बांधों की संख्या की दृष्टि से चीन एवं अमेरिका के बाद विश्व में भारत का तीसरा स्थान

 बांधों की व्यवस्था के लिए


बना कानून

डॉ दिनेश प्रसाद मिश्र

बांधों की संख्या की दृष्टि से चीन एवं अमेरिका के बाद विश्व में भारत का तीसरा स्थान है सर्वाधिक बांध चीन में उसके बाद अमेरिका में तथा उसके बाद सबसे अधिक बांध भारत में हैं। बांधों के राष्ट्रीय रजिस्टर के अनुसार भारत में अब तक 5334 बांधों का निर्माण संपन्न हो चुका है जबकि 411 बांध निर्माणाधीन है ।शयह बांध देश की सिंचाई, विद्युत उत्पादन तथा बाढ़ की समस्या से निपटने एवं जल भंडारण की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए लगभग 300 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी का भंडारण करते हैं। जल की अपार राशि को अपने आगोश में समेटे रहने तथा उसकी सुरक्षा के कोई प्रावधान एवं व्यवस्था न होने के कारण अपनी आयु व्यतीत कर चुके यह मानव निर्मित समुद्र अपने गर्भ में क्षमता से अधिक पानी के एकत्र हो जाने आदि के कारण बाहरी दीवारों के टूट जाने से यदा-कदा जल प्रलय  का दृश्य उपस्थित कर देते हैं। कोई उचित स्थायी व्यवस्था न होने के कारण आपात स्थिति आने पर चारों तरफ हाहाकार मच जाता है, जिससे जनधन की अपार क्षति होती है। बांधों के टूटने से होने वाली दुर्घटनाओं एवं जल प्लावन के दृश्यों के दृष्टिगत समय-समय पर उनकी उचित व्यवस्था तथा दुर्घटनाओं पर स्थाई नियंत्रण हेतु केंद्रीय स्तर पर  कानून बनाए जाने की मांग होती रही है, ।यदा-कदा बांधों की सुरक्षा एवं उनकी व्यवस्था हेतु कानून बनाने की दिशा में थोड़े बहुत प्रयास किए भी गए किंतु वह मूर्त रूप नहीं ले सके । लंबी मशक्कत के बाद 2 दिसम्बर 2019 को बांधों  की व्यवस्था हेतु कानून बनाने से संबंधित बिल लोकसभा से पारित होने के ठीक एक वर्ष बाद 2 अगस्त 21 को राज्यसभा से भी पारित हो गया और बांधों की व्यवस्था हेतु लंबे समय से प्रतीक्षित कानून अस्तित्व में आ सका।

बांधों की सुरक्षा व्यवस्था के दृष्टिगत एकीकृत व्यवस्था के अभाव में विभिन्न राज्यों के मध्य होने वाले विवादों तथा दुर्घटनाओं से जनधन की हानि के दृष्टिगत केंद्र सरकार ने उसकी समीक्षा करने और एकीकृत प्रक्रिया विकसित करने के लिए वर्ष 1982 में केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष की अध्यक्षता में एक समिति गठित कर, स्थिति की विस्तृत समीक्षा करते हुए रिपोर्ट प्रस्तुत  करने हेतु निर्देशित किया था जिसके अनुक्रम में गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं बांध सुरक्षा पर कानून की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए सभी बांधों के लिए एकीकृत बांध सुरक्षा प्रक्रिया की सिफारिश की थी ,जिसके दृष्टिगत जहां एक ओर बिहार ने बांध सुरक्षा अधिनियम 2006 अधिनियमित किया था, तथा केरल ने अपने सिंचाई अधिनियम में संशोधन किया था, वहीं दूसरी ओर  पश्चिम बंगाल , आंध्र प्रदेश की सरकारों ने अपनी अपनी विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित कराकर केंद्र सरकार और संसद से यह आग्रह किया था कि वह ऐसा एकीकृत कानून बनाए ,जिसे विभिन्न राज्य अपने यहां  लागू कर बांधों को सुरक्षित कर सकें, तथा आए दिन होने वाली दुर्घटनाओं तथा राज्यों के मध्य परस्पर उत्पन्न होने वाले विवादों से निजात पा  सकें।

भारत में निर्मित बांधों द्वारा लगभग 214 अरब घन मीटर जल संरक्षण क्षमता प्राप्त की जा चुकी है, किंतु भारत सरकार द्वारा जल संसाधन विकास के लिए गठित राष्ट्रीय आयोग के अनुसार प्रतिवर्ष 1.3 अरब घन मीटर की दर से जल संग्रहण की क्षमता में कमी आ रही है और इस कमी का कारण है जलाशयों में गाद की मात्रा का बढ़ना ,जिसके लिए आवश्यक है कि समय समय पर बांधों के रखरखाव पर उचित ध्यान दिया जाए तथा उनके गर्भ में जमी गाद को बाहर निकाला जाए ,लेकिन भारत में अब तक बने बांधों के रखरखाव तथा उनकी व्यवस्था हेतु किसी प्रकार का कोई कानून न होने के कारण साथ ही  पानी  का राज्य का विषय होने के कारण केंद्रीय कानून बनाने के संदर्भ में कुछ राज्य सरकारों को अपने बांधों से नियंत्रण हट जाने की आशंका के चलते आपत्ति थी ,विशेष रुप से तमिलनाडु सरकार केरल के बांधों से अपना नियंत्रण नहीं खोना चाहती, इसके लिए वह बांधों के रखरखाव हेतु केंद्रीय कानूनों का निरंतर विरोध करती रही है, किंतु केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों की आपत्तियों को दरकिनार कर बांधों की सुरक्षा एवं व्यवस्था हेतु एकीकृत कानून बनाने का निर्णय लिया और संसद के दोनों सदनों में बिल प्रस्तुत कर उसे पास कराया।

