*जन आक्रोश और नौकरशाही के भ्रष्टचार पर हिन्दुत्व की गोलबंदी का चमत्कार*

 *राष्ट्र-चिंतन* 


 *हिन्दुत्व की को अब विपक्ष स्वीकार करें* 

*आचार्य श्री विष्णुगुप्त

योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ आक्रोश कुछ ज्यादा ही था। कोई एक नहीं बल्कि कई ऐसे पंसंग थे जिस पर आम जनता में नाराजगी थी, आम जनता ही नहीं बल्कि भाजपा के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में भी घोर नाराजगी थी और आक्रोश भी था। मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ पक्के ईमानदार और कर्मठ जरूर रहे हैं पर उनकी सरकार के विभिन्न अंगों में भ्रष्टचार चरम पर था, नौकरशाही न केवल पूरी तरह से भ्रष्ट रही थी बल्कि जनता के लिए नौकरशाही एक डकैत से कम नहीं थी, कोई ऐसा काम नहीं था जिस काम के लिए नौकरशाह पैसे के लिए अंडगे नहीं डालती थी। कहने का अर्थ यह है कि योगी की नौकरशाही मायावती और अखिलेश सरकार की तरह ही जनविरोधी और रिश्वतखोर थी। सबसे बड़ी बात यह है कि भाजपा के विधायकों की चपरासी तक नही सुनते थे। थाने में भाजपा के विधायकों का सरेआम इज्जत उतारी जाती थी, एक भाजपा विधायक की पिटाई थानेदार थाने में कर देता है। इसके अलावा किसानों के आंदोलन के प्रसंग पर भाजपा के खिलाफ बगावत और विद्रोह की स्थिति थी। खासकर पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसानें के गुस्से का भाजपा सरेआम शिकार हो रही थी। भाजपा की छबि किसान विरोधी की थी। विपक्ष के कुछ चुनावी हथकंडे भी ध्यान खींच रहे थे। जैसे आवारा पशुओं का हथकंडा। आवारा पशुओं का हथकंडा ऐसा चला जिससे भाजपा की नींद उड़ चुकी थी। आवारा पशुओं से जुड़े हुए विपक्ष के हथकंडे के खिलाफ खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मोर्चा संभालना पड़ा था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की थी आवारा पशुओं की समस्याओं का समाधान वे करेंगे। पांच दिनों तक नरेन्द्र मोदी को वाराणसी में रहना पड़ा था। क्योंकि नरेन्द्र मोदी को भी यूपी में चुनाव जीतने का विश्वास डगमगाने लगा था।

               इतनी नकारात्मक परिस्थितियों के बावजूद योगी आदित्यनाथ की जीत होती है तो उसके पीछे कारण क्या रहे हैं, मोदी-योगी और भाजपा के पास ऐसे कौन से ब्राम्हस्त्र थे जिसका सामना अखिलेश यादव नहीं कर सके? उत्तर प्रदेश की जनता ने फिर भी योगी आदित्यनाथ को ही क्यों चुना? मेरी दृष्टि में सबसे बड़ी पूंजी और विश्वसनीयता योगी आदित्यनाथ की ईमानदार और कंडक छबि थी। साथ ही साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिशमाई शख्सियत थी। भ्रष्टचार के शिकार आम आदमी भी यही मानता था कि योगी आदित्यनाथ और नरेन्द्र मोदी की ईमानदारी और कर्मठता पर प्रश्न खड़ा करना उचित नहीं है। भ्रष्टचार और बेईमानी लोगों के नश-नश में बस चुकी है। योगी आदित्यनाथ और नरेन्द्र मोदी भ्रष्टाचार को रातोरात समाप्त नहीं कर सकते हैं। सड़े हुए सिस्टम को इतना जल्दी ठीक भी नहीं किया जा सकता है, सिस्टम को ईमानदार बनाना आसान नहीं है। इसके अलावा यूपी की जनता ने अखिलेश यादव और मायावती के भ्रष्टचार और निरंकुश राज के साथ ही साथ उन दोनों की जिहादी मानसिकताओं को भी देखा था। इसलिए यूपी की जनता अखिलेश यादव और मायावती को शासन की बागडौर सौंपने की जगह योगी को ही नियमित शासन का अधिकार दे दिया।

