परमहंस योगानन्द - एक अत्यन्त प्रेरणादायक आध्यात्मिक जीवन

 


(130वीं जयन्ती पर विशेष) 

लेखिका – डॉ(श्रीमती) मंजु लता गुप्ता

“भरना चाहता हूँ मैं अपनी नाव में, पीछे छूटे पिपासुओं को, जो बैठे हैं इंतज़ार में,  

और उन्हें ले जाना बहुरंगे आनंद के पोखर पर जहाँ बाँटते हैं मेरे परमपिता,  

अपनी रसमयी शांति जो पूरी करे इच्छाएँ सब।“  

       जब मैंने पहली बार “ईश्वर का केवट” कविता पढ़ी तो मैं भाव विभोर हो गई। मन उत्सुक था, इसके रचयिता के विषय में जानने के लिए! अपनी इस जानकारी को पाठकों के साथ साझा करते हुए बताना चाहूँगी, वे हैं - श्री श्री परमहंस योगानन्द! वही जो योगी कथामृत, मन और आत्मा के द्वार खोल देने वाली कृति, जो विश्व में एक गौरव ग्रंथ के रूप में पूजी जाती है, के रचनाकार हैं। हृदय उद्वेलित हो उठा उनकी नाव में बैठने को। ईश्वर के विषय में जानने की उत्कंठा जगने लगी। ऐसा लग रहा था कि कोई स्नेहपूर्ण मधुर पुकार में बुला रहा है।   

       अनंत मोतियों से भरी यह पुस्तक (योगी कथामृत) मिल भी गई थी। इस पुस्तक का जो एक पृष्ठ मेरे सामने खुला उस पर लिखा था - “नित्य नवीन आनन्द ही ईश्वर है। वह अक्षय है; वर्षों पर वर्ष जैसे जैसे तुम ध्यान करते जाओगे, वैसे वैसे वह अनंत युक्तियों से तुम्हें मोहित करता ही रहेगा। तूम्हारे जैसे भक्त जिन्हें ईश्वर का मार्ग मिल जाता है स्वपन में भी कभी ईश्वर के स्थान पर दूसरे किसी सुख की प्राप्ति की कल्पना नहीं कर सकते।” अनन्त युक्तियों में से अनेक युक्तियां घटने लगी। ऐसा लगा जैसे लेखक ने ‘तूम्हारे जैसे भक्त’  मुझे ही कहा, जिसे ईश्वर का मार्ग मिल गया।  

       अब आवश्यकता थी उस उपाय की कि ध्यान कैसे किया जाए? yssi.org को देखा तो बहुत कुछ जाना। योगानन्दजी की माता जब इस नन्हें शिशु मुकुन्द (जो बाद में योगानन्द कहलाए) को लेकर आशीर्वाद हेतु अपने गुरु के पास गई तो उन्होने कहा -“छोटी माँ! तुम्हारा पुत्र एक योगी होगा। एक आध्यात्मिक इंजन बनकर वह अनेकों आत्माओं को ईश्वर के साम्राज्य में ले जाएगा।” ईश्वर के साम्राज्य की ओर ले जाने वाले मार्ग की ओर कदम बढ़ने लगे। उसके बाद जाना, योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया के बारे में, जहाँ पर क्रियायोग, जो ईश्वर तक पहुँचने के लिए विमान मार्ग बताया गया है, सिखाया जाता है। उसे सीखने के लिए गृह अध्ययन की सामग्री भी उपलब्ध है, यह जानकर तो मन बल्लियों उछलने लगा।   

       “योगी कथामृत” में वर्णित, अपने गुरु की तलाश में अनेक संतों से योगानन्दजी की भेंट और अंततः गुरु से मिलन एक चलचित्र की भाँति दृश्य पटल पर चलता है, और उनके गुरु स्वामी श्रीयूक्तेश्वरजी के ये शब्द –“जो लोग इस भू लोक में आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर लेते हैं....विवेक और निष्ठा के साथ जगत् में अपना कार्य करते हुए भी वे अपने आंतरिक परमानन्द में निमग्न रहते हैं।” - कितने प्रेरणादायक हैं जो हमें जीवन में संतुलन सिखाते हैं। 

       इसी संतुलन के साथ योगानन्दजी ने अपना जीवन जीया। योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया/सेल्फ़ रियलाईजेशन फ़ेलोशिप ऑफ अमेरिका के माध्यम से वे विश्वभर में ध्यान प्रविधियों एवं आदर्श-जीवन पर सत्संग लेते हुए वे सदा आंतरिक परमानन्द में निमग्न रहते। वे ईश्वर से अपनी वार्ता में कहते हैं- “मैं चाहता हूँ आपका शाश्वत आनन्द, केवल दूसरों को इसमें सहभागी बनाने के लिए; ताकि मैं अपने सभी भाइयों को दिखा सकूँ, सुख का मार्ग आपमे सदा सदा के लिए।“ तो क्यूँ न हम भी उनके आग्रह से लाभान्वित होते हुए 5 जनवरी को उनके शुभ आविर्भाव दिवस पर उनकी नौका में सवार हो आत्म-मुक्ति के तट पर पहुँचने का दृढ़ निश्चय करें। अधिक जानकारी के लिए : yssofindia.org



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