‘अमृतकाल’ में अहम होगी युवा वैज्ञानिकों की भूमिका


                                   नई दिल्ली (इंडिया साइंस वायर): केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान और प्रौद्योगिकी; राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पृथ्वी विज्ञान; राज्य मंत्री पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष, डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा है कि युवा प्रतिभाओं का पोषण स्वतंत्रता के 100वें वर्ष में भारत के लिए सबसे अच्छा निवेश साबित होगा। इस क्रम में, उन्होंने आगामी 25 वर्षों को ‘अमृतकाल’ की संज्ञा देते हुए कहा कि इस दौरान देश के विकास के रोडमैप के निर्धारण में युवा वैज्ञानिकों की भूमिका अहम होगी। डॉ जितेंद्र सिंह ने ये बातें नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय विज्ञान दिवस समारोह में राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार पुरस्कार और शोध की अभिव्यक्ति के लिए लेखन कौशल को प्रोत्साहन (AWSAR) पुरस्कार प्रदान करते हुए कही हैं। 

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वैज्ञानिकों एवं विज्ञान के प्रति उत्साही लोगों को दिए गए बधाई संदेश को दोहराते हुए डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि हमें सामूहिक वैज्ञानिक जिम्मेदारी को लेकर अपनी प्रतिबद्धता सुदृढ़ करने और मानव विकास के लिए विज्ञान के प्रभावी उपयोग को सुनिश्चत करने की जरूरत है।  

‘टिकाऊ भविष्य के लिए विज्ञान प्रौद्योगिकी में एकीकृत दृष्टिकोण’ थीम पर आयोजित राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (एनएसडी)-2022 के अवसर पर राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करते डॉ सिंह ने कहा कि “हम एक ऐसे युग की शुरुआत करना चाहते हैं, जिसमें विज्ञान की सभी शाखाएं एकीकृत होकर लोगों के साथ मिलकर काम करेंगी, जिसमें लोगों के लिए, लोगों के द्वारा विज्ञान को बढ़ावा दिया जा सके और मानवता के लिए एक स्थिर भविष्य का निर्माण किया जा सके।” इस वर्ष राष्ट्रीय विज्ञान दिवस ‘विज्ञान सर्वत्र पूज्यते’ के भव्य समापन के साथ-साथ मनाया जा रहा है। ‘विज्ञान सर्वत्र पूज्यते’ का आयोजन भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों को दर्शाने के लिए 'आजादी का अमृत महोत्सव' के हिस्से के रूप में देश भर के 75 विभिन्न शहरों में आयोजित किया गया। 

केंद्रीय मंत्री ने कहा, "हमारा उद्देश्य सांस्कृतिक लोकाचार में भारत के विज्ञान और वैज्ञानिक उपलब्धियों को शामिल करना और जनसामान्य में वैज्ञानिक चेतना विकसित करना है, जिससे वह वैज्ञानिक सूचना और नवाचारों से जुड़कर उसका लाभ उठा सके।” डीएसटी सचिव डॉ एस चंद्रशेखर ने कहा, "देश भर में विज्ञान का उत्सव एक साथ काम करने की भावना पैदा करने, विशेषज्ञता साझा करने और राष्ट्र के लाभ के लिए विज्ञान का उपयोग करने की प्रतिबद्धता पैदा करने में मदद करेगा।"

‘विज्ञान सर्वत्र पूज्यते’ कार्यक्रम के अंतर्गत नई दिल्ली समेत देश के कुल 75 शहरों में विज्ञान प्रदर्शनी, वैज्ञानिक व्याख्यान, पुस्तक मेला, नुक्कड़ नाटक, क्विज और विज्ञान कवि सम्मेलन जैसी गतिविधियों के माध्यम से भारत के वैज्ञानिक और तकनीकी कौशल को प्रदर्शित किया गया, जिनसे रक्षा, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य, कृषि, खगोल विज्ञान, जलवायु, पर्यावरण, वन्य जीवन और अन्य क्षेत्रों में चुनौतियों का समाधान खोजने में मदद की है। 

‘विज्ञान सर्वत्र पूज्यते’ के अंतर्गत आयोजित मेगा एक्सपो में वैज्ञानिक विभागों, संस्थानों और प्रयोगशालाओं के साथ कई मंत्रालयों ने भाग लिया। भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा ध्रुवीय क्षेत्रों के अध्ययन के लिए अंटार्कटिका में स्थापित भारती स्टेशन के वैज्ञानिकों के साथ से ऑनलाइन संवाद श्रृंखला इन गतिविधियों में सबसे लोकप्रिय रही। 

सामान्य रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार में उत्कृष्ट प्रयासों के लिए पी.एन. पनिक्कर फाउंडेशन, तिरुवनंतपुरम, केरल को राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया है। राष्ट्रीय विज्ञान संचार पुरस्कारों के अंतर्गत पुस्तकों एवं पत्रिकाओं सहित प्रिंट मीडिया के जरिये विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए इस बार डॉ रमेश चंद्र परिडा और डॉ. हृदय कुमार चोपड़ा, को पुरस्कृत किया गया है। डॉ परिडा ने 102 पुस्तकें लिखी हैं और उनके उड़िया में 3000 से अधिक लेख और अंग्रेजी में 300 लेख प्रकाशित हुए हैं। प्रतिष्ठित हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ चोपड़ा ने भी राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में सैकड़ों लेख प्रकाशित किए हैं। 