                    बहुत सारी उपलब्धियां भी जनता को आकर्षित करने के लिए उपस्थित थी। कानून व्यवस्था की उपलब्धियां ऐसी थी जो जनप्रियता खड़ी करने का काम की है। अखिलेश यादव और मायावती के पूर्ववर्ती राज्य शासन के दौरान कानून व्यवस्था की स्थिति कैसी थी, यह भी उल्लेख्नीय है। आज भी अखिलेश यादव और मायावती की पूर्ववर्ती सरकारों की निरंकुशता व हिंसा की याद आने पर लोगों की रोंगटे खड़े हो जाते हैं, गुंडाराज-जंगलराज ही हुआ करता था, हत्या, लूट और अत्याचार तथा संपत्ति कब्जा आम बात होती थी। निश्चित तौर पर योगी राज में उत्तर प्रदेश में गुंडाराज समाप्त हुआ, बाहुबलियों पर नकेल डाला गया, बड़े-बड़े अपराधियों को जेलों में डाला गया या फिर उनका एनकाउंटर हुआ। यूपी में पुलिस एनकाउंटर में मारे गये अपराधियों को लेकर राजनीतिक हंगामा भी हुआ, अखिलेश यादव , कांग्रेस और बसपा जैसी पार्टियां फर्जी एनकांउटर का आरोप भी लगायी। एनकांउटर का डर कैसा था, यह भी उल्लेखनीय है। बड़े अपराधी गर्दन में आत्मसमर्पण के बोर्ड लगाकर पुलिस थाने में जाने लगे। यह सब देख-जान कर जनता भयमुक्त शासन का अनुभव करने लगी।

               युवाओं को खासकर आकर्षित किया गया। खासकर छात्राओं को और छात्राओं के अभिभावकों को आकर्षित किया गया। सरेआम छेड़खानी से छात्राएं न केवल परेशान हुआ करती थी बल्कि स्कूल और कालेज जाने से भी डरती थी। अभिभावकों को अपने बच्चियों को सकुशल घर वापसी की चिंता सताती रहती थी। इसके अलावा लड़के भी गुंडे से सुरक्षित नहीं थे। पढ़ने वाले और शांत प्रवृति के छात्रों को गुंडों से डर होता था। स्कूल और कालेजों का गुंडाकरण हो चुका था। योगी आदित्यनाथ ने एंटी रोमियो स्कॉट का गठन कर स्कूलों और कालेजों के सड़क छाप गुंडों की गर्दन नापी। छोटी-छोटी शिकायत पर भी बड़ी कार्यवाही होने लगी। योगी राज में छात्र-छात्राएं और उनके अभिभावकों में भयमुक्त वातावरण का अनुभव हुआ। इस चुनाव में युवाओं का जो रूझान योगी के प्रति दिखा, उसके पीछे एक कारण यह भी है।

            मोदी सरकार की योजनाएं भी जीत में भूमिकाएं निभायी हैं। मोदी सरकार की कोई एक नहीं बल्कि कई योजनाएं हैं जो जनप्रियता को सुनिश्चित कर रही हैं और नौकरशाही के भ्रष्टचार के बावजूद भी जमीन पर उतर रही है। जैसे आवास योजना। गरीबों और कमजोर वर्ग के लोगों को सरकारी सहायता पर घर बन रहे हैं। जो गरीब झुग्गी-झौपडि़यों में रहने के लिए बाध्य होते थे वे गरीब अब पक्के मकानों में रह रहे हैं। इसके अलावा मोदी सरकार की बिजली योजना से उनके पक्के मकान भी जगमगा रहे हैं। गरीबों को सस्ती बिजली मिल रही है। कोरोना काल में गरीबों को निशुल्क आनाज, गैस, नमक, तेल और नकदी मिल रहे हैं। आम गरीबों को निशुल्क अनाज और अन्य समान मिलने से बहुत बड़ी सहायता हुई है। आम गरीब भाजपा से दूर रहते थे। आम गरीबों की पहली पंसद मायावती और अखिलेश ही होेते थे। पर आम गरीबों कों मोदी सरकार की योजनाओं ने उन्हें भाजपा को वोट करने के लिए प्रेरित किया।

