कहां गुम हो रही छोटी नदियां


                       डॉ.दिनेश प्रसाद मिश्र  

भारतीय संस्कृति के उद्भव और विकास के लिए नदियां अजस्र स्रोत के रूप में आदिकाल से कार्य करती रही हैं। सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आज तक की समस्त , न केवल भारतीय सभ्यताएं अपितु विश्व की समस्त सभ्यतायें नदियों के किनारे ही  विकसित हुई है,अस्तित्व में आई है ,जहां तक भारतीय सभ्यता की उद्भव एवं विकास का का प्रश्न है, उसके अजस्र स्रोत के रूप में नदियों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। भारतीय नदियों में सिंधु ,गंगा ,यमुना ,ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, राप्ती, कृष्णा एवं कावेरी आदि नदियों के तट पर अनेक नगर अस्तित्व में आए तथा विकसित होकर महानगर के रूप में परिणत हो गए, किंतु इन बडी नदियों को जीवन देने वाली अनेकानेक छोटी नदियां जो अपने साथ जल धन की अपार राशि को लाकर इन नदियों में समर्पित करती रही, आज न तो उनका कोई नाम लेने वाला है और न ही उनकी ओर किसी का ध्यान है। ऐसी छोटी नदियां अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं। जहां एक ओर भूगर्भ के जल का असीमित दोहन छोटी नदियों के जीवन को छीनने का प्रयास कर रहा है, वहीं दूसरी ओर शासकीय व्यवस्था में हो रहे विकास के परिणाम स्वरूप इन छोटी नदियों पर बांध बनाकर तथा बचे हुए जल में जगह जगह चेक डैम बना कर इनका जीवन छीन लिया गया है, छीना जा रहा है। फलस्वरूप देश की अनेकानेक छोटी नदियां लुप्तप्राय हो गई हैं। कल तक वह अपने समीपस्थ क्षेत्र की जीवनदायिनी थी, परन्तु आज स्वयं अपने जीवन की रक्षा के लिए दूसरों की ओर हाथ फैलाए हुए जीवन की याचना कर रही हैं, किंतु उनकी रक्षा, उनके बचाव हेतु कोई भगीरथ नहीं आ रहा और न ही कहीं से आने की संभावना ही दिख रही है। उन्हें बचाने के लिए  किसी भी प्रकार का सहयोग, प्रयास होते नही दिख रहा  है। फलस्वरूप छोटी नदियों का जीवन संकट में है और वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं। यहां पर इस तथ्य की ओर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है,कि जिस प्रकार शरीर का तंत्रिका तंत्र पूरे शरीर से रक्त को एकत्र कर धमनियों को प्रेषित कर जीवन को संचालित करता है, उसी प्रकार से इन छोटी नदियों द्वारा जल की अपार राशि का संग्रहण कर तथाकथित बड़ी नदियों को प्रेषित किया जाता है , जिसके बल पर ही  तथाकथित बड़ी नदियां विशाल स्वरूप को ग्रहण करती हैं,किंतु छोटी नदियों के समक्ष ही अस्तित्व का संकट उपस्थित हो जाने के कारण विशाल नदियों को भी अपार जल की राशि न मिल पाने से उनके अस्तित्व के समक्ष भी संकट उपस्थित होने जा रहा है।उल्लेखनीय है कि देश की अनेक छोटी नदियां जो ग्रामीण जनों के जीवन का आधार होने के कारण उनका कंठ हार बनकर उन्हें जीवन प्रदान करती थी ,आज समाप्तप्राय हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की ऐसी प्रमुख नदियों में हिंडन तथा काली नदी प्रमुख हैं। इसी तरह प्रयागराज की ससुर खदेरी नदी तथा मनसयिता एवं चित्रकूट की मंदाकिनी,गुंता नदी उदाहरण के रूप में प्रस्तुत की जा सकती हैं।  