नए संसद भवन में दस्तकारी हाट समिति ने तैयार किया 350 से अधिक शिल्पकारों की कलाकृतियों को प्रदर्शित करने वाली गैलेरी का डिजाइन





नई दिल्ली : नए संसद भवन में स्थित शिल्प गैलरी में भारत के बहुमुखी सांस्कृतिक और शिल्प इतिहास की छवि को जीवंत करने के लिए  350 से अधिक कलाकारों की रचनाओं का प्रदर्शन हो रहा है जो भारत की रचनात्मक आत्मा को बांधने वाले आठ स्थापनाओं को एक एकीकृत करता है इसे दस्तकारी हाट समिति की अध्यक्षा जया जेटली द्वारा डिज़ाइन किया गया है। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से प्रमुख शिल्प रूपों को साथ लाने वाली प्रदर्शनी के लिए शिल्प संगठन ने शिल्पकारों के साथ नौ महीने तक जी तोड़ मेहनत की है इसका उद्देश्य शिल्प कौशल और कला को लोगों के सामने लाना है जो हमारी एक राज्य और सभ्यता के रूप में हमारी जीवित विरासत का हिस्सा है।

प्रदर्शनी को प्रक्षेपण, प्रकृति, आस्था, उल्लास, पर्व, समरस्ता, स्वावलम्बन और यात्रा जैसे आठ विषयों में विभाजित किया गया है, जो भारत की अद्वितीय ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत के साथ वर्तमान का जीवंत चित्रण करती है।

हर कलाकृति का हर एक तत्व विविधता, आशा और गौरव को एक सूत्र में बांधता है। उल्लास स्थापना में बूटेदार रजाई बनाने का कार्य होता है जो कि दर्जी की दुकानों से पुरानी साड़ियों, हेडक्लॉथ या बचे हुए कपड़े को रिसाइकिल कर कुछ अच्छा बनाने का एक बुद्धिमान और टिकाऊ तरीका है। नीले और लाल रंग की रज़ाइयों के लिए पैचवर्क बनाने वाले कारीगरों को कम से कम  निर्देश दिए गए थे। जैसा कि 'उल्लास' के लिए खुशी महत्वपूर्ण है, प्रत्येक महिला को अपनी खुशी व्यक्त करने के लिए कहा गया था। पक्षी को एक खुशियों का प्रतीक के रूप में रखने का भी सुझाव दिया गया था। इसके अलावा महिलाओं को पूरी आज़ादी थी कि वह अपनी कल्पना से अपने बच्चे के लिए जो असीम प्यार वो महसूस करती है, उसे कपड़े पर उकेर सके।

प्रकृति स्थापना प्रकृति के साथ हमारे एक अभिन्न हिस्सा होने के विचार पर आधारित है। ये प्रकृति ही है जो हमारा पालन पोषण करती है। चूँकि सांझी ने हमेशा से पेड़ों, पक्षियों और जानवरों के साथ प्रकृति का जश्न मनाया है  इसलिए इस कला के लिए यह चुनौती स्वाभाविक थी। स्वावलंबन स्थापना 'चरखा - द व्हील्स ऑफ स्वावलंबम' नामक एक त्रिपिटक है। इसे 100 ग्राम हाथ से काती एवं बुनी खादी पर बनाए गए पारंपरिक अजरख शैली में अलग-अलग चरखे शामिल हैं जो छोटे दर्पण और जरी से सजाए गए हैं। चरखा हमारी स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है, जो स्वतंत्रता संग्राम के स्वदेशी आंदोलन की याद दिलाता है।

समरसता स्थापना विभिन्न प्रकार के धातु शिल्पों में लकड़ी की नक्काशी को कलाकृतियों और दैनिक वस्तुओं को एक साथ लाती है, इसमें शिल्प को न केवल अलग अलग लकड़ी के ब्लॉकों को एकीकृत करके बनाया गया है बल्कि भारत के विभिन्न कोनों से धातु शिल्प को मिलाकर तैयार हुआ है।

स्थापना पर्व के लिए विशेष रूप से एक कावड़ डिजाइन और निर्मित किया गया है। जिसमें भारत के 10 प्रमुख त्यौहारों को चुना गया था और उन्हें जीवंत करने के लिए 10 कलाकार। कावड़ के दोनों ओर पैनल जैसे पांच दरवाजे बनाए गए, पारंपरिक और लोक कलाओं के माध्यम से गोंडी आदिवासी में दिवाली; मधुबनी लोक कला में होली; चेरियल कला में महावीर जयंती; तन्खा बौद्ध में बुद्ध जयंती; कागज की लुगदी परंपरा में ललित कला में ईद; समकालीन कला में क्रिसमस; कालीघाट शैली में दुर्गा पूजा; अपिंद्र स्वैन द्वारा गणेश चतुर्थी; प्राचीन भित्ति चित्रों से प्रेरित कला शैली में पोंगल; पारंपरिक लघु कला शैली में गुरु पर्व को दर्शाया गया।

दस्तकारी हाट समिति कलाकारों के साथ सहयोग स्थापित करने का मजबूत साधन रही है, यह कई दशकों से कारीगरों का पोषण कर रही है। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के माध्यम से इसे शुरू किया जिसमें अन्य डिजाइनरों में रूप में तिलफी, शैली ज्योति, पुनीत कौशिक और पूर्णिमा राय हैं भी शामिल है।

दस्तकारी हाट समिति की अध्यक्षा जया जेटली कहती हैं "दुनिया में किसी देश के पास भारत जैसी विशाल और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का भंडार नहीं है,  मेरा मानना है कि यह पहली बार है कि किसी सार्वजनिक और राजनीतिक भवन ने शिल्प और शिल्पकारों को इतना महत्व दिया है। यह गैलरी भारत की संस्कृति, शिल्प और समुदायों का प्रतिनिधित्व और जश्न मनाती है इसने देश में शिल्प के पुनरुत्थान के लिए  और भारत की विरासत को इस तरह की ऐतिहासिक इमारत में प्रदर्शित करने के लिए एक बड़ी प्रेरणा दी है।

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