                        अपने नकरात्मक सोच और चुनावी रणनीति के कारण अखिलेश यादव और कांग्रेस आदि पराजित हुए हैं। अखिलेश यादव आवारा पशुओं का हथकंडा अपनाया जो आत्मघाती साबित हुआ। अखिलेश यादव की जाति और मुसलमानों ने अपने पशुओं को खेती चरने के लिए आवारा छोड़ दिया। स्थानीय स्तर पर इसकी सच्चाई उजागर हो गयी। संदेश यह गया कि अखिलेश यादव बुचड़खाने खोलवाने के लिए यह हथकंडा अपनाया है। मुसलमानों को अवारा पशुओं को भोजन बनाने में परेशानी हो रही है। खासकर गौ धन के प्रति धार्मिक आस्था कैसी है, यह भी स्पष्ट है। अखिलेश यादव अपनी मुसलमान समर्थक छबि को तोड़ नहीं सके। अखिलेश यादव अपनी मुसलमान समर्थन छबि को और भी मजबूत की। चुनावों के दौरान जिन्ना का समर्थन करना कहां की सफल नीति थी? जिन्ना समर्थन के आधार पर चुनाव जीतने की भूल आत्मघाती थी। राममंदिर का प्रश्न भी था। लोगों की आशंका थी कि योगी अगर नहीं आये तो फिर राममंदिर के निर्माण में रूकावटें आयेंगी। अखिलेश का वह बयान आज भी लोगों को याद ह,ै जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं राममंदिर को कभी बनने नहीं दूंगा। मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोलियां चलवा कर अयोध्या की भूमि को खून से लथपथ कर दिया था। इसकी यादें भी योगी की वापसी करायी है। पंजाब में कांग्रेस का मुख्यमंत्री चन्नी यूपी और बिहार के लोगों को सरेआम अपशब्द बोलते रहे और प्रियंका गांधी तालिया बजाती रही। पंजाब में कांग्रेस का मुस्लिम उम्मीदवार और नेता हिन्दुओं के सफाये की कस्में सरेआम खाता है। फिर भी बैहाया की तरह उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी वोट मांगती रही और सरकार बनाने का दावा करती रही।

               विपक्ष अभी भी हिन्दुत्व की अवहेलना और अपमान कर चुनाव जीतने की गलतफहमी से मुक्त नहीं हो पा रहा हैं। हिन्दुत्व की गोलबंदी 2014 से बार-बार सामने आ रही है। यह भी गलतफहमी दूर हो गयी कि मुसलमान अब सरकार बनाने और बिगाड़ने की शक्ति रखते हैं। यूपी और अन्य जगहों पर इतनी विफलताओं और आक्रोशों के बावजूद भाजपा की जीत मिली है तो इसके पीछे हिन्दुत्व की गोलबंदी और विपक्ष की हिन्दू विरोधी नीति ही जिम्मेदार है।





--

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

*"आज़ादी के दीवानों के तराने* ’ समूह नृत्य प्रतियोगिता में थिरकन डांस अकादमी ने जीता सर्वोत्तम पुरस्कार

ईश्वर के अनंत आनंद को तलाश रही है हमारी आत्मा

सेक्टर 122 हुआ राममय. दो दिनों से उत्सव का माहौल