मंदाकिनी नदी चित्रकूट   स्थित पर्वतमाला के सती अनुसूया आश्रम से निकलकर जिले के अनेकानेक गांवों की भूमि को सिंचित करती हुई ,वहां के जीव-जंतुओं को अपने रस से जीवन प्रदान करती हुई महाकवि गोस्वामी तुलसीदास के जन्म स्थल राजापुर में यमुना नदी से मिलती है। यमुना नदी में मिलने से पूर्व मंदाकिनी में अनेक क्षेत्रीय छोटी-छोटी नदियां मिलकर उनके जल प्रवाह को अपने-अपने जल से आपूरित कर गति प्रदान करती हैं। अनुसूया आश्रम से निकलकर चित्रकूट में ही आने पर मां मंदाकिनी से  पयश्विनी नदी कामदगिरि पर्वत के पास स्थित ब्रह्म कुंड से निकलकर चित्रकूट में रामघाट में  मिलती थी , इसी प्रकार कामदगिरि पर्वत से निकल कर सरयू नदी पयश्विनी नदी के साथ मां मंदाकिनी से रामघाट पर मिलती थी और यहीं पर सरयू ,पयश्विनी  एवं मंदाकिनी का संगम होता था, किंतुअब सरयू एवं पयश्विनी लुप्त हो गई हैं, उनके स्थान पर शहर का मल मूत्र एवं कूड़ाकरकट ढोने वाले नाले मां  मंदाकिनी से राम घाट पर मिल रहे हैं, संगम कर रहे हैं । चित्रकूट में भी सरयू तथा पयस्विनी नदियों का नाम लेने वाला कोई नहीं है।विडंबना तो यह है कि अधिकांश लोगों को यह पता भी नहीं है कि यहां कभी पयस्विनी और सरयू नदी भी बहती थी। यह अलग बात है कि चित्रकूट में पयस्विनी के महत्व को देखते हुए अब लोग  मंदाकिनी को ही पयश्विनी कहने लगे हैं ।इस तथ्य से बहुत ही कम लोग परिचित हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के पावन तपोधाम चित्रकूट में कभी पयस्विनी और सरयू नदियां भी बहती थी ।भू माफिया ने इन पावन नदियों की भूमि पर कब्जा कर वहां बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं खड़ी करवा दी हैं ।नदियों के स्थान पर गंदे नालों के रूप में उनका अस्तित्व आज भी विद्यमान है ,जो मंदाकिनी के रामघाट में ही जाकर मंदाकिनी से मिलते हैं। नई पीढ़ी शायद ही अब यह स्वीकार कर पाए कि कभी यहां दो पावन नदियां बहती थी। जहां तक गुन्ता नदी का प्रश्न है राजस्व रिकार्ड में उसे नदी के रूप में स्वीकार नहीं किया गया किंतु वह मूल रूप से वर्ष पर्यंत बहने वाली सदानीरा छोटी नदी थी,जिसके जल से समीपवर्ती जीव जंतुओं को जीवन रस प्राप्त होता था तथा समीपवर्ती भूमि  सिंचित होकर सोना उगलती थी। कालांतर में वर्ष 1974 में गुन्ता नदी पर बांध बनाकर उसे कैद कर दिया गया और वह अपने अस्तित्व को गवा बैठी। गुन्ता नदी चित्रकूट के ही ग्राम रैपुरा के पास से निकल कर लगभग 40 किलोमीटर की यात्रा करती हुई राजापुर ग्राम से दक्षिण यमुना नदी में अपने जल प्रवाह को अर्पित कर यमुना के जल प्रवाह की वृद्धि में अपना सहयोग देती थी किंतु आज वह विलुप्त हो चुकी है ।