ पर्व बिहारियों की पहचान है। उनका सबसे बड़ा पर्व है, उनकी संस्कृति है। इसीलिए छठ पर्व बिहार में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। लेकिन कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला सूर्योपासना का यह हिन्दू पर्व छठ पर्व, छठ या षष्ठी पूजा के अनुपम लोकपर्व के रूप में अब न सिर्फ बिहार बल्कि झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, मुंबई और देश के कोने कोने से लेकर नेपाल के तराई क्षेत्रों और उन तमाम देशों में मनाया जाता है, जहां बिहारी अथवा उत्तर भारतीय प्रवासी लोग रहते हैं। और अब तो अन्य धर्मावलम्बी लोग भी छठ मनाते देखे जाते हैं।
बचपन में मैंने छठ गीतों को आकाशवाणी पर पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी, पद्मभूषण शारदा सिन्हा आदि के स्वर में सुना और गाने लगी। मैंने ये गीत अपने घर-गांव में नानी, दादी और चाचियों से लेकर मौसियों और अन्य ग्रामीण महिलाओं से सीखा। उसी दौर में भरत शर्मा व्यास, गोपाल राय और अनुराधा पौडवाल समेत अनेक लाकारों के छठ गीत भी लोकप्रिय हुए। ये गीत भोजपुरी ही नहीं, बिहार की अन्य लोक भाषाओं - मैथिली, अंगिका, वज्जिका आदि में भी खासे गाये और सुने जाने लगे। लेकिन उनका मूल सुर और स्वर रवीन्द्र संगीत की तरह एक जैसा और अक्षुण्ण रहा।
1) कांचहिं बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय।
2) केरवा जे फरेला घवद से, ओहि पर सुग्गा मेंड़राय।
ये दोनों गीत आज भी छठ के समय गाये जाने वाले सर्वाधिक लोकप्रिय, कर्णप्रिय गीत हैं, जिनके बिना छठ पूरा ही नहीं होता। हालांकि भोजपुरी में इन गीतों के अलावा तमाम अन्य पारंपरिक छठगीत भी हैं। उदाहरण के लिए –
भोजपुरी पारंपरिक छठ गीत
1) कोपि कोपि बोलेली छठीय माता, सुनीं ए सेवक लोग
मोरा घाटे दुभिया जनम गइले, मकड़ी बसेरा लीहले
2) रिमिक झिमक देव बइसेले, ओरियनी मधु चूवे
भींजेला महादेव के धोतिया, गउरा देई के अबरन
3) चारों पहर राति जल थल सेविले, सेविले छठी गोड़थारि
ए छठी मइया, हमरा पर होईं ना सहाय
4) कहवां हीं उपजेले धान रे धाना, कहंवां भंटा पाकल पान
कहंवां ही उपजेले देव हो सुरुज देव, भोरहिं हो गइले बिहान
मैथिली और अंगिका के पारंपरिक छठ गीत
1) अंगना में पोखरि खुनायब, छठी मइया अयतन आय
2) पातर सुरुज देव हो, कहां लागल देर
कहमा गमैल्हे देव हो, अरघ के बेर
3) पटना के पक्की सड़किया, जहां सूप बिकाय
4) बेरि बेरि बरजौं मालिन गे बेटी, घाटे बीच दोना जनि सजाव
एहि बाटे ऐतै गे मालिन, नुनुआं हे सुरुज देव, घोड़ा टापे करतौ थकचून
मगही व बज्जिका के पारंपरिक छठ गीत
1) चल s चल s चल s माइ हे, अरघ के बेरिया
सुरुजो ना उगलैन माई हे कवनो अवगुनिया
केरवा बेसहलो माई हे, हाजीपुर नगरिया
सुरुजो ना उगलैन माई हे कवनो अवगुनिया
2) राम राम करइत घर से बहार भइली
दुअरे नारायण ठाढ़ हे, मैं बनजारिनी राम के
दोहरी कलसुपवा बोझली मोरी नइया
