सीधी बात नो बकवास


हृदेश धारवार

मध्यप्रदेश में यह क्या हो रहा है ? यह वो सवाल है जो आज हर एक प्रदेशवासी के जहन में उठ रहा है। बात चाहे राजनीतिक हो सामाजिक यकीन मानिए मध्यप्रदेश वर्तमान में एक अलग दौर से गुजर रहा है। इतना तो साफ है कि जो भी हो रहा है उसे ठीक नहीं कहा जा सकता। खासकर लोकतंत्र के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। मध्यप्रदेश में बीजेपी के 17 साल के शासन में मीडिया शासन के हाथों की कठपुतली बनकर रह गया है। प्रदेश के बड़े - बड़े न्यूज़ चैनल और अख़बार समझौते पर आ गए हैं। हालात यह है कि पत्रकार सरकार की नीतियों पर सवाल नहीं कर सकता ! यदि सवाल करता भी है तो मीडिया सरकार के निशाने पर आ जाता है। एक प्रतिष्ठित अख़बार ने कोरोना काल में जो पत्रकारिता की , उस अख़बार को भी निष्पक्षता की कीमत चुकानी पड़ी। अब सरकार में बैठे लोग पत्रकारों की नौकरी भी लगवा रहे हैं। ताकि वे सिस्टम को अपने तरीके से ऑपरेट कर सकें। दरअसल सरकार भी नहीं चाहती कि प्रदेश में पत्रकारिता ज़िंदा रहे। कई पत्रकार ऐसे हैं जिन्होंने 2 जून की रोटी के खातिर अपने मान सम्मान को गिरवी रखकर नेता और मंत्री की चाकरी को स्वीकार कर लिया है। एक नहीं कई नामदार पत्रकार हैं जो सिर्फ सरकार के टूल बने हुए हैं। सरकार ने पत्रकारों को पिंजरे का तोता बना दिया है। यहाँ सच लिखना और बोलना पूरी तरह से बैन है। यदि आप यहाँ निष्पक्षता के साथ अपनी बात रखते हैं तो आपको सरकार के नुमाइंदे तरह - तरह के लॉलीपॉप देकर अपने पाले में लाने की कोशिश करते हैं। कभी लालच तो कभी भय दिखाकर पत्रकारों को साधने की कोशिश की जाती है। आलम यह है कि न्यूज़ चैनल पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार सिर्फ वही ख़बर देखना चाहते हैं जो सरकार के पक्ष में है। यदि मध्यप्रदेश में सामूहिक हिंसा, बलात्कार, आदिवासियों पर अत्याचार, महंगाई, चोरी, हत्या, बेरोजगारी जैसे मुद्दे पर यदि बात करते हैं तो सरकार की साख दांव पर लग जाती है। सरकार के प्रति लोगों में गुस्सा समा जाता है। यदि बेरोजगार युवा रोजगार की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते हैं तो उन पर लाठियां बरसाई जाती हैं । प्रदेश की चयनित महिला शिक्षक कर्मी मामा शिवराज सिंह चौहान को राखी बांधने जाती हैं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। बारिश में उनके ऊपर लाठी भांजी जाती है। बिजली संकट गहराता जा रहा है,पावर जनरेशन कंपनी के पास कोयला नहीं है लेकिन ऊर्जा मंत्री कहते हैं सब ठीक हैं। बीजेपी के विधायक राकेश गिरी गोस्वामी, नारायण त्रिपाठी और अजय विश्नोई जैसे कद्दावर नेता खुलकर सरकार की खिलाफत कर चुके हैं। लेकिन जिम्मेदारों के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है।

बीजेपी में चल रही नूराकुश्ती

मध्यप्रदेश सरकार में ही नहीं बल्कि बीजेपी संगठन में भी इन दिनों नूराकुश्ती का खेल चल रहा है। बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के मुताबिक प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के संगठनात्मक निर्णयों में अपरिपक्वता दिखाई दे रही है। वे अपनी लाइन लंबी करने के लिये सबकी लाइन छोटी करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। यही वजह है वीडी शर्मा अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करने के लिए अपनी नई टीम तैयार करने में जुटे हैं। वीडी शर्मा भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तर्ज पर वटवृक्ष  की भांति अपनी शाखाएं मजबूत कर रहे हैं। वीडी शर्मा की यह नीतियां भविष्य में कितनी सफल होती हैं ? इस पर भी सभी की निगाहें टिकी हुई है। वीडी शर्मा के बारे में कहा जाता है कि वे अतिमहत्वकांक्षी  हैं उनका एक मात्र लक्ष्य श्यामलाहिल्स तक पहुंचना है। यही वजह है कि वे संगठन में अपने हिसाब से वरिष्ठों की सलाह को दरकिनार करते हुए संगठन में अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहते हैं। इनके अलावा गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा, राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के बीच भी नूराकुश्ती का खेल चल रहा है।