पहले तो उसमें बांध बनाकर उसे कैद किया गया फिर जो थोड़ा बहुत पानी भूल से आगे निकल जाता था, उस पर चेक डैम बना कर उसे पूर्णरूपेण बाधित कर दिया गया है। बांध बनाकर गुन्ता को तो मार दिया गया किंतु रिकॉर्ड में लिखा गया कि गुन्ता बांध बरसाती पानी को रोककर बनाया गया है जिससे कृषि क्षेत्र की  सिंचाई में वृद्धि हुई है।  गुन्ता नदी का कहीं कोई नामोल्लेख नहीं,वह बेमौत मारी गयी।वस्तुतः जितने क्षेत्र में बांध बनने के बाद सिंचाई हो रही है उसके एक चौथाई क्षेत्र में पहले भी गुन्ता के जल से किसान अपनी भूमि सींच कर खेती कर लेते थे। यह अलग बात है कि लगभग ₹100000000 खर्च कर थोड़ी सी भूमि में सिंचाई के साधन बढ़ाकर सदानीरा गुन्ता को बेमौत मार दिया गया।गुंता के जल से तैयार अन्न तथा उसके जल को खा पीकर बड़े हुए वहां के निवासी विकास के नाम पर गुन्ता की अकल मौत को आसानी से भूल जाने के लिए तैयार नहीं हैं।  फैजाबाद जनपद से बहने वाली करीब आधा दर्जन नदियां समाप्त होने के कगार पर हैं ।गोमती नदी तो अभी किसी रूप में अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं किंतु उसकी अन्य सहायक नदियां तिलोदकी, तमसा  ,मड़हा,बिसुहीऔर कल्याणी समाप्ति की ओर बढ़ रही हैं उनकी तलहटी पर पानी के स्थान पर पपड़ी एवं कीचड़ स्पष्ट दिख रहा है। मीठे जल को लेकर चलने वाली नदियों की सूखी धारा यह कह रही हैं अब अंत समय आ गया है।‌तमसा नदी का उद्भव लक्ष्मीपुर गांव के माढव्य ऋषि के आश्रम के पास से हूआ  है,उसे मांडव्य ऋषि के तप के प्रभाव से उत्पन्न बताया जाता है ।तमसा नदी की समाप्ति में मुख्य रूप से योगदान मिलों के कचरे का रहा है। आज तमसा नदी कीचड़ से भरी हुई अत्यंत प्रदूषित है ,जिस के पानी से डर कर लोगों को‌ अपने अपने पशुओं की रखवाली करनी पड़ती है, जिससे कि वह तमसा का प्रदूषित जल पीकर संक्रामक रोगों के शिकार न हो जाएं। अयोध्या में तिलोदकी का मेला तो लगता है किंतु तिलोदकी  नदी गायब हो चुकी है । सोहावल के पंडित पुर से निकली तिलोदकी नदी का उद्भव स्थल ऋषि रमणक की साधना का केंद्र रहा है। मड़हा और बिसुही नदी पूर्ण रूप से सूख चुकी हैं और अब बरसात में ही जलयुक्त दिखाई देती  हैं।फलस्वरूप उन्हें अब बरसाती नदी ही कहा जाता है।वेदों में उल्लिखित पवित्र कल्याणी नदी की  धारा भी सूख गई है । शासन के प्रभाव से बाराबंकी जिले में उसको पुनर्जीवन प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है ।कभी बाराबंकी एवं फैजाबाद की जीवन रेखा रही कल्याणी आज अपने जीवन को बचाये रखने के लिए शासन-प्रशासन की कृपा की बाट जोह रही है, सार्थक प्रयास से उसे नवजीवन प्राप्त हो जाएगा।यह विश्वास हो चला है क्योंकि उसके पुनर्जीवन के लिए प्रयास किया जा रहा है ।इसी प्रकार सहारनपुर की पांवधोई नदी उल्लेखनीय है जो पिछले 50 साल में शहर के गंदे नाले के रूप में परिवर्तित हो चुकी थी। लोग उसे नदी के स्थान पर गंदे नाले के रूप में ही स्वीकार कर चुके थे। सहारनपुर नगर के बीच से बहने वाली प्राचीन एवं आध्यात्मिक महत्व की 9.3 किलोमीटर लंबी पांव धोयी नदी को पुनर्जीवन मिल गया है। अभी प्रथम चरण का कार्य पूरा हुआ है। नदी के उद्भव स्थल सकला पुरी से बाबा लाल दास  घाट तक जल निर्मल और प्रवाह मान हो गया है ।