के नइया पार उतारे हे, मैं बनजारिनी राम के
3) होत परात सुरुज चलले कहंवां, आदित चलले कहंवां
बसियो ना लेहू सुरुज एहि अंगना
बसबो में बसबो सेवक लोग अंगना, बरती लोग अंगना
गाये के गोबर लीपल जेहि अंगना, पंडित पाठ करेला जेहि अंगना
इसी तरह बिहार की सभी भाषाओं और बोलियों में अनंत पारंपरिक छठगीत हैं। कालांतर में छठ गीत गाने वाले कलाकारों की संख्या बढ़ती गयी और छठ पूजा गांवों, शहरों और महानगरों में होने लगी।
छठ पूजा की महत्ता और व्यापकता देखते हुए अनेक छोटी बड़ी कंपनियों ने कलाकारों से छठगीत रिकॉर्ड कर इसका बाजारीकरण करना शुरु किया। गीतों की आवश्यकता बढ़ी तो सीमित पारंपरिक गीतों के अतिरिक्त गीतकारों ने छठगीत लिखने आरंभ किये।
पिछले दो-तीन दशकों में जहां खासकर भोजपुरी गीतों में फूहड़ता और अश्लीलता का दुखद व चिंताजनक प्रकोप बढ़ा है, वहां एक मात्र छठ गीत ही अपनी पवित्रता में बरकरार हैं। ये अलग बात है कि पारंपरिक धुनों के अलावा भी आज के युवा कलाकार नयी धुनों पर भी छठ गीतों का असामान्य प्रयोग करते दिख रहे हैं, लेकिन वे आस्थावान छठ व्रतियों के गले नहीं उतरते।
छठ गीतों के विषय और उपादान सीमित हैं, पर उसमें भावों और धुनों की पांरपरिकता में जो हृदयग्राही व्यापक असर होता है, वो अन्य गीतों में शायद असंभव है। छठ गीतों के विषय में स्वयं सूर्य देव से लेकर सूप, डाला, बहंगी, पियरी, धोती, नारियल, नेमुआ, केरवा, अमरुद, पकवान (ठेकुआ), धूप-दीप, घाट, सुग्गा आदि हैं। गीतों के भाव कहीं उत्साहजनक हैं, तो कहीं करुण और मार्मिक भाव हैं। अपने दुखों से त्राण पाने के लिए व्रती सूर्य की आराधना करते हैं, डूबते और उगते सूर्य को अर्ध्य देते हैं। विश्वास के साथ मान्यता है कि छठ पूजन से बंध्या स्त्री की गोद भरती है, निर्धन को धन की प्राप्ति होती है, अंधे को आंख और रोगी को निर्मल काया मिलती है। यानी हर तरह के कष्टों का निवारण छठ व्रत से होता है।
छठ गीतों की प्रसिद्धि के मामले में स्वर्गीय पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी, व पद्मभूषण शारदा सिन्हा अब भी बरकरार हैं। उनके बाद भरत शर्मा व्यास, श्रीमती विजया भारती, मनोज तिवारी, गोपाल राय समेत कई कलाकारों के छठ गीत लोकप्रिय हैं।
यूपी बिहार के दर्जनों कलाकार नये गीतकारों से छठ गीत लिखवाकर गाते जा रहे हैं। पर उन कलाकारों के गीतों की उम्र भाव प्रवणता की कमी और धुनों में आधुनिकता का पुट डालने के कारण कम रह जाती है। ऑडियो कंपनियों ने बड़ा व्यवसाय करने के लिए अनुराधा पौडवाल, उदित नारायण, रूप कुमार राठौर व अल्का याग्निक आदि अनेक गायक गायिकाओं की आवाजों में भी छठ गीत गवाये जो पसंद किये गये। पार्श्व गायक सोनू निगम ने भी भोजपुरी गायक अभिनेता पवन सिंह के साथ छठ गीत गाया है। लेकिन अफसोस है कि कई बार छठ जैसे पवित्र पर्व पर गाये जा रहे कुछ छठ गीत बिल्कुल बनावटी और भाव प्रबलता में हृदय से अछूते रह जाते हैं.
