योगदा आश्रम नोएडा में स्वामी चिदानंद गिरी के दिव्य सत्संग से आनंदित हुए साधकगण





ईश्वरप्राप्ति ही जीवन का लक्ष्य हो, इसके लिए क्रियायोग ही सर्वोत्तम साधना : अध्यक्ष वाईएसएस व एसआरएफ़ स्वामी चिदानन्द गिरि
 एस एन वर्मा
नोएडा : वाईएसएस व एसआरएफ़ के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द गिरि के दिव्य सत्संग से नोएडा आश्रम का वातावरण आज और अधिक शांतिमय और आनंदमय हो गया। स्वामी चिदानंद के “क्रियायोग की रूपान्तरकारी शक्ति” विषय पर आयोजित इस प्रेरणादायक आध्यात्मिक सत्संग में पधारे सभी साधक दिव्य ज्ञान से आनंदित दिखाई पड़े। सत्संग में उन्होंने कहा कि ईश्वरप्राप्ति ही मनुष्य के जीवन का लक्ष्य होना चाहिए इसके लिए क्रियायोग ही सर्वोत्तम साधना व मार्ग है।
सत्संग का आरंभ कॉस्मिक भजनों से हुआ। तदोपरांत योगदा के उपाध्यक्ष स्वामी स्मरणानंद गिरि ने अध्यक्ष स्वामी चिदानंद का स्वागत फूलों की माला पहना कर किया।योगदा सत्संग सोसाइटी के महासचिव स्वामी ईश्वरानंद गिरि मंच का संचालन कर रहे थे। उन्होंने स्वामी चिदानंद की दिव्य जीवन  यात्रा से श्रोतागणों को परिचय कराया।
वाईएसएस व एसआरएफ़ के संस्थापक और गुरु परमहंस योगानंद का स्मरण करते हुए स्वामी चिदानंद ने बताया कि गुरु जी बोला था कि परमपिता परमेश्वर और महान गुरुओं की कृपा से आत्मसाक्षात्कार के पथ पर चलने वाले साधकगण असीम शक्ति से इतने अधिक चार्ज हो जाते हैं कि उससे उनके आसपास का वातारण भी उर्जावान हो जाता है। उन्होंने कहा कि साधना करने से मनुष्य में ईश्वरीय गुण क्षमा,दया,करुणा व प्रेम आदि समाहित हो जाता है।इससे पूरे समाज को लाभ मिलता है। इसके लिए साधक को सदा अपना ध्यान ईश्वर पर ही फोकस रखना चाहिए।
स्वामी चिदानंद ने अपने साधक जीवन के शुरुआती पल को याद करते हुए बताया कि तत्कालीन  दयामाता के अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने आश्रम ज्वाइन किया था। उन्होंने बताया कि दयामाता के जीवन के अंतिम महिनों में माता का शरीर देदिप्यमान हो गया था।उनके शरीर से दिव्य किरणें फुट रहीं थीं।
एक प्रसंग को याद करते हुए स्वामी जी ने बताया कि जब 10 वर्ष से बच्चे से पूछा जाता है कि वह  क्या बनना चाहता है तो वह डाक्टर,इंजिनियर,वैज्ञानिक आदि बनने की इच्छा जाहिर करता है जबकि मनुष्य का लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति होना चाहिए चाहे वह पेशा कोई भी अपनाए।
उन्होंने कहा कि हम जन्म पर जन्म लिए जाते हैं  और ईश्वर प्राप्ति के लक्ष्य की ओर बढ़ते जाते हैं। प्रत्येक आत्मा उन्नति कर रही है। मनुष्य को साधना प्रत्येक दिन करना चाहिए चाहे वह कुछ समय के लिए ही करे। प्रत्येक दिन गुरु के उपदेशों ,पाठों को अध्ययन करना चाहिए। मानव की उन्नति का एकमात्र मार्ग योग ही है। ध्यान करें और परमानंद को प्राप्त करें।
उन्होंने कहा वर्तमान युग दुख ,विपत्ति व कष्ट से  भरा हुआ है लेकिन हमें सिर्फ पॉजिटिव बातों पर ही ध्यान फोकस करना चाहिए।बेहतर भविष्य हमारे सामने है।