नदी के दो तिहाई हिस्से की साफ-सफाई और जल प्रवाह बहाल करने का चुनौतीपूर्ण कार्य अभी शेष है।राजस्व रिकार्ड में  इन नदियों को नदी के रूप मे कम नाले के रूप में अधिक उल्लिखित किया गया है।उक्त उल्लिखित काली हिंडन,मनसयिता, ससुर खदेरी एवं गुंता आदि नदियां  आज समाप्तप्राय हैं ,मात्र उनका अस्तित्व ही दिखाई दे रहा है।इन नदियों को जिन्हें नाला कहा जाने लगा है उनमें समीपस्थ गांव का कूड़ा करकट डाला जा रहा है तथा माफिया द्वारा उनकी समीपस्थ भूमि पर कब्जा कर प्लाटिंग की जा रही है ।इतिहास में मनसयिता नदी के तट पर पांडवों के रुकने और ठहरने का जिक्र है। इसी प्रकार हिंडन तथा काली नदी के तट पर अंग्रेजों के साथ स्वतंत्रता संघर्ष में भयंकर युद्ध का जिक्र प्राप्त होता है। यहां पर उक्त छोटी नदियों का नाम उल्लेख तो प्रतीक रूप में किया गया है। आज भारत का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जहां समाज की जीवनदायिनी इन छोटी नदियों का अस्तित्व समाप्तप्राय न हो ।इन छोटी नदियों के अस्तित्वहीन हो जाने से जहां एक औरआज  पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो रही है वहीं दूसरी ओर भूगर्भ का जलभी निरंतर समाप्त होता जा रहा है और बड़ी नदियों को मिलने वाला जल भी अनवरत रूप से प्राप्त न होने के कारण बड़ी नदियों के अस्तित्व के समक्ष भी अस्तित्व का संकट उपस्थित होने जा रहा है।इन्हीं नदियों के बल पर यमुना को विशाल जल राशि प्राप्त होती थी जो यमुना के माध्यम से गंगा को अविरल रूप से प्राप्त होती रही किंतु इन नदियों के समाप्त हो जाने से गंगा को भी अपेक्षित चल राशि की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। फलस्वरूप इन जल स्रोतों को बचाने की बड़ी लड़ाई की भूमिका बननी चाहिए और इसकी कोशिश हर किसी को करनी चाहिए ।किसी न किसी भगीरथ को प्रयास कर इन अस्तित्व खो चुकी नदियों को अपना जीवन अधिकार देकर अस्तित्व में लाना ही चाहिए़।  कुंभ क्षेत्र में देसी एवं विदेशी कलाकारों द्वारा एक साथ उपस्थित होकर छोटी नदियां बचाओ संगठन के बैनर के साथ प्रयास किया गया। भारत सहित देसी विदेशी 9 ‌देशोंइटली ,फ्रांस ,ऑस्ट्रेलिया ,पोलैंड ,साउथ कोरिया, हॉन्ग कोंग ,नेपाल व भारत के  पचास कलाकारों ने छोटी नदियों को बचाने के लिए  कलाकृतियां बनाकर लोगों को जागरूक किया ।शिविर में इंटरनेशनल आर्टिस्ट रेजिडेंसी एग्जीबिशन ऑफ रिवर डेमोक्रेसी के अंतर्गत भारत समेत 9 देशों के कलाकार पेंटिंग और कलाकृतियों के माध्यम से छोटी नदियों तालाबों और पर्यावरण को बचाने का संदेश देने में सफल रहे ।कलाकारों की ओर से बनाए गए चित्र नदियों को बचाने और उन्हें गंदा न करने का संदेश दे रहे थे।