5 स्टार प्रवक्ता करवा रहे पार्टी की किरकिरी

भारतीय जनता पार्टी ने संगठन की छवि को चमकाने एवं सरकार की उपलब्धियां  बताने के लिए 5 स्टार प्रवक्ताओं को जिम्मेदारी सौंपी है। लेकिन भाजपा के प्रवक्ताओं का कद इतना ऊंचा है कि वो आम मीडिया की पहुंच से बहुत दूर है। प्रवक्ताओं में कुछ पूर्व मंत्री, विधायक व सांसद भी शामिल हैं। यदि ऐसे प्रवक्ताओं से फोन पर संपर्क किया जाता है उनके निजी सहायक फोन उठाते हैं और एक जवाब मिलता है कि साहब अभी मीटिंग में जैसे ही फ्री होते हैं बात करवाता हूँ, लेकिन साहब कभी फ्री नहीं होते और न ही उनका कॉल आता है। ऐसे में न्यूज़ चैनल की डिबेट भी एक पक्षीय हो रही है। जिससे सरकार की साख पर भी बट्टा लग रहा है।

शुरू हुई हेडमास्टर की फ़जीहत

बीजेपी में प्रवक्ताओं के हेडमास्टर की भी इन दिनों तबियत से फ़जीहत हो रही है। हेडमास्टर से हमारा आशय मीडिया प्रभारी और सह मीडिया प्रभारी से हैं जो कि इतने व्यस्त हैं कि उनसे भी फोन पर सम्पर्क करना आसान नहीं होता। यदि उनसे पदाधिकारी द्वारा पूछा जाता है तो वे पत्रकार को भी दलीय व्यवस्था में बांटने से परहेज नहीं करते।

क्या शिव के "हित" में विष्णु
 
मध्यप्रदेश में होने वाले नगरीय निकाय चुनाव और उपचुनाव को लेकर भी बीजेपी संगठन ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है पिछेले विधानसभा उपचुनाव में   बीजेपी को अपने मुंह की खानी पड़ी थी। उसके पीछे यह माना जा रहा है कि बीजेपी के प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत की वजह से भी पार्टी को बहुत नुकसान हुआ है।सुहास भगत को संगठन में काम करते हुए 4 साल से अधिक हो गए लेकिन इसके बाद भी बीजेपी के मूल राजनीतिक चरित्र को समझ नहीं पाए हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले सुहास भगत को सफल बनाने के लिए अतुल राय को प्रदेश का सह संगठन महामंत्री बनाकर लाया गया था,लेकिन कुछ अंदरूनी विवाद के चलते उन्हें  पद से हटा दिया गया था। अब करीब 1 साल पहले हितानंद शर्मा को सह संगठन महामंत्री बनाकर लाया गया है। हितानंद शर्मा को लेकर यह माना जा रहा है कि उन्हें सुहास भगत की जगह फुलफ्लेश लाया जा सकता है। लेकिन उपचुनाव और नगरीय निकाय चुनाव तक उन्हें रोका गया है। चर्चा यह भी है कि संघ ने सुहास भगत को पूर्वांचल में भेजने का फरमान सुना दिया था, लेकिन उन्हें भी राजनीतिक मोह ने जकड़ लिया है। इसलिए सुहास भगत भी सक्रिय राजनीति में आना चाहते हैं। इसके अलावा उन्होंने  स्व. अनिल माधव दवे के स्थान पर नर्मदा समग्र अभियान से जुड़कर नदी के घर को अपना ठिकाना बना लिया है। आगे वे नदी के घर से ही राजनीतिक सीढ़िया चढ़ना चाहते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि यदि हितानंद को सुहास भगत की जगह बैठाया जाता है तो क्या हितानंद शिवराज के लिए हितकारी होंगे या विष्णु के लिए। यह भी एक बड़ा सवाल है। क्योंकि हितानंद को भी शिवराज की पसंद माना जाता है,लेकिन ब्राह्मणवादी सोच की वजह से हितानंद शर्मा विष्णुदत्त शर्मा के लिए हितकारी हो सकते हैं।

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