स्वामी चिदानंद ने परमगुरु लाहिड़ी महाश्य के प्रवचनों को याद करते हुए कहा कि लाहिड़ी महाशय हमेशा कहते थे कि सभी समस्याओं का समाधान क्रिया योग में है।क्रिया करो।क्रिया करने से असीम शांति व आनंद की प्राप्ति होती है। साथ ही अंतरज्ञान मिलता है। उन्होंने कहा कि लाहिड़ी महाशय न सिर्फ योगावतार थे बल्कि प्रेम की मूर्ति थे।
स्वामी जी ने कहा कि “क्रियायोग के अभ्यास और उसके द्वारा उत्पन्न स्थिर एवं निश्चल अवस्था में अपनी चेतना को केन्द्रित करने से अन्तर्ज्ञान का विकास होना प्रारम्भ हो जाता है। क्रियायोग से प्रमस्तिष्क-मेरुदण्डीय केन्द्रों में शक्ति स्थानान्तरित होने लगती है और मेरुदण्ड और मस्तिष्क में स्थित दिव्य अनुभूति के चक्र जाग्रत होने लगते हैं।”
इस विशेष समारोह में स्वामी चिदानन्दजी, वाईएसएस व एसआरएफ़ के अध्यक्ष एवं आध्यात्मिक प्रमुख, ने हिन्दी संस्करण, “योगी कथामृत” की हार्डकवर प्रति का विमोचन भी किया।
यह पुस्तक साधक को आंतरिक जीवन के रूपांतरण की यात्रा, आध्यात्मिक खोज और रोमांच की दुनिया में ले जाती है साथ ही असाधारण जीवन का जीवंत लेखन, प्राचीन योग-विज्ञान और ध्यान की परंपरा का गहन परिचय देती है।
स्वामीजी जनवरी माह से भारत के वाईएसएस आश्रमों की यात्रा कर रहे हैं। वे श्री श्री परमहंस योगानन्द द्वारा सिखाए गये ध्यान के क्रियायोग विज्ञान पर सत्संग कर रहे हैं।
एमबीए करने के बाद आईटी सेक्टर में नौकरी करनेवाले फरीदाबाद निवासी एक युवा मैनेजर ने साझा किया कि उन्होंने इस सत्संग से क्या सीखा, “स्वामीजी ने बताया कि राजयोग की इस प्रविधि के अभ्यास के द्वारा हम अपने कर्मों के बीजों को कैसे भस्म कर सकते हैं। और यह भी समझाया कि आधुनिक जीवन के उतार-चढ़ावों से कैसे मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।”
अहमदाबाद के एक युवा मनोचिकित्सक ने कहा, “मैं पिछले चार वर्षों से क्रियायोग का अभ्यास कर रही हूँ। इससे मुझे अन्तर्मुखी होने और भक्ति का विकास करने में सहायता प्राप्त हुई है। जिसके कारण मेरे जीवन में सन्तुलन के साथ ही सुरक्षा की भावना भी आयी है। यह बदलती हुई परिस्थितियों में भी अपरिवर्तित रहती है।”
योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया और सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप, दोनों आध्यात्मिक संस्थाओं की स्थापना, विख्यात आध्यात्मिक उत्कृष्ट पुस्तक योगी कथामृत (ऑटबाइआग्रफी ऑफ़ ए योगी) के लेखक, विश्व-प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु, श्री श्री परमहंस योगानन्द द्वारा 100 वर्षों से भी अधिक पूर्व की गई थी।
सत्संग के उपरांत एक पत्रकार के प्रश्न के उत्तर में योगदा सत्संग सोसाइटी के महासचिव स्वामी ईश्वरानंद गिरि ने कहा कि युद्ध व हिंसा से बचाव का एक ही उपाय है कि मनुष्य योग साधना के मार्ग पर चले।मन को सदैव ईश्वर की चेतना के साथ जोड़ कर रखे इससे मन में व्यापक प्रेम उत्पन्न होगा। यह प्रेम प्रत्येक मनुष्य जाति देश के लिए उत्पन्न होगा । स्वंय को परिवर्तित करें , ईश्वर से जोड़े फिर संसार में न युद्ध होगा न अशांति फैलेगी।

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