जिन कलाकारों के छठ गीत घाटों पर ज्यादा बजते और सुने जाते हैं वे हैं - विंध्यवासिनी देवी, शारदा सिन्हा, भरत शर्मा व्यास, कल्पना पटवारी और विजया भारती आदि हैं, परंतु लोकप्रियता के मामले में शारदा सिन्हा अभी तक सर्वोपरि हैं।
लेखिका विजया भारती
(बिहार की सुपरिचित लोकगायिका, एंकर, कवयित्री व लोक संस्कृति की मर्मज्ञ हैं| आकाशवाणी व दूरदर्शन की टॉप ग्रेड कलाकार विजया ने देश के कोने कोने से लेकर 20 से अधिक देशों में भारतीय लोक संस्कृति का परचम लहराया है| तमाम टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रम करने के अलावा आपने महुआ टीवी पर लगातार चार साल तक प्रतिदिन बिहाने बिहाने कार्यक्रम की एंकरिंग कर रिकार्ड बनाया है| अनेकों पुरस्कार के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विजया की सराहना करते हुए आपको कुपोषण और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान में शामिल होने के लिए प्रेरित और निमंत्रित भी किया। संपर्क – vijayabharti28@gmail.com )
प्राचीन मान्यताएं
मान्यता है कि प्रजापति दक्ष की पुत्री आदिति ने देवताओं की रक्षा हेतु भगवान सूर्य से पुत्र रूप में जन्म लेने की प्रार्थना की और तत्पश्चात माता अदिति एवं पिता कश्यप जी से सूर्य अंश मार्तन्ड सूर्यदेव का जन्म हुआ, जिन्होंने दैत्यों से देवताओं की रक्षा की। उनकी दो पत्नियां उषा (प्रात: उगते सूर्य की किरण) और प्रत्यूषा (शाम ढलते सूर्य की किरण) की उपासना पूर्ण पवित्रता, नेम-धर्म और आस्था के साथ की जाती है। 15वीं शती रुद्रधर के अनुसार इस पर्व की कथा स्कन्द पुराण से ली गयी है, जिसमें दु:ख और रोग निवारण के लिए सूर्य की उपासना करने का उल्लेख किया गया है। कुछ श्लोकों में सूर्य उपासना का वर्णन निम्न प्रकार से मिलता है।
आदित्य हृदयं पुण्यं सर्व शत्रु विनाशनम्
जयावहं जपेन्नित्यम क्षयं परमं शिवम।
सर्व मंगल मांगल्यं सर्व पाप प्रणाशनम्
चंता शोक प्रशमनं आयुर्वर्धनम उत्तमम्।
भास्करस्य व्रतं त्वेकं यूयम कुरुत: सत्तमा:
सर्वेषां दु:खनाषो हि भवेत्तस्य प्रसादत:
ऊं रश्मिमते नम: समुद्यते नम:
देवासुर नमस्कृताय नम: विवस्वते नम:
भास्कराय नम: भुवनेश्वराय नम:
वैदिक युग से ही भगवान सूर्य की उपासना का उल्लेख अनेक पुराणों में मिलता है और उन्हें जीवन, स्वास्थ्य एवं शक्ति के देवता के रूप में मान्यता प्राप्त है। माना जाता है कि सूर्य संबधी कथाओं को सुनकर पाप एवं दुर्गति से मुक्ति प्राप्त होती हैं।
ऋग्वेद में जहां सूर्यदेव को पापों से मुक्ति दिलाने, रोगों का नाश करने, आयु और सुख में वृद्धि करने व गरीबी दूर करने वाला बताया गया है, तो यजुर्वेद में कहा गया है कि वे सर्वद्रष्टा माने गये हैं, जो मानव मात्र के सभी कामों के साक्षी हैं और उनसे कुछ भी छुपा नहीं रहता। सूर्योपनिषद के अनुसार, सभी देवता, गंधर्व और ऋषि सूर्य की किरणों में वास करते हैं। सूर्यदेव की उपासना के बिना किसी का भी कल्याण संभव नहीं है। ब्रह्मपुराण में उन्हें सर्वश्रेष्ठ देवता बताते हुए कहा गया है कि उनकी उपासना करने वाले भक्त जो सामग्री इन्हें अर्पित करते हैं, सूर्यदेव उसे लाख गुना करके लौटाते हैं। वहीं स्कंदपुराण में सूर्यदेव को जल चढ़ाए बिना भोजन करने को निषिद्ध माना गया है। ऋगवेद में सूर्यदेव को स्थावर जंगम की आत्मा (सूर्यात्मा जगत स्तस्थुषश्च - ऋग्वेद ) कहा गया है।
इसी तरह छान्दोग्य उपनिषद में सूर्य को ब्रह्म (आदित्यो ब्रह्मेती) कहा गया है। पुराणों में द्वादश आदित्यों, सूर्य की अनेक कथाएँ प्रसिद्ध हैं, जिनमें उनका स्थान व महत्व वर्णित हैं। तेत्तिरीय आरण्यक सूर्य पुराण व भागवत पुराण में उदय एवं अस्तगामी सूर्य की उपासना को कल्याणकारी बताया गया हें। प्रश्नोपनिषद में प्रातःकालीन किरणों को अमृत वर्षी माना गया हैं (विश्वस्ययोनिम) जिसमें संपूर्ण विश्व का सृजन हुआ हैं। वैदिक पुरूष सुक्त में विराट पुरूष ब्रह्म के नेत्रों से सूर्य की उत्पत्ति का वर्णन है। उदित होते सूर्य को हमारे ऋषि मुनियों ने ज्ञान रूपी ईश्वर बताते हुए सूर्योपासना का निर्देश दिया है।