गोविंद सदन दिल्ली के संस्थापक बाबा विरसा सिंह के आगमन दिवस पर गुरमत समागम का आयोजन

 करनाल (हरियाणा


5  मार्च गोबिंद सदन दिल्ली  के संस्थापक बाबा विरसा सिंह जी के आगमन दिवस को समर्पित गुरमत समागम का आयोजन गुरद्वारा यादगार रोड़ी साहिब निसिंग 

{करनाल } में आयोजित किया गय।  इस समागम की शुरुआत 3 मार्च २०२२ को श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी का अखंड पाठ से  आरम्भ हुआ और ५ मार्च २०२२ प्रातः ९ बजे समापन हुआ।  इस अवसर पर गुरबाणी कीर्तन का गायन अथवा प्रसिद्व संत महापुरषों और विद्वानों ने अपने अपने विचार बाबा विरसा सिंह जी के बारे में तथा गुरबाणी के बारे में आयी हुई संगतों के आगे रखे।  बाबा विरसा सिंह जी वर्ष 1962 से 1967  तक लगातार इस इलाके में आते रहे और यहाँ के लोगों को सचाई और धर्म की राह पर और ईश्वर एक है का पाठ पढ़ाया।  गुरु गोबिंद सिंह जी की बानी जाप साहिब जिसमें निराकार ईश्वर का वर्णन हैं ,मानस की जात सभ एके पेहचानबो, जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभ पायो का पाठ पढ़ाया।  इस शुभ अवसर पर गुरु नानक देव जी द्वारा चलाए गए लंगर व मिष्ठान  प्रशाद संगतों  के लिए बनवाया।

बाबा विरसा सिंह जी की आध्यात्मिकता का अनुसरण देश ही नहीं परन्तु विदेशों में भी  लोग करते हैं ।  बाबा जी कहा करते थे –

"यदि हम अपने लोगों को शांति नहीं सिखाते हैं तो हम युद्ध और संघर्ष के लिए जिम्मेदार हैं!"

यदि आप अपनी सीमाओं पर शांति चाहते हैं तो पहले अपने धर्मों के बीच शांति की बाधाओं को तोड़ें और अपने भीतर शांति जगाएं। आपसी प्यार और सम्मान का माहौल बनाएं"

" एक दूसरे के अवतारों व पैगंबरों के धार्मिक त्यौहार  सबको मिल जुल कर मनाने चाहिये ।”

एक बयान में गोबिंद सदन के परम पावन बाबा विरसा सिंह ने न्यूयॉर्क में मिलेनियम पीस समिट में एकत्रित धार्मिक नेताओं को चुनौती दी कि वे पहले आपस में संघर्ष को हल करने के लिए भीतर जाग्रत करें और पहचानें कि सभी परंपराओं का संदेश एक है, यह कहते हुए कि " यदि आज के धर्मगुरु संघर्षों को सुलझाने की कोशिश करते हैं तो वे केवल टहनियाँ तोड़ रहे हैं और समस्या की जड़ तक नहीं पहुँच रहे हैं।”

"जब तक वे मानते हैं कि उनके पैगंबर ही एकमात्र हैं और उनका धर्मग्रंथ ईश्वर की एकमात्र शिक्षा है, वे शांति कैसे ला सकते हैं?" 

बाबा जी कहते थे कि परमेश्वर एक है, सभी नबी- अवतार एक ही स्थान से उसका संदेश लेकर आए हैं।

इन मुद्दों को सुलझाओ और शांति आ जाएगी,  पहले अपनी इस भावना पर काबू पाओ कि 'मेरा नबी- अवतार तुम्हारे नबी- अवतार से बड़ा है।' फिर सीमा संघर्षों को समाप्त करो ।

नेता दुनिया की बीमारियों का स्रोत नहीं ढूंढ पा रहे हैं। रोग धर्म की वर्तमान स्थिति में ही निहित है।

धर्म का अर्थ है प्रेम और सेवा, 'अपने पड़ोसी से प्यार करो।' सीमावर्ती राज्य भी आपके पड़ोसी हैं।

