समिट समिट कर भरहिं तलावा

डॉ दिनेश प्रसाद मिश्र
भयंकर गर्मी से जूझ रही मानवता को उस से निजात दिलाने हेतु वर्षा ऋतु भारत भूमि की दहलीज पर पहुंच चुकी है और साथ लाई है जल की अगाध राशि, किंतु हम हमारा समाज और हमारी सरकार सरकारी व्यवस्था वर्षा ऋतु के अप्रत्याशित प्रतिदान को सहेजने समेटने के लिए तैयार नहीं है। पानी की एक-एक बूंद को तरसने वाला समाज वर्षा जल को सहेजने के लिए तैयार नहीं है, जबकि पानी की गंभीर समस्या को देखते हुए उसकी एक एक बूंद सहेजने की आवश्यकता है। माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा शुद्ध पर्यावरण और पानी को मूल अधिकारों के अंतर्गत रखते हुए प्रत्येक व्यक्ति को उन्हें उपलब्ध कराने हेतु टिप्पणी की है किंतु व्यवहार में कहीं भी यह परिलक्षित नहीं हो रहा कोई भी समाज या सरकार इस दिशा में चिंतित और प्रयत्नशील है वर्षा का जल पूर्व की भांति प्राप्त हो रहा है और वह बह कर नदी नालों के माध्यम से समुद्र में पहुंच जा रहा है, जब कि आवश्यकता थी कि उसकी एक एक बूंद को संरक्षित कर आवश्यकतानुसार हर व्यक्ति को सहज रूप से उपलब्ध कराया जाता। साथ में ही जल की पर्याप्त उपलब्धता से ऐसी स्थिति बनती की पर्याप्त जल मानव ही नहीं प्रकृति के कण-कण को उसकी आवश्यकता अनुसार सहज रूप से उपलब्ध होता किंतु वर्षा जल को भली-भांति न सहेजने के कारण ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है। ‌ वर्षा जल भूगर्भ में संरक्षित न किए जाने के कारण भूगर्भ का जलस्तर निरंतर गिरता जा रहा देश के 256 जिलों के 1592 विकास खंडों से भूगर्भ जल लगातार रसातल की ओर जा रहा है । एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार दुनिया के सर्वाधिक 30 प्रदूषित शहरों की सूची में 21 भारतीय शहर शामिल हैं शीर्ष 10 की सूची में छह भारतीय शहर हैं इस सूची में उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद को सर्वाधिक प्रदूषित शहर माना गया है वर्ष 2019 में पीएम 2.5 की सांद्रता 110.2 थी जो अमेरिकी पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी की तरफ से तय मानक से 9 गुना ज्यादा थी वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2019 में भारत में 16.7लाख से भी ज्यादा लोग असमय काल के गाल में समा गए। यह देश भर में हुई कुल मौतों का 17.8 प्रतिशत था।इसका मूल कारण भूगर्भ के जल को संरक्षित करने और उसके उन्नयन हेतु किसी भी प्रकार का कोई प्रयास न कर उसका अंधाधुंध दोहन किया जाना है, जिससे भूगर्भ के जल स्तर में जहां एक और निरंतर गिरावट होती जा रही है वहीं दूसरी ओर जल की कमी से उसमें जीवन के लिए आवश्यक खनिजों के अभाव के साथ-साथ जीवन तथा स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थ अप्रत्याशित रूप से बढ़कर दूषित पानी के साथ शरीर में पहुंचकर नाना प्रकार की व्याधियों को जन्म देते हुए जीवन के समक्ष प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देते हैं। जल वायु मिट्टी व भूगर्भ जल के प्रदूषित होने का दुष्प्रभाव जहां लोगों की सेहत पर पड़ रहा है वहीं अर्थव्यवस्था की सेहत भी खराब हो रही है नाम शक पत्रिका में प्रकाशित एक एक रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण की वजह से हुई असमय मौतों और बीमारियों के कारण वर्ष 2019 में भारत को 2.6 लाख करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ यