‘‘ ईश्वर के प्रेम व कृपा को मनुष्यों में बांटने के लिए माध्यम बन अवतरित होतें हैं गुरु ’’



सच्चिदानंद वर्मा

नोएडा: योगदा आश्रम नोएडा में ज्ञानावतार स्वामी श्रीयुक्तेश्वर जी का आविर्भाव दिवस मनाया गया। पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार ध्यान,प्रवचन,पुष्पांजलि व भजन के बाद स्वामी सादानंद और स्वामी ललितानंद के कर कमलों द्वारा दिव्य प्रसाद का वितरण योगदा भक्तों के बीच किया गया। वहीं पंडाल के बाहर स्वामी आद्यानंद खड़े होकर भक्तों को आर्शीवाद दे रहे थें। इस अवसर पर अपने प्रवचन के दौरान स्वामी ललितानंद ने  मृणालिनी माता द्वारा साधकोें केा लिखे एक पत्र को उद्धृत करते हुए कहा कि ईश्वर के प्रेम व कृपा को मनुष्यों के बीच बांटने के लिए गुरु माध्यम बन कर  उच्च लोक से पृथ्वी पर अवतरित होते हैं।
स्वामी ललितानंद ने बताया कि आज का दिन बहुत पवित्र दिन है क्योंकि आज के ही दिन हमारे गुरु परमहंस योगानंद के गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर का आविर्भाव हुआ था।श्रीयुक्तेश्वर 10 मई 1855 को बंगाल के  श्रीरामपुर जिले में जन्म लिए थे। उन्होंने बताया कि आज के दिन हम अपनी चेतना को परमगुरु की  चेतना से समस्वर कर बहुत अधिक लाभ उठा सकते हैं ,क्यांेकि गुरुओं के आविर्भाव दिवसों के अवसर पर उनके दिव्य स्पंदनों केा अन्य  दिनों की तुलना में हम अधिक महसूस कर सकते हैं।
स्वामी ललितानंद ने अपनी बातों की पुष्टि के लिए मृणालिनी माता द्वारा जन्माष्टमि पर भक्तों केा संबोधित करते हुए लिखे एक पत्र को उद्धृत करते हुए बताया कि मां लिखती है कि ईश्वर अपनी कृपा और प्रेम को अपने भक्तों के बीच बांटने के लिए गुरुओं को घरती पर भेजते हैं। ये गुरु उच्च लोकों से पृथ्वी पर अवतरित हो कर ईश्वर के प्रेम व कृपा को भक्तों में बांटने के लिए माध्यम बनते हैं। माता कहती हैं कि हमें खूब भक्ति के साथ गुरुओं का आविर्भाव दिवस मनाना चाहिए। मन में खूब भक्तिभावना होने से हमारी चेतना उनकी चेतना से समस्वर हो सकती है।
उन्होंने आगे कहा कि हमें ईश्वर प्रेम और कृपा इसलिए चाहिए क्योंकि हम माया के बंधन से बंध कर कष्ट उठाते हैं। माया से आक्रांत रहते हैं।  हम माया के बंधन के कारण शारीरिक ,मानसिक और आध्यात्मिक कष्टों से गुजर रहे होते हैं।
स्वामी ललितानंद ने कहा कि हमारे परम गुरु ज्ञानावतार थे। उन्होंने  हमारे गुरु को क्रिया योग से प्रशिक्षित कर अमेरिका व यूरोप में ईश्वर प्राप्ति के इच्छुक लोगों को सही राह दिखाने के लिए भेजा था। महावतार बाबाजी की इच्छानुसार परमहंस योगानंद ने पश्चिम देशों में क्रिया योग को फैलाया।
 महावतार बाबाजी के कहने पर ज्ञानावतार श्रीयुक्तेश्वर ने कैवल्य दर्शनम पुस्तक लिख कर सिद्ध कर दिया कि सभी धर्मग्रंथों का सार एक ही है।  
स्वामी ललितानंद ने योगी कथामृत पुस्तक को उद्धृत करते हुए ज्ञानावतार श्रीयुक्तेश्वर और महावतार बाबाजी के कुंभ मेले हुए वार्तालाप के प्रसंगों को उपस्थित भक्तों केा सुनाया।
इस अवसर पर स्वामी अलोकानंद की उपस्थिति भी दर्शनीय थी. 

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