यूरोप से आए इंटरनेशनल आर्टिस्ट रेजिडेंसी एग्जीबिशन ऑफ रिवर डेमोक्रेसी के निदेशक एके डग्लस के अनुसार देश और विदेश से आए कलाकारों ने छोटी नदियों के अस्तित्व पर आए संकट की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए छोटी-छोटी निष्प्रयोज्य वस्तुओं जैसे पुराने अखबार ,लकड़ियों ,मिट्टी आदि एकत्र कर उनसे कलाकृतियां बनाकर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया है।लुप्तप्राय इन छोटी नदियों को जीवन देने के प्रयास के रूप में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एनजीटी की ईस्टर्न यूपी रिसर्च एंड वाटर रिजर्वाटर्स मॉनिटरिंग कमेटी ने कुशीनगर की हिरण्यवती,कुकुत्था नदी समेत पूर्वांचल की 6 नदियों की सैटेलाइट मैपिंग रिपोर्ट शासन से मांगी है। एनजीटी ने यह कदम दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और पूर्वांचल नदी मंच के संयोजक प्रोफेसर राधे मोहन मिश्र के इन नदियों को जीवन देने के प्रयास पर उठाया है। प्रयागराज की ससुर खदेरी नदी को जीवन दान देने के लिए प्रशासन द्वारा प्रयास प्रारंभ कर दिए गए हैं, कभी इलाहाबाद ,कौशांबी एवं फतेहपुर जनपद को अपने जल से आप्लावित करने वाली ससुर खदेरी नदी आज अस्तित्व हीन होकर रह गई है। प्रशासन के प्रयास से लग रहा है कि उसका अस्तित्व शीघ्र ही सामने होगा। उसके प्रवाह पथ की खुदाई करा कर उसे अस्तित्व प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है। फतेहपुर जनपद में स्थित हथगांव क्षेत्र के सेमरा मानपुर गांव के जगन्नाथपुर झील से निकली ससुर खदेरी नदी कौशांबी जनपद के सिराथू ,मंझनपुर ,नेवासा और चायल क्षेत्र के गांवों से गुजरते हुए प्रयागराज और कौशांबी की सीमा पर यमुना नदी से मिलती है जनपद के लगभग 78 किलोमीटर की सीमा में फैली नदी दो दशक पूर्व तक किसानों एवं उनके पशुओं के लिए जीवनदायिनी थी।बारिश के पानी से पूर्णरूपेण जलापूरित  इस नदी के पानी से वहां के निवासियों तथा उनके पशुओं की प्यास बुझती थी एवं कृषि भूमि को पर्याप्त जल प्राप्त होता था और उसकी सिंचाई  संपन्न होती थी जिससे किसान अपनी भूमि में पर्यांप्त अन्न पैदा करते थे,किंतु आज वह अपने अंतिम स्थिति को प्राप्त हो गई है ,लगता है कि यदि ध्यान न दिया गया तो उसका अस्तित्व पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा। नेशनल रिसोर्स मैनेजमेंट जल संचयन योजना के अंतर्गत नदी की सफाई कराने उसके क्षेत्र को गहरा और चौड़ा कराने, किनारों पर पौधारोपण कराने और गांव के मध्य चेक डैम का निर्माण कर बारिश के पानी को रोकने का निर्देश शासन स्तर से जारी किया गया है ।योजना के अंतर्गत नदी की खुदाई कराने की कार्ययोजना तो बनाई गई है किंतु अभी तक नदी के जीर्णोद्धार का कार्य प्रारंभ नहीं हो सका। नदी का जल  पूर्णरूपेण सूख गया है तथा नदी लगभग समाप्त हो गई है।नदी के कुछ हिस्सों में भूमाफिया ने अतिक्रमण कर भूमि पर कब्जा कर लिया है जिससे नदी क्षेत्र को मुक्त कराए जाने की आवश्यकता है किंतु शासन-प्रशासन या जन सामान्य का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है ।