वैश्विक 'वैक्सीन राष्ट्रवाद' से कोरोना के नए रूप पैदा होने का खतरा; महामारी से लड़ाई कमजोर होने की आशंका


नई दिल्ली : कोरोना टीकों के उत्पादन पर एकाधिकार और टीकों की जमाखोरी के विकसित देशों के प्रयासों को 'वैक्सीन राष्ट्रवाद' का नाम दिया गया है। लेकिन यह प्रवृत्ति महामारी से लड़ाई को कमजोर कर सकती है और यह वायरस के नए वेरिएंट को जन्म दे सकती है जो वैक्सीन के प्रति प्रतिरोधी हो सकते हैं। यह चेतावनी प्रमुख चिकित्सा विशेषज्ञ ने दी है।

यह चेतावनी ओमिक्रॉन के व्यापक प्रसार और फ्रांस में कोरोना वायरस के नए वेरिएंट आइएचयू का पता लगाने के मद्देनजर महत्व रखती है।

नई दिल्ली स्थित वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज और सफदरजंग अस्पताल के प्रो. (डॉ.) यतीश अग्रवाल के अनुसार, यह "संकीर्ण और आत्म-केंद्रित व्यवहार केवल महामारी विज्ञान की दृष्टि से खुद के लिए नुकसानदायक हो सकता है और चिकित्सकीय रूप से इसका परिणाम उल्टा हो सकता है, बल्कि असुरक्षित आबादी में और उसके बीच संक्रमण का प्रसार लगातार जारी रहने के कारण यह महामारी और लम्बी चल सकती है।"

अगर दुनिया की अधिकांश आबादी को टीका नहीं लगता है, तो कोविड-19 महामारी और इसके कारण होने वाली मौतों का कहर जारी रहेगा। प्रो. अग्रवाल ने एक लेख में इस बात का जिक्र किया है जो मनोरमा इयरबुक -2022 के अंग्रेजी संस्करण में प्रकाशित हुआ है।

दुनियाभर में टीकों के समान वितरण और लोगों के तेजी से टीकाकरण पर बल देते हुए, उन्होंने कहा कि वैक्सीन के वितरण का राजनीतिकरण विश्व स्तर पर लोकतांत्रिक प्रथाओं के लिए प्रतिकूल साबित हो रहा है।

डॉ. अग्रवाल का तर्क है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की 'सभी के लिए स्वास्थ्य' की घोषणा की पृष्ठभूमि में यह प्रवृत्ति नैतिक विफलता का प्रतीक है। बाजार के दृष्टिकोण से प्रेरित वैक्सीन राष्ट्रवाद ऐसी स्थिति में बदल सकता है जो काफी खतरनाक हो सकती है।

डॉ. अग्रवाल लिखते हैं, "ऐसी स्थिति में, वायरस बढ़ने, वृद्धि करने और नए वायरस उत्परिवर्तन पैदा करने के लिए बाध्य होगा। वायरस के ये नए रूप कोरोना वैक्सीन के प्रति प्रतिरोधी हो सकते हैं, और मानव जाति के लिए नया खतरा पैदा कर सकते हैं।

डॉ. अग्रवाल के अनुसार, वैक्सीन उत्पादन के छोटे वैश्विक स्तर को देखते हुए, 78 लाख की जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करना कोई मामूली काम नहीं है।  यह देखते हुए चुनौती और बढ़ जाती है कि प्राथमिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए अधिकांश टीकों के कम से कम दो डोज की आवश्यकता होती है, और संभवतः, प्रतिरक्षा को बनाए रखने के लिए बाद में एक या अधिक बूस्टर शॉट्स की आवश्यकता होगी।"

डॉ. अग्रवाल नई दिल्ली के गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के डीन भी हैं। उनका कहना है कि अमीर देशों ने, अपनी आर्थिक ताकत और काफी बेहतर वैज्ञानिक और दवा निर्माण क्षमताओं के बल पर, कोरोना टीकों के बारे में असमान स्पर्धा को बढ़ावा दिया है।

वैक्सीन विकास के पहले चरण में, विकसित देशों ने अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए वैक्सीन जमा करने की तीव्र प्रवृत्ति का प्रदर्शन किया। "इससे एक नए घटनाक्रम - 'वैक्सीन राष्ट्रवाद' का जन्म हुआ है, जिसमें इन देशों ने वैश्विक कोविड-19 वैक्सीन आपूर्ति के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है, और तीसरी दुनिया के नागरिकों के लिए वैक्सीन का बहुत कम प्रावधान या कोई प्रावधान नहीं छोड़ा है।"

इसके बारे में विस्तार से बताते हुए, डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, ब्रिटेन, अमरीका और यूरोपीय संघ जैसे कुछ अमीर देशों ने वैक्सीन निर्माण और अग्रिम खरीद समझौतों में निवेश के माध्यम से प्रमुख वैक्सीन निर्माताओं की योजनाबद्ध 2021 आपूर्ति का लगभग आधा हिस्सा हासिल कर लिया।

डॉ. अग्रवाल ने बताया, "कुल मिलाकर, इन देशों में वैश्विक आबादी का सिर्फ 14 प्रतिशत हिस्सा है। फिर भी, अग्रिम बाजार प्रतिबद्धता के आधार पर, उन्होंने सामूहिक रूप से लगभग पाँच अरब वैक्सीन आरक्षित कर ली।ʺ
अमरीका ने कम से कम छह द्विपक्षीय सौदे किए हैं, ये सौदे कुल मिलाकर एक अरब से अधिक खुराक के लिए हैं जो पूरी अमरीकी आबादी को टीका लगाने के लिए पर्याप्त से अधिक हैं। यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और कनाडा में से प्रत्येक ने सात द्विपक्षीय समझौते किए हैं, जिसमें उनकी आबादी को क्रमशः दो, चार और छह गुना अधिक कवर करने के लिए पर्याप्त खुराक हासिल करने की क्षमता है।

डॉ. अग्रवाल का कहना है कि विकसित देशों में लोकतांत्रिक सरकारों की चुनावी राजनीति की मजबूरियां समझ में आती हैं क्योंकि उन्हें अन्य सभी लोगों के स्वास्थ्य से ऊपर अपने लोगों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देकर अपनी जनता की स्वीकृति हासिल करने की आवश्यकता होती है। हालांकि, इन देशों को टीकों के भंडार को साझा करने, पेटेंट सुरक्षा को खत्म करने

...

 

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

*"आज़ादी के दीवानों के तराने* ’ समूह नृत्य प्रतियोगिता में थिरकन डांस अकादमी ने जीता सर्वोत्तम पुरस्कार

ईश्वर के अनंत आनंद को तलाश रही है हमारी आत्मा

इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल न लाया जाय और निजीकरण का विफल प्रयोग वापस लिया जाय : ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन