*हरीश रावत ने पंजाब और उत्तराखंड में कांग्रेस को तापा*


 *राष्ट्र-चिंतन* 


*आचार्य श्री विष्णुगुप्त* 

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सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी अपने सलाहकारों की राजनीतिक करतूतों और उनकी नासमझी की भयंकर कीमत चुका रहे है। राजनीतिक कीमत इतनी खतरनाक और आत्मघाती है कि कांग्रेस के नीचे की जमीन खिसक रही है और उन्हें इसकी न तो चिंता है और न ही वे अपने सलाहकारों के समूह को चाकचौबंद करने की कोई प्रयास कर रहे हैं। सोनिया गांधी परिवार का एक राजनीतिक सलाहकार हैं, जिनका नाम है हरीश रावत है। हरीश रावत अभी-अभी उत्तराखंड विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार थे पर वे चुनाव हार गयेे, वे कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष भी थे। आमतौर पर यह माना जाता है कि जो चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष होते हैं वहीं पार्टी की ओर से मुख्य चेहरा होते हैं और पार्टी की हार-जीत उन्हें की काबिलियत पर निर्भर करती है। 

              गंभीर बात यह है कि जो हरीश रावत खुद चुनाव नहीं जीत पाये तो वह कांग्रेस को किस प्रकार से उत्तराखंड में सत्ता दिलाते? चुनाव परिणामों के पूर्व तक यह उम्मीद की जा रही थी कि उत्तराखंड में कांग्रेस का न केवल प्रदर्शन अच्छा रहेगा बल्कि कांग्रेस अपनी सरकार बना सकती है, भाजपा की सत्ता छीन सकती है। लेकिन यह उम्मीद नाउम्मीदी में तब्दील हो गयी और कांग्रेस की उत्तराखंड में सरकार बनाने की इच्छा जमींदोज हो गयी। अब एक और पांच साल कांग्रेस उत्तराखंड में हाशिये पर खड़ी रहेगी। निश्चित तौर पर उत्तराखंड की स्थिति और हार कांग्रेस के लिए एक सबक है और कांग्रेस की हार के लिए सिर्फ और सिर्फ हरीश रावत की अति महत्वाकांक्षा, पुत्री-परिवार प्रेम, मुस्लिम प्रेम और चमचा प्रेम जिम्मेदार हैं। 

                        आप अगर यह सोच रहें होंगे कि हरीश रावत ने सिर्फ उत्तराखंड में ही कांग्रेस तापा है या फिर कांग्रेस की लूटिया डूबोयी है तो फिर आप गलतफहमी में हैं। हरीश रावत ने पंजाब में भी कांग्रेस को तापा है, पंजाब में कांग्रेस की हार के लिए बुनियाद रखने वाले हरीश रावत ही हैं। वह कैसे? आपको याद होना चाहिए कि पंजाब में कांग्रेस के अंदर वर्चस्व की लड़ाई शुरू कराने वाले और कोई नहीं बल्कि हरीश रावत ही हैं। हरीश रावत पंजाब में कांग्रेस के प्रभारी थे। हरीश रावत के बारे में प्रचारित यह है कि वे सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अति विश्वासपात्र हैं। जब कोई नेहरू खानदान का अतिविश्वासी बन जाता है तो फिर उसकी कांग्रेस में चमक-धमक, वर्चस्व बढ़ जाते है, उसका खेला सिर चढ़ कर बोलता है। हरीश रावत के सिर पर चमक-धमक, वर्चस्व और खेला दो तरह से चढ़कर बोल रहा था। एक तो हरीश रावत उत्तराखंड के सर्वेसर्वा नेता हो गये, उनकी इच्छा के बिना उत्तराखंड में पत्ता तक नहीं हिलने लगा, कांग्रेस की सभी नियुक्तियों में उनकी इच्छा सर्वोत्तम मानी गयी। दूसरे में वे कांग्रेस के केन्द्रीय कमिटी में भी शक्तिमान बन गये। उन्हें पंजाब में कांग्रेस का प्रभारी बना दिया गया। हरीश रावत उस पंजाब में कांग्रेस के प्रभारी बना दिये गये जिस पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी और अमरिंदर सिंह कांग्रेस सरकार के मुख्यमत्री थे। अमरिन्दर सिंह की खासियत और विश्वसनीयता कौन नहीं जानता है?