कुल्लू घाटी  की व्यास नदी के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए भी अभिषेक सिंह के प्रयास से अपेक्षित परिणाम सामने आ रहे हैं और व्यास नदी को बचाने का कार्य प्रारंभ कर दिया गया है।‌भारत का सौभाग्य रहा है उसके पास प्रकृति के अनन्य उपहार के रूप में छोटी बड़ी नदियों का विशाल संजाल विद्यमान है ,जो अपने जल से समस्त भारत भूमि को शस्य श्यामला बनाने में अनवरत सफल रहा है किंतु आज भूगर्भ के जल के निरंतर दोहन से संकट उत्पन्न हो रहा है और समस्त राष्ट्र के समक्ष जल संकट का भयंकर खतरा सामने है। इसी जल संकट से निपटने और किसानों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से आधुनिक भारत में बांध बनाने का कार्य प्रारंभ किया गया था जिसका प्राथमिक उद्देश्य बाढ़ नियंत्रण के साथ साथ जल आपूर्ति सुनिश्चित करना तथा जल विद्युत का उत्पादन और सिंचाई क्षमता बढाना था,उक्त उद्देश्य की पूर्ति के लिए बड़ी-बड़ी नदियों पर बांध बनाने का कार्य प्रारंभ किया गया था किंतु अब बड़ी नदियों के स्थान पर छोटी छोटी नदियों पर भी बांध बनाकर उनके जल प्रवाह को बाधित कर दिया गया है। यदि कहीं थोड़ा बहुत पानी प्रवाहित भी हो रहा है तो उन पर जगह जगह पर चेक डैम बनाकर उनके प्रवाह हो पूर्ण रूपेण बाधित कर दिया गया है। बुंदेलखंड के चित्रकूट जिले में लगभग 40 किलोमीटर के क्षेत्र में प्रवाहित होने वालु गुन्ता नदी अपने जल प्रवाह के मार्ग में पड़ने वाली समस्त भूमि को शस्य श्यामला बनाती हुई प्रकृति के साथ साथ जीव जंतुओं को भी अपने जल से संतुष्टि प्रदान करती थी, अपने सुस्वादु मृदुल जल के कारण वह क्षेत्रीय जनमानस के लिए किसी भी पवित्र नदी से कम न थी। स्थानीय लोग उसके जल की गुणवत्ता के कारण बाढ़ के दिनों में भी मिट्टी मिले हुए जल को घर में रख कर  जल के बर्तन में मिट्टी नीचे जमा हो जाने पर उसे छानकर पीते थे तथा संतुष्ट रहते थे किंतु विकास के चक्र के चलने पर समीपवर्ती गांव में नलों के माध्यम से जल की आपूर्ति होने लगी तथा गुन्ता नदी को बांध बनाकर एक निश्चित दायरे में बांध दिया गया,जल बाधित हो गया। यद्यपि इसके बाद भी  वह अपने गिने-चुने स्रोतों के माध्यम से  प्रवाहित होकर आगे बढ़कर यमुना नदी को अपने जल से आपूरित करना चाहती है किंतु  विकास के नाम पर शासन व्यवस्था ने स्थान स्थान पर चक डैम बनाकर उसकी गति को पूर्ण रूपेण बाधित कर दिया।फलस्वरूप वह अब समाप्ति के कगार पर है। उसके तट पर  समीपवर्ती गांव के लोग जो कभी उसके जल से संतुष्टि प्राप्त कर उससे अपना अपनापन मानते हुए समय समय पर उसकी पूजा करते थे तथा उसे अपना मानते थे ,अब वह उनके लिए पराई हो गई तथा उसका प्रवाह पथ बांध एवं चक डैम से बाधित हो कर पूर्ण रूपेण जलशून्य हो गया है ।