बच्चों के बीच विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में उत्कृष्ट प्रयास के लिए गुरुग्राम, हरियाणा की डॉ श्रीमति नरेश यादव को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। बच्चों एवं अध्यापकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम, खेल-खेल में विज्ञान एवं गणित को लोकप्रिय बनाने से जुड़ी गतिविधियों, प्रदर्शनी, मॉडल एवं प्रतियोगिताओं के जरिये जागरूकता के प्रसार के लिए उन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया गया है। इसी श्रेणी में गोवा के सेवानिवृत्त सहायक प्राध्यापक विजयकुमार चंद्रकांत वेरेंकर को भी पुरस्कृत किया गया है। उन्हें यह पुरस्कार विज्ञान के सरल, सुबोध और प्रेरक व्याख्यानों एवं अनुप्रयोगों के जरिये विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए मिला है। 

नवाचारी एवं परंपरागत तरीकों से विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए कानपुर, उत्तर प्रदेश के डॉ विकास मिश्रा (सहायक प्राध्यापक-अकबरपुर महाविद्यालय), चंडीगढ़ की डॉ सुमन मोर (सह-प्राध्यापक, पर्यावरण अध्ययन विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय), आयुर्विज्ञान संस्थान, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ संतोष कुमार सिंह, और नेशनल एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी इनिशिएटिव ऐंड कोऑपरेशन, वाराणसी को पुरस्कृत किया गया है। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार में उत्कृष्ट प्रयासों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जम्मू एवं कश्मीर के जलालुद्दीन बाबा और नई दिल्ली के प्रोफेसर राजिंदर कुमार धमीजा को प्रदान किया गया है। 

इस मौके पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा शुरू की गई शोध की अभिव्यक्ति के लिए लेखन कौशल को प्रोत्साहन (अवसर) नामक राष्ट्रीय प्रतियोगिता के तहत चुने गए चार युवा वैज्ञानिकों को भी पुरस्कार प्रदान किए गए हैं। इस प्रतियोगिता में पीएचडी एवं पोस्ट डॉक्टोरल शोधार्थियों समेत दो वर्गों में पुरस्कार दिए जाते हैं। पोस्ट डॉक्टोरल वर्ग में सर्वश्रेष्ठ लेखन के एक लाख रुपये का पुरस्कार नई दिल्ली की डॉ प्रज्ञान परिमिता रथ को मिला है। अवसर प्रतियोगिता के पीएचडी वर्ग के अंतर्गत एक लाख रुपये का प्रथम पुरस्कार पुणे के अजय कुमार चंद्रकांत लागाशेट्टी, 50 हजार रुपये का द्वितीय पुरस्कार नई दिल्ली के अनूप सिंह और 25 हजार रुपये का तृतीय पुरस्कार नई दिल्ली की दीक्षा पांडेय को दिया गया है।

भारत सरकार द्वारा वर्ष 1986 में 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (एनएसडी) के रूप में नामित किया गया था। वर्ष 1928 में इसी दिन प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक सर सी.वी. रामन ने “रामन प्रभाव” की खोज की घोषणा की थी, जिसके लिए उन्हें वर्ष 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार और लोकप्रियकरण के माध्यम से समाज में वैज्ञानिक चेतना के प्रसार से जुड़े उत्कृष्ट प्रयासों को प्रोत्साहन देने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा वर्ष 1987 में राष्ट्रीय पुरस्कारों की स्थापना की गई। ये पुरस्कार हर साल राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर प्रदान किए जाते हैं।

इस मौके पर केंद्रीय मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह द्वारा विज्ञान प्रसार द्वारा प्रकाशित तीन कॉफी टेबल पुस्तकों का विमोचन भी किया गया है। इन पुस्तकों में – ‘डिपार्टमेंट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी: पास्ट, प्रेजेंट, फ्यूचर’; ‘75 अंडर 50’; ‘75 फाउंडर्स ऑफ मॉडर्न साइंस इन इंडिया’ शामिल हैं। पहली पुस्तक भारत में वैज्ञानिक परंपरा और नवाचार को आकार देने में डीएसटी की भूमिका को बयाँ करती है और भविष्य के वैज्ञानिक लक्ष्यों की एक झलक प्रदान करती है। ‘75 अंडर 50’ शीर्षक से प्रकाशित पुस्तक वर्तमान भारत को आकार देने वाले वैज्ञानिकों के योगदान एवं संघर्ष को रेखांकित करती है। इसी तरह, ‘75 फाउंडर्स ऑफ मॉडर्न साइंस इन इंडिया’ शीर्षक से प्रकाशित पुस्तक भारत में विज्ञान की आधारशिला रखने वाले वैज्ञानिकों के योगदान को दर्शाती है। इसी के साथ-साथ, परमाणु ऊर्जा विभाग के प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान के डॉ. बी.एस. मुंजाल और डॉ. सूर्यकांत गुप्ता द्वारा लिखित ‘मीट, ग्रीट ऐंड ट्वीट विद प्लाज़्मा टून्स’ नामक विज्ञान कार्टून पुस्तक का विमोचन किया गया। 

इस अवसर पर भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर के. विजयराघवन, डीएसटी सचिव डॉ एस. चंद्रशेखर, सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ शेखर सी. मांडे, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम. रविचंद्रन, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के सचिव प्रोफेसर बलराम भार्गव और राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी संचार परिषद के प्रमुख एवं सलाहकार डॉ परवीन अरोड़ा उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में विज्ञान प्रसार के निदेशक डॉ नकुल पाराशर द्वारा ‘विज्ञान सर्वत्र पूज्यते’ की रूपरेखा प्रस्तुत की गई। (इंडिया साइंस वायर)

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