              अमरिंदर सिंह ही वह शख्त थे जो अपने दम पर कांग्रेस को पंजाब में स्थापित और गतिशील करते रहे थे। अकालियों से कांग्रेस ने जो सत्ता छिनी थी उसके पीछे भी अमरिन्दर सिंह की शख्सियत रही थी। अकालियो से सत्ता छिनना कोई आसान काम नहीं था, बहुत ही कठिन काम था। लेकिन वह कठिन काम भी अमरिंदर सिंह ने कर दिखाया था। पंजाब में अमेरिन्दर सिंह की सहजता और कार्यकुशलता के लोग बहुत ही दिवाने रहे हैं। वे हर कोई को मदद करने का काम करते रहे थे। पांच साल का उनका कार्यकाल कोई बहुत बुरा नहीं था, उन पर भ्रष्टचार और निरंकुशता का कोई प्रभावकारी शिकायतें नहीं थी।र ाजनीतिक हलकों में यह उम्मीद भी नहीं थी कि अमरिन्दर सिंह को इस तरह से कांग्रेस अपमानित करेगी और उन्हें मुख्यमंत्री के पद से अपमानित कर हटा देगी?

          हरीश रावत ने पंजाब कांग्रेस के प्रभारी के रूप में कोई एक नहीं बल्कि कई करतूतों को अंजाम देने का काम किया। सबसे पहले तो उन्होंने अमरिन्दर सिंह को हटवाने और उनके खिलाफ साजिश रचने के काम किये। नवजीत सिंह सिद्धु को हथकंडा बनाया। नवजोत सिंह सिद्धु की महत्वाकांक्षा की आग में हरीश रावत ने घी डाला। आग में जब घी पड़ती है तो आग भयानक हो जाती है। ठीक इसी प्रकार सिद्धु की अति महत्वाकांक्षा भयानक हो गयी। मंत्री के रूप में नौटंकी करने वाले सिद्धु को एकाएक कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। प्रदेश अध्यक्ष बनने के साथ ही साथ सिद्धु की मुख्यमंत्री बनने की इच्छाएं अति हो गयी। सिद्धु को हरीश रावत का साथ मिला। हरीश रावत और सिद्धु की साजिश से विधायकों ने बगावत की। हरीश रावत ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को समझा दिया कि अमरिदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस नहीं जीतेगी, इसलिए सिद्धु को मुख्यमंत्री बना दिया जाये। अमरिंदर सिंह के कारण सिद्धु मुख्यमंत्री नहीं बन पाये। चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री बन गये। चरणजीत सिंह और सिद्धू के बीच कैसी राजनीतिक लड़ाई हुई, यह भी जगजाहिर है।

                अगर अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस लड़ती तो फिर कांग्रेस की पंजाब में इतनी बूरी स्थिति नहीं होती और न ही आम आदमी पार्टी की इतनी बड़ी जीत मिलती। लेकिन हरीश रावत की करतूत का खामियाजा कांग्रेस भुगत रही है। अब पंजाब में भी कांग्रेस बिहार, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना, आंध्रप्रदेश की तरह कभी भी सत्ता के लायक नहीं समझी जायेगी और चौथे-पाचवें नंबर की पार्टी बन कर रहेगी। अब पंजाब में आम आदमी पार्टी, अकाली दल और भाजपा ही मुख्य सत्ता के दावेदार बने रहेंगे। असम में भी प्रभारी के रूप में उनकी भूमिका नकारात्मक थी।

            उत्तराखंड में भी विधान सभा चुनाव के पूर्व हरीश रावत की जगह किसी दूसरे के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की सुगबुगाहट हुई थी। कांग्रेस का चुनाव प्रभारी देवेन्द्र यादव भी हरीश रावत पर पूरी तरह से विश्वास नहीं कर पा रहे थे। देवेन्द्र यादव किसी अन्य कांग्रेसी को पार्टी का मुख्य चुनावी चेहरा बनाने के समर्थक थे। लेकिन हरीश रावत ने कांग्रेस को ब्लैकमेल करने का काम किया। प्रचारित यह कराया कि अगर उनके नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव नहीं लडेगी तो फिर कांग्रेस सत्ता में नहीं आयेगी। कुछ विद्राही ट्विट कर चुनौती भी दी। जिसके कारण सोनिया गांधी और प्रियंका-राहुल का मौन समर्थन हरीश रावत को मिल गया।

