कोविड-19 से लड़ने के लिए शोधकर्ताओं ने विकसित किया वायरस जैसा कृत्रिम कण


नई दिल्ली (इंडिया साइंस वायर):  कोरोना वायरस के प्रकोप के दौरान परिसंचारी उपभेदों के जीनोम अनुक्रमण और वायरस भिन्नता के अध्ययन एवं निगरानी के लिए भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत स्थापित INSACOG नामक पहल शुरू की गई थी। इसके अंतर्गत SARS-CoV-2 वेरिएंट की जाँच के लिए हर दिन हजारों नमूनों का अनुक्रमण किया गया, और वायरस में होने वाले किसी संभावित रूपांतरण (Mutation) की भी निरंतर निगरानी की गई। 

भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलूरू के शोधकर्ताओं ने वायरस जैसा एक नया कण (Virus-like particle - VLP) विकसित किया है, और उसका परीक्षण किया है। शोधकर्ताओं द्वारा विकसित किया गया यह कण एक गैर-संक्रामक नैनो अणु है, जो वायरस की तरह दिखता है, और उसी की तरह व्यवहार करता है। लेकिन, इसमें मूल आनुवंशिक सामग्री नहीं है। यह अध्ययन; शोध पत्रिका माइक्रोबायोलॉजी स्पेक्ट्रम में प्रकाशित किया गया है। 

वीएलपी का उपयोग बिना BSL-3 लैब सुविधा की आवश्यकता के न केवल SARS-CoV-2 में उत्पन्न होने वाले उत्परिवर्तन के प्रभाव का सुरक्षित अध्ययन करने के लिए किया जा सकता है, बल्कि इसे शरीर में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करने के लिए संभावित संभावित रूप से एक वैक्सीन उम्मीदवार के रूप में भी विकसित किया जा सकता है। शोधकर्ताओं में शामिल वैज्ञानिक सोमा दास कहती हैं कि वीएलपी का उपयोग वायरस से लड़ने वाली दवाओं की जाँच में लगने वाले समय को कम करने के लिए भी किया जा सकता है।

इस अध्ययन से जुड़े आईआईएससी के शोधकर्ता प्रोफेसर सौमित्र दास कहते हैं - वायरस का कौन-सा रूपांतरण सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है, इसका पता लगाने के लिए प्रभावी परीक्षण प्रणाली की आवश्यकता होती है। इस दौरान परीक्षण प्रोटोकॉल का व्यापक रूप से पालन किया जाता है, जिसमें नमूनों से वायरस को अलग करना, वायरस की प्रतियां बनाना, और जीवित कोशिकाओं में प्रवेश करने की क्षमता और दक्षता का अध्ययन किया जाता है। कोरोना जैसे अत्यधिक संक्रामक वायरस के साथ काम करना खतरनाक है, और इसके लिए बायो-सेफ्टी लेवल-3 (बीएसएल-3) लैब की आवश्यकता होती है। लेकिन, देशभर में कुछ सीमित लैब्स ही ऐसे वायरस से निपटने के लिए अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित हैं।

शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि वीएलपी को प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया ट्रिगर करने के लिए वैक्सीन उम्मीदवार के रूप में उपयोग किया जा सकता है। जब कोरोना महामारी फैली, तो शोधकर्ताओं ने SARS-CoV-2 के लिए VLP पर काम शुरू किया। उन्हें पहले वास्तविक वायरस में देखे गए सभी चार संरचनात्मक प्रोटीन - स्पाइक, एन्वेलप, मेम्ब्रेन और न्यूक्लियोकैप्सिड के साथ एक वीएलपी को कृत्रिम रूप से संश्लेषित किया गया। आईआईएससी के पीएचडी शोधार्थी और प्रमुख शोधकर्ता हर्षा रहेजा कहते हैं, " इस प्रक्रिया में मुख्य चुनौती सभी चार संरचनात्मक प्रोटीनों को एक साथ व्यक्त करने की थी।"

SARS-CoV-2 वायरस प्रत्येक संरचनात्मक प्रोटीन का अलग-अलग उत्पादन करता है, और फिर उन्हें सक्रिय वायरस कण बनाने के लिए आनुवंशिक सामग्री वाले खोल में इकट्ठा करके प्रतिकृति बनाता है। इस प्रक्रिया को दोहराने के लिए शोधकर्ताओं ने एक बेक्यूलोवायरस चुना है। यह वायरस कीटों को प्रभावित करता है, लेकिन मनुष्यों को नहीं। वीएलपी को संश्लेषित करने के लिए वेक्टर (वाहक) के रूप में बेक्यूलोवायरस का उपयोग किया गया है, क्योंकि इसमें इन सभी प्रोटीनों का उत्पादन, एकत्रीकरण और दोहराने की क्षमता है। इसके बाद, शोधकर्ताओं ने ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की मदद से वीएलपी का विश्लेषण किया, और पाया कि वे मूल SARS-CoV-2 की तरह ही स्थिर थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि चार डिग्री सेल्सियस पर, वीएलपी खुद को मेजबान कोशिका की सतह से जोड़ सकता है, और 37 डिग्री सेल्सियस (सामान्य मानव शरीर के तापमान) पर, यह कोशिका में प्रवेश करने में सक्षम था।

आईआईएससी के वक्तव्य में बताया गया है कि शोधकर्ताओं ने जब लैब में चूहों में वीएलपी की एक उच्च खुराक इंजेक्ट की, तो उसके लीवर, फेफड़े या गुर्दे के ऊतकों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा। इसकी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का परीक्षण करने के लिए चूहों के मॉडल को 15 दिनों के अंतराल पर एक प्राथमिक शॉट और दो बूस्टर शॉट दिए गए। ऐसा करने पर शोधकर्ताओं को चूहों के रक्त सीरम में उत्पन्न कई एंटीबॉडी मिले हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि ये एंटीबॉडी वायरस को बेअसर करने में भी सक्षम थे। रहेजा स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि "इसका मतलब है कि वे चूहों की रक्षा कर रहे थे।" 

शोधकर्ताओं ने अपने वीएलपी के लिए पेटेंट के लिए आवेदन किया है, और उन्हें इसे एक वैक्सीन उम्मीदवार के रूप में विकसित करने की उम्मीद है। वे अन्य पशु मॉडल और अंततः मनुष्यों पर वीएलपी के प्रभाव का अध्ययन करने की योजना बना रहे हैं। रहेजा का कहना है कि उन्होंने ऐसे वीएलपी भी विकसित किए हैं, जो ओमिक्रोन और अन्य हालिया वायरस संस्करणों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम हो सकते हैं। (इंडिया साइंस वायर)

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