जल्द आ सकती है हृदयाघात और स्ट्रोक के लिए नई सुरक्षित दवा

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ई दिल्ली: (इंडिया साइंस वायर): हृदयाघात और स्ट्रोक अक्सर जानलेवा साबित होते हैं, जो पूरी दुनिया में चिकित्सा जगत के लिए एक बड़ी चुनौती है। इन दोनों स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए एक नई एवं सुरक्षित दवा अब जल्द ही बाजार में आ सकती है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई) द्वारा हृदयाघात और स्ट्रोक के लिए एक नई सुरक्षित दवा (एस-007-867) विकसित करने के लिए मार्क लेबोरेटरीज लिमिटेड को प्रौद्योगिकी हस्तांतरित की गई है। 

उत्तर प्रदेश में फार्मा क्लस्टर को प्रोत्साहित करने के लिए सीएसआईआर-सीडीआरआई ने प्रदेश की ही मार्क लेबोरेटरीज प्राइवेट लिमिटेड के साथ करार किया है। मार्क लेबोरेटरीज, एक फार्मा कंपनी है, जिसने सीडीआरआई के साथ मिलकर रक्त के थक्के जमने की प्रक्रिया के नियंत्रक (मॉड्युलेटर) के रूप में सिंथेटिक यौगिक ‘एस007-867’ के विकास के लिए करार किया था। अब इस दवा के निर्माण की तकनीक व्यावसायिक उत्पादन के लिए हस्तांतरित कर दी गई है। 

सीएसआईआर-सीडीआरआई द्वारा इस संबंध में जारी वक्तव्य में बताया गया है कि यौगिक ‘एस007-867’ को कोरोनरी और सेरेब्रल धमनी रोगों के इलाज में विशेष रूप से कोलेजन प्रेरित प्लेटलेट एकत्रीकरण के अवरोधक के रूप में बेहद कारगर पाया गया है। संस्थान को हाल ही में दवा के लिए प्रथम चरण के नैदानिक ​​​​परीक्षण शुरू करने की अनुमति प्राप्त हुई है।

रक्त संचार प्रणाली के किसी हिस्से में रक्त के थक्के जमने से धमनी घनास्त्रता (आर्टेरीयल थ्रोम्बिसिस) जैसी जटिल स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जो एथेरोस्क्लेरोसिस (धमनियों की अवरुद्धता) के कारण बने पुराने घावों पर विकसित होती है। एथेरोस्क्लेरोसिस, धमनियों से संबंधित एक ऐसी बीमारी है, जिससे उनकी भीतरी दीवारों पर वसायुक्त पदार्थ की परत जम जाती है। इसकी वजह से दिल का दौरा और स्ट्रोक जैसी गंभीर बीमारियां हो जाती हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्लेटलेट-कोलेजन इंटरैक्शन का निषेध आर्टेरीयल थ्रोम्बोसिस के इलाज हेतु एक आशाजनक चिकित्सीय रणनीति हो सकती है। 

नया औषधीय यौगिक ‘एस007-867’, कोलेजन मध्यस्थ प्लेटलेट को सक्रिय होने से रोकता है और COX1 सक्रियण के माध्यम से सघन कणिकाओं और थ्रोम्बोक्सेन A2 से एटीपी के स्राव को कम करता है। इस प्रकार यह धमनियों में रक्त प्रवाह के वेग को प्रभावी रूप से बनाये रखता है और धमनियों में अवरोध पैदा होने या रक्त के थक्के जमने की वजह से रक्तवाहिकाओं में अवरोध पैदा करने में देरी करता है और हेमोस्टेसिस से समझौता किए बिना थ्रोम्बोजेनेसिस (रक्त के थक्के बनने की प्रक्रिया) को रोकता है।

कोरोनरी और सेरेब्रल धमनी रोगों के लिए वर्तमान में मौजूद अन्य उपचारों की तुलना में इस दवा में रक्तस्राव का जोखिम बेहद कम है। जंतुओं पर किए परीक्षण में, इस नये औषधीय यौगिक में देखभाल के प्रचलित मानकों की तुलना में न्यूनतम रक्तस्राव के साथ बेहतर एंटीथ्रॉम्बोटिक गुण पाये गए हैं। 

सीएसआईआर-सीडीआरआई के निदेशक प्रोफेसर तपस कुमार कुंडू ने कहा, “यह देश के प्रमुख औषधि अनुसंधान संस्थान के रूप में सीएसआईआर-सीडीआरआई के लिए महत्वपूर्ण क्षण है, क्योंकि इस नवीन औषधीय यौगिक के संश्लेषण की प्रौद्योगिकी को सफलतापूर्वक मार्क लेबोरेटरीज लिमिटेड को हस्तांतरित की गई है। इससे मार्क लैबोरेटरीज, सीजीएमपी शर्तों के तहत इस नवीन औषधीय यौगिक का बड़े पैमाने पर उत्पादन कर सकेगा, जिससे मरीजों पर इसकी सुरक्षा और प्रभावकारिता की जाँच करने हेतु प्रथम चरण के नैदानिक ​​​​परीक्षण शुरू करने में मदद मिलेगी।”

प्रोफेसर कुमार कुंडू ने आशा व्यक्त की है कि यह यौगिक शीघ्र ही बाजार में पहुँच जाएगा। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि यह उद्योग-अकादमिक साझेदारी उत्तर प्रदेश में फार्मा क्लस्टर के विकास के लिए फायदेमंद होगी और देश में मेड इन इंडिया और सस्ती स्वदेशी दवा के निर्माण के नये रास्ते खोलने में मददगार होगी।

मार्क लेबोरेटरीज के अध्यक्ष प्रेम किशोर ने कहा, "सीएसआईआर-सीडीआरआई के साथ मार्क लेबोरेटरीज की साझेदारी दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद होगी और वे इस नवीन औषधीय यौगिक को आगे विकसित करने के लिए सभी नियामक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे, ताकि यह जल्दी से जल्दी बाजार तक पहुँच सके।” (इंडिया साइंस वायर)

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