 'किसी को भी उनके अधिकारों से वंचित न करें। किसी पर हमला मत करो। लेकिन ऐसा होने के लिए पहले आध्यात्मिक जागृति होनी चाहिए। लोगों को सिखाया जाना चाहिए कि ध्यान और प्रार्थना के माध्यम से अपने भीतर शांति कैसे प्राप्त करें। अब भी हर कोई चिंता और संघर्ष से भरा हुआ है। जब तक लोग खुद को नहीं बदलते, तब तक वे या उनके धर्मगुरु दुनिया की स्थिति को बदलने के लिए क्या कर सकते हैं? यह आंतरिक जागृति एक व्यावहारिक वास्तविकता बननी चाहिए.

जब कोई धर्मगुरु व्याख्यान देता है, तो सवाल यह नहीं होना चाहिए कि उन्होंने कौन से धार्मिक ग्रथ से पढ़ कर बोला है। प्रश्न यह होना चाहिए कि क्या वे स्वयं आध्यात्मिक रूप से प्रबुद्ध हैं या नहीं।

धर्म आध्यात्मिकता एक बहुत शक्तिशाली शक्ति है। यह लोगों के दिमाग को बदल देता है, उनके जीवन को बदल देता है और उनकी आंतरिक आदतों को बदल देता है। अध्यात्म की यही आंतरिक शक्ति ही लोगों को बदल सकती है।"

बाबाजी धार्मिक संघर्ष का एक सरल इलाज सुझाते हैं: " एक दूसरे के अवतारों व पैगंबरों के धार्मिक त्यौहार  सबको मिल जूल कर मनाएं।"

कई वर्षों से बाबाजी ने नई दिल्ली के गोबिंद सदन स्थित अपने केंद्र में गुरपुरब, ईद, क्रिसमस, रामनवमी, जन्माष्टमी, भगवान महावीर और महात्मा बुध  के मानने वालों के धार्मिक त्योहारों का आयोजन बड़े स्तर पर किया जाता है । नतीजतन, सभी परंपराओं के लोगों को एक-दूसरे के लिए प्यार और श्रद्धा और एक-दूसरे की परंपराओं की शिक्षा मिलती है  । इस प्रक्रिया ने सदियों पुरानी नफरत पर काबू पा लिया है।

"आम लोगों की कोई गलती नहीं है। अगर इस आंदोलन को गांवों में ले जाया गया कि जीसस उसी जगह से आए जहां से गुरु गोबिंद सिंह आए थे, कि जीसस उसी जगह से आए थे जहां से पैगंबर मुहम्मद आए थे, कि मूसा उसी जगह से आए थे जहां से गुरु नानक आए थे, फिर ये संघर्ष समाप्त हो जाएंगे।

धार्मिक स्थल सबका है। जहां सत्य है, वह सबके लिए है। जहां प्यार है, वह सबके लिए है। जहां प्रार्थना है, वह सबके लिए है। जहां पूजा होती है, जहां वेद शास्त्र, गीता-रामायण पढ़ाई जाती है, वह सबके लिए होता है।

पूरी दुनिया में धर्म नफरत से बना एक किला बन गया है। सिर्फ इसलिए कि पुजारी, या ग्रंथी मंदिरों, मस्जिदों, चर्चों या गुरुद्वारों में बैठे हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने भगवान को महसूस किया है। वे प्रबंधक हैं। कोई भी प्रबंधन में प्रवेश कर सकता है। क्या कोई पुजारी अपनी पढ़ाई से धार्मिक प्रबंधक बन गया था या वह भगवान द्वारा चुना गया था?

एक व्यक्ति दूसरे के नबी के जन्मदिन पर बधाई देने के लिए तैयार नहीं है। जब क्रिसमस मनाया जाएगा, तो दूसरा कहेगा, 'यह जीसस का जन्मदिन है। इसका सिखों से क्या लेना-देना है? जीसस ईसाइयों के हैं, सिखों के नहीं।’ इसके विपरीत, जीसस पूरे ब्रह्मांड के हैं। गुरु गोबिंद सिंह एक संप्रदाय के नहीं बल्कि पूरे ब्रह्मांड के हैं। 

धर्मगुरुओं को इस कर्तव्य का निर्वाह करें, वे अपने धार्मिक स्थलों पर जाएं और प्रत्येक नबी अवतारों  के पवित्र दिनों को मनाएं। उन्हें अपने पुरे समाज को बताना चाहिए और समझाना चाहिए, 'यह अवतार प्यार का संदेश लाया, इस अवतार ने इसे प्यार के बारे में सिखाया। जब प्रत्येक वर्ग   इस विषय के पीछे एकजुट हो जायेगा, तो समाज खुद एक साथ आ जाएगा।

जब कोई नदी- समुंदर का जल नियंतरण से बाहर हो जाता है तो आसपास के  क्षेत्रों को बहुत नुकसान करता  है। लेकिन जब किसी व्यक्ति का दिमाग नियंत्रित नहीं होता है, तो वह पूरे देश को तबाह कर सकता है। क्रोध और घृणा नियंत्रण से बाहर हैं। आपको अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना होगा। नेतृत्व को जिम्मेदारी से बोलना चाहिए। मीडिया को ऐसे संदेश देने चाहिए जो लोगों को शांत करें, आग पर अधिक तेल न डालें। चिंता से दुनिया के ९० प्रतिशत लोग  ग्रस्त है। यदि मन से यह रोग मिट जाए तो सभी शारीरिक रोग भी समाप्त हो जाएंगे।

सभी धर्म एक हैं। सभी नबियों और मसीहाओं ने बार-बार कहा है कि एक ईश्वर है, जिससे हमें प्रेम करना चाहिए। किसी भी पैगंबर ने यह नहीं कहा है कि दो सत्य या दो भगवान हैं। एक ईश्वर है, और ईश्वर कण कण में विराजमान है, जानवरों, महासागरों, पहाड़ों में देखना है। लेकिन हम परमेश्वर को सृष्टि में तभी देख पाएंगे जब परमेश्वर का प्रेम हमारे भीतर उभरेगा।

ईश्वर वह शक्ति है जो सब कुछ चलाती है। जब संतों या पैगम्बरों ने ज्ञान के माध्यम से इस शक्ति को देखा या सुना है, तो उन्होंने उस शक्ति के बारे में शब्दों में बात की जो भगवान के लिए दिव्य नाम बन गए। सभी एक ही का जिक्र कर रहे हैं।

किसी ने देखा कि सभी को प्रकाश देने वाली एक शक्ति है। उन्होंने कहा, "इक ओंकार" ( सब एक हैं)। दूसरे ने देखा कि शक्ति सभी जल-लहरों, नदियों, जल के महासागरों को नियंत्रित करती है। उन्होंने उस नियंत्रक को "नारायण" (वह जो पानी में मौजूद है) कहा।और किसी ने देखा कि एक रोशनी  जो हर चीज में जान दे रही है। जब उसने अपने भीतर झाँका तो उसे वहाँ वही प्रकाश मिला। उन्होंने कहा, "सोहंग" जिसका अर्थ है "आप जो कुछ भी हैं, मैं भी हूं।" एक अन्य व्यक्ति ने देखा कि परमेश्वर का प्रकाश हर जगह है: "तुम अन्धकार में और साथ ही प्रकाश में भी हो।" उन्होंने इस शक्ति को "गोबिंद" (अंधेरे को दूर करने वाला और प्रकाश लाने वाला) कहा। एक और व्यक्ति जिसने इस शक्ति को देखा, उसे यह इतना अद्भुत लगा कि उसके पास इसके लिए शब्द नहीं थे। वह बस इतना ही कह सकता था "वाह!" (अद्भुत!)।

वेदों में है कि निराकार परमेश्वर वर्णन से परे है। उन्होंने कहा, "नेति, नेति, नेति" (पार, परे, परे)।