भविष्य में लोगों के लिए उक्त नदियों की स्थिति मात्र कहानी किस्सों की बात बन कर रह जाएगी। इसी प्रकार   ही उरई में स्थित नून  नदी अपनी अंतिम अवस्था में हैं ,उसका जल प्रवाह पूरी तरह से बाधित हो चुका है ।जल प्रवाह के स्थान पर काले गंदे पानी से युक्त गंदा नाला प्रवहमान दर्शित होता है। तीन दशक पूर्व वह पूर्णरूपेण जल प्लावित नदी थी तथा अपने जल से जीव-जंतुओं सहित प्रकृति को पूर्ण संतुष्टि प्रदान करती थी, बांध के निर्माण तथा रेत के वैध अवैध खनन के लिए सरकारी कागजों में शासन व्यवस्था उसे नदी अवश्य मानती है,लेकिन जैसे ही उसके संरक्षण संवर्धन के लिए उसके प्रदूषित होने का जिक्र कर उसे प्रदूषण मुक्त कर नव जीवन प्रदान करने की बात होती है तो उसकी भूमि पर कब्जा जमाए बैठे भू माफिया तथा राजनीतिक संरक्षण प्राप्त रेत खनन के वैध अवैध व्यवसाई गण उसे बरसाती नाला बताने से नहीं चूकते ।आज वह अपने दूषित जल से यमुना को जहर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह अलग तथ्य है की नदी के रूप में अपने मृदुल जल से युक्त होने पर समीपवर्ती गांव के किनारे से गुजरते हुए वह उनका सहारा हुआ करती थी।वह क्षेत्र  भूगर्भ जल की दृष्टि से  डार्क जोन की श्रेणी में आता है। जालौन जिले के लगभग 101 गांव पूर्ण रूपेण नून नदी के जल मेंही निर्भर थे ,यह उनके लिए जीवनदायिनी थी किंतु उसके अस्तित्व समाप्त होने से संबंधित गांवों में पानी की विकराल समस्या मुंह बाए खड़ी है। विचित्र स्थिति यह है कि जो नदी कभी क्षेत्रीय जनता के लिए जीवनदायिनी थी । वह आज गंदा नाला बन कर सामान्य जनजीवन के समक्ष समस्या उत्पन्न कर रही है। साथ ही स्वयं के जीवन के लिए भी एक समस्या बन गई है किंतु इस समस्या के निदान का प्रयास किसी के द्वारा नहीं किया जा रहा  है। सामान्य समाज इस दिशा में कोई प्रयास नहीं कर रहा है ।छोटी छोटी नदियों को उनके अपने अस्तित्व के लिए राम भरोसे छोड़ दिया गया है ,जिससे वह स्वयं तो समाप्ति के कगार पर हैं ही साथ ही उनके द्वारा बड़ी नदियों को जल की आपूर्ति न हो पाने के कारण बड़ी नदियों के समक्ष भी समस्या मुंह बाए खड़ी है। फलस्वरूप छोटी छोटी नदियां जो कभी अपने साथ जल की अपार राशि लेकर ग्रामीण समाज को अपने बलबूते पर जल सुविधा प्रदान कर उन्हें पीने के पानी के साथ साथ सिंचाई के भी पर्याप्त साधन उपलब्ध कराते हुए उपजाऊ मिट्टी प्रदान कर आर्थिक रूप से समृद्ध करती थी आज स्वयं समाप्त हो रहीहैं।दुर्भाग्य से भारत के नीति नियंताओं ने प्रकृति के स्रोतों का निरंतर दोहन कर उन्हें पूर्ण रूप से समाप्त करने का ही निरंतर प्रयास किया है ,उनके संरक्षण संवर्धन के लिए कभी कोई प्रयास नहीं किया। फलस्वरूप प्रकृति के यह स्रोत निरंतर समाप्त हो रहे हैं ।