वस्तुतः बांधों की सुरक्षा एवं उनके रखरखाव हेतु 1982 में गठित केंद्रीय जल आयोग की समिति ने 1986 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और बांध सुरक्षा पर विशेष बल देते हुए एकीकृत व्यवस्था किए जाने की रिपोर्ट प्रस्तुत की।वर्ष 2002 में राज्यों को बांध सुरक्षा विधेयक कब प्रारूप भेजा गया तथा 2010 में संसद में यह विधेयक रखा गया किंतु  विधेयक पास नहीं हो सका , जिसे बाद में स्टैंडिंग कमेटी को भेज दिया गया । स्टैंडिंग कमेटी ने विधेयक पर विचार कर उस पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए अनेक संशोधन प्रस्तुत किए। पेंडिंग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में देश के बांधों की सुरक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बांध सुरक्षा पर विधेयक के निर्माण में हो रहे विलंब पर चिंता व्यक्त की साथ ही अपना यह मंतव्य प्रस्तुत किया कि जनहित में केंद्र सरकार संविधान की संघ सूची की प्रविष्टि 56 के दृष्टिगत कानून बना सकती है। बाद में देश के साले स्टाफ जनरल ने भी संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची 1 की पुरुष 56 और पुरुष की 97 के साथ पठित अनुच्छेद 246 के द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करके केंद्र सरकार द्वारा बांध सुरक्षा विधेयक पारित कराने हेतु अपना प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया जिसके दृष्टिगत केंद्र सरकार द्वारा बांध सुरक्षा विधेयक 2019 तैयार कर संसद में प्रस्तुत किया गया और संसद के दोनों सदनों द्वारा उसे पारित कर दिया गय अधिनियम के पारित होते ही बांधों की सुरक्षा हेतु की व्यवस्था बन सकी। इस अधिनियम में बांध टूटने से होने वाले नुकसान को रोकने बांध सुरक्षा के मानक बनाने तथा बाप सुरक्षा से संबंधित नीतियों नियमों को बनाने तथा विकसित करने हेतु एक राष्ट्रीय बाल सुरक्षा समिति के गठन का प्रावधान किया गया है। इस अधिनियम के द्वारा एक राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण के गठन का भी प्रावधान किया गया है। वस्तुतः बांध सुरक्षा पर गठित सीडब्ल्यूसी कमेटी ने 1986 में सभी बांधों के लिए एक समान सुरक्षा प्रक्रियाओं और स्थाई ढांचे के निर्माण का सुझाव दिया था 2007 में आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में प्रस्ताव पारित कर संसद से बांध पर सुरक्षा कानून बनाने बनाने का अनुरोध किया गया था परिणाम स्वरूप लोकसभा में अनुच्छेद 252 के अंतर्गत बांध सुरक्षा बिल 2010 पेश किया गया किंतु पंद्रहवीं लोकसभा के भंग हो जाने के कारण 2000 का बिल पास ना होकर समाप्त हो गया इसके बाद बांध सुरक्षा बिल 2019 को अनेक संशोधनों के साथ लोकसभा में 19 जुलाई 2019 को पेश किया गया और 2 अगस्त 2019 को यह बिल लोकसभा में पारित हो गया उसके बाद 2 दिसंबर 2021 को राज्य सभा से पारित होने के बाद यह बिल कानून में परिवर्तित हो गया । ‌इस अधिनियम में ही यह  निर्धारित किया गया है कि बांध के मालिक का यह दायित्व होगा कि वह बांध की सुरक्षा और उनका रखरखाव भली-भांति करें। मानसून से पूर्व और बाद में तथा विभिन्न आपदाओं के समय आवश्यकतानुसार कार्य कर मूल्यांकन करते हुए बांध के मरम्मत का कार्य कर उसे सुरक्षित तथा सुव्यवस्थित बनाएं। इस अधिनियम के बन जाने से अब बांध मालिक बांधों के सुरक्षित निर्माण परिचालन रखरखाव और निगरानी के लिए जिम्मेदार होंगे उन्हें प्रत्येक बांध में एक सुरक्षा इकाई बनानी होगी यह इकाई बारिश के मौसम से पहले और बाद में हर भूकंप बाढ़ प्राकृतिक आपदा या संकट की आशंका के दौरान और उसके बाद आपातकालीन कार्य योजना तैयार करना निर्दिष्ट अंतराल पर जोखिमों का आकलन करना और विशेषज्ञ पैनल के जरिए प्रत्येक बांध के की व्यापक सुरक्षा मूल्यांकन करना इस इकाई के मुख्य कार्य होंगे। बांधों की सुरक्षा व्यवस्था हेतु यह अधिनियम राष्ट्रीय बांध सुरक्षा कमेटी, राष्ट्रीय बांध सुरक्षा अथार्टी तथा राज्य बांध सुरक्षा कमेटी के गठन का प्रावधान करता है, वह अपने अपने दायित्वों का निर्वहन कर बांधों को सुरक्षा प्रदान करते हुए आने वाली समस्याओं को दूर करेंगे जिससे उन से उत्पन्न होने वाली आपदाओं के कारण समय-समय पर होने वाली जन धन हानि से बचा जा सकेगा। साथ ही बांधों के रखरखाव को लेकर विभिन्न राज्यों के मध्य विद्यमान मतभेद भी आसानी से दूर हो सकेंगे तथा बांध की सुरक्षा व्यवस्था हेतु उत्तरदाई संस्था या राज्य अपने उत्तरदायित्व का समय से भली-भांति निर्वहन कर बांधों को सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही उनके रखरखाव का भलीभांति प्रबंध कर सकेंगे।

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