 सभी एक ही शक्ति का वर्णन कर रहे हैं, चाहे संस्कृत, अरबी, पंजाबी, उर्दू, लैटिन या अंग्रेजी में। शब्दों में अंतर है, 

ईश्वर एक रोशनी है। यह उस व्यक्ति में आता है जो ध्यान(Meditation) करता है और  प्रेम से भर जाता है। केवल वही व्यक्ति रौशनी  का अनुभव कर सकता है जो पहले अपने भीतर झाँकें, फिर आपको हर जगह ईश्वर दिखाई देगा।

सभी अवतार एक  ही प्रकाश से आए हैं वे सभी एक ही मूल संदेश देते हैं। वे लोगों को  पहले आये हुए अवतारों के  संदेश याद दिलाने आते  हैं जिन्हें लोग भूल गए होते हैं। हमने अपने अलग-अलग धर्मों की दीवारों को एक किले का रूप दे दिया है, प्रत्येक अवतार पैगंबर में से एक को अपना होने का दावा करते  है। लेकिन ईश्वर का प्रकाश किसी भी मानव निर्मित ढांचे के भीतर सीमित नहीं किया जा सकता है। यह समस्त सृष्टि में व्याप्त है। हम इसे कैसे धारण कर सकते ह

कोई भी पैगम्बर -अवतार सिर्फ एक जाति, एक पंथ या एक राष्ट्र का नहीं है। यीशु ईसाई धर्म तक ही सीमित नहीं है; मूसा यहूदी नहीं है; पैगंबर मोहम्मद मुसलमान नहीं हैं; गुरु नानक सिख नहीं हैं। वे संस्थागत, साम्प्रदायिक धर्मों की स्थापना करने नहीं आए हैं। वे विभाजन मनुष्यों द्वारा बनाए गए हैं और उनकी अपनी नीतियों को दर्शाते हैं। इसके विपरीत, पैगंबर दुनिया में भगवान के संदेश के साथ आते हैं। वे लोगों को परमेश्वर की शिक्षाओं को याद दिलाने के लिए आते हैं जो उन्हें फिर से ताजा और नया बनाती हैं; वे प्रेम सिखाने आते हैं, मानवता की सेवा को प्रोत्साहित करने के लिए, लोगों को ईश्वर के ज्ञान से प्रबुद्ध करके अज्ञानता को दूर करने के लिए आते हैं। वे हमारी चेतना को बदलने आते हैं; वे हमें दिखाने के लिए आते हैं कि कैसे जीना है।

मनुष्य के पास अपने भीतर गहरे आध्यात्मिक ज्ञान होते हैं; दुनिया बनाने वाला उनकी आत्मा में बैठा है। लेकिन यह केवल तभी होता है जब निराकार परमात्मा  का भेजा हुआ अवतार पैगंबर हमारे बीच आता है और दिव्य ज्ञान से प्रकट हुई बानी  के बोल बोलता है तो समाज और लोगों  जाग्रति पैदा होती ह। भूले हुए समाज को धर्म और सचाई का मार्ग दिखाते हैं

 साम्प्रदायिक धर्म मनुष्यों द्वारा बनाए गए हैं, पैगम्बरों या अवतारों  ने नहीं। सच्चा आध्यात्मिक व्यक्ति इन सभी छोटे रास्तों से ऊपर है। ईश्वर आपके हाथ-पैरों से भी अधिक निकट है, आपके हृदय में विराजमान है, आपके भीतर अधिकाधिक प्रकाश लाता है। परमेश्वर को हम से और अधिक स्तुति की आवश्यकता नहीं है; पूरा ब्रह्मांड पहले से ही भगवान की स्तुति कर रहा है।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

*"आज़ादी के दीवानों के तराने* ’ समूह नृत्य प्रतियोगिता में थिरकन डांस अकादमी ने जीता सर्वोत्तम पुरस्कार

सेक्टर 122 हुआ राममय. दो दिनों से उत्सव का माहौल

ईश्वर के अनंत आनंद को तलाश रही है हमारी आत्मा