आज उन्हें संरक्षण एवं संवर्धन हेतु शासकीय एवं सामाजिक सहयोग की अपेक्षा है ,किंतु जैसे सहयोग एवं संरक्षण की अपेक्षा , आवश्यकता है वैसा व्यापक संरक्षण एवं सहयोग कहीं से प्राप्त होता दिख नहीं रहा। प्रकृति के स्रोतों को बनाए रखने के लिए छिटपुट प्रयास तो देखे जा रहे हैं किंतु शासकीय व्यापक प्रयास न किए जाने से उनका परिणाम सामने नहीं आ रहा है। छोटी छोटी नदियों पर , सिंचाई की सुविधा बढ़ाने के नाम पर बांध बनाने का कार्य व्यापक रूप से तो किया जा रहा है किंतु छोटी नदियों को प्रवहमान बनाए रखने के लिए उनमें निर्धारित स्तर पर जल प्रवाहित किए जाते रहनेकी मात्रा को निश्चित कर उसको सुनिश्चित करने की कोई योजना अब तक नहीं बनाई गई है ।फलस्वरूप छोटी नदियों का पूरा का पूरा जल बांध कर उन्हें प्रवाहित होने से रोक दिया जा रहा है और वह अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं ,जिसमें उन्हें शासन या सामाजिक रूप से कहीं से भी कोई समर्थन नहीं मिल रहा और वह मृतप्राय होकर रह गई हैं, जबकि उनकी आवश्यकता एवं उपयोगिता को देखते हुए उनका नित्य प्रवहमान रहना सामाजिक सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक दृष्टिकोण से आवश्यक है । नदी के जल से आपूरित होकर भूगर्भ का जल जो कभी भूतल के समीप रहता था, अब निरंतर नीचे जा रहा है, जिसके कारण आने वाले दिनों में, निकट भविष्य में शीघ्र ही भयंकर जल की समस्या उत्पन्न होगी ,जिस का निदान कर पाना बहुत आसान न होगा। उसके लिए छोटी नदियों को गति एवं जीवन प्रदान करना आवश्यक होगा, जिसे  देखते हुए शासन व्यवस्था को इस दिशा में कार्य करना चाहिए किंतु ऐसा होते हुए दिख नहीं रहा। जल ही जीवन है को चरितार्थ कर तथा उसके निहितार्थ को समझकर जीव-जंतुओं सहित प्रकृति को जीवन प्रदान करने वाली छोटी छोटी नदियों को सुरक्षा संवर्धन एवं प्रदूषण से संरक्षण ही उनको जीवन प्रदान कर सकता है। हिंदू धार्मिक त्योहारों गंगा दशहरा ,कार्तिक पूर्णिमा आदि के अवसर पर जनमानस छोटी छोटी नदियों से लेकर बड़ी-बड़ी नदियों तथा  स्थानीय तालाबों जलाशयों तक को महत्व प्रदान कर ,उनमें स्नान कर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं किंतु यह भावना व्यक्तिपरक तथा मात्र एक दिन के लिए होती है ,जबकि आवश्यकता है कि यह भावना व्यक्तिपरक होने के स्थान पर समाजपरक हो तथा शासन व्यवस्था बड़ी नदियों के साथ ही छोटी नदियों के संरक्षण संवर्धन एवं उनके प्रदूषण मुक्त होने को सुनिश्चित करने का दायित्व स्वयं निभाये,तभी यह नदियां बचेगी तथा धरती में जल होगा और उससे जीवन भी सुरक्षित बना रहेगा अन्यथा समाप्त होती जा रही छोटी छोटी नदियां धरती  से समाप्त हो रहे जल की सूचना प्रदान कर आगे आने वाले जीवन के समक्ष उपस्थित होने वाले संकट की चेतावनी भी दे रही हैं,जिसका समय रहते निदान खोजना आवश्यक है और यह निदान किसी भी रूप में येन केन प्रकारेण छोटी छोटी नदियों को तात्कालिक लाभ की दृष्टि से  बांध देने ,मार देने के स्थान पर उन्हें अनवरत अपने गंतव्य पथ पर जाने हेतु प्रवाहित होने देने तथा उसकी व्यवस्था कर उसे सुनिश्चित करने से ही संभव है अन्यथा समक्ष विकराल स्थिति है, जिसका सामना कर पाना अत्यंत कठिन होगा।

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