                    उत्तराखंड में टिकट वितरण में हरीश रावत की इच्छा ही सर्वोपरि रही थी। हरीश रावत पर आरोप है कि उन्होंने पैसे वाले और चमचे टाइप के लोगों को टिकट दिलवाये। हरीश रावत ने अपनी व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को कांग्रेस से बाहर जाने के लिए मजबूत कर दिया। किशोर उपाध्याय भाजपा में शामिल होकर विधायक बन गये। 

उन्होंने कुछ दलबदलुओं को भी टिकट दिलवाये और कांग्रेस में शामिल कराये। वे खुद चुनाव लड़ रहे थे फिर अपनी बेटी को भी कांग्रेस का टिकट दिलवा दिया।जनता के बीच संदेश यह गया कि जो हरीश रावत अपने साथ ही साथ बेटी को भी चुनाव लड़वा रहा है, वह मुख्यमंत्री बनने के बाद भी परिवारवादी ही बना रहेगा। इसके अलावा जो कांग्रेस के समर्पित कार्यकर्ता थे उनकी घोर उपेक्षा हुई।

              हरीश रावत का घोर और आत्मघाती मुस्लिम प्रेम कांग्रेस को कहीं का नहीं छोड़ा। उत्तराखंड देव भूमि है। इस देवभूमि में आम जनता की आस्थाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। हरीश रावत ने कांग्रेस के घोषणा पत्र में मुस्लिम विश्वविद्यालय स्थापित करने की बात की थी। जैसे ही मुस्लिम विश्वविद्यालय स्थापित कराने की बात उजागर हुई वैसे ही उत्तराखंड में राजनीतिक उफान मच गया। भाजपा इसका लाभ उठाने की उठायी। देवभूमि हिन्दू वाहिणी के डीडी पांडेय और जगदीश भट्ट ने चुनाव के दौरान इसे मुद्दा बना दिया और पूरे प्रदेश में जमकर अभियान चलाया। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि भाजपा से खफा लोग भी कांग्रेस के मुस्लिम प्रेम के विरोधी हो गये। यह एक राजनीतिक नासमझदारी का प्रसंग है। मुस्लिम भाजपा को कभी वोट करते नहीं हैं। उत्तराखं डमें भाजपा के खिलाफ कांग्रेस ही मैदान में थी। मुसलमानों के सामने कांग्रेस एक मात्र विकल्प थी। अगर ऐसी घोषणा नहीं भी करते तो भी मुसलमान कांग्रेस को ही वोट देते। एक बार पूर्व भी कांग्रेस को इसी तरह हरीश रावत ताप चुके हैं। हरीश रावत  जब मुख्यमंत्री थे और सरकार कांग्रेस की थी तब उन्होंने सरकारी कर्मचारियों को नमाज पढ़ने के लिए दो घंटे की छुट्टी दी थी। इसके कारण भी कांग्रेस का नुकसान हुआ था। उस समय भी मुख्यमंत्री के पद पर रहते हरीश रावत विधान सभा का चुनाव हार गये थे।

                         कांग्रेस आलाकमान अनुभवों और युवाओं की परिभाषा समझ नहीं पा रही है। अनुभव के नाम पर हरीश रावत, पी चिदम्बरम जैसे चूके हुए नेताओं को ही आगे बढ़ाता है, युवाओं के नाम पर सिर्फ बड़े घरानों के खानदानी युवाओं को ही संगठन मे जिम्मेदारी मिलती है। जिसके कारण कांग्रेस की यह दुर्गति हो रही है। अगर कांग्रेस आलाकमान ने हरीश रावत की ऐसी राजनीतिक करतूतों पर लगाम लगायी होती तो फिर पंजाब और उत्तराखंड में कांग्रेस की ऐसी दुर्गति और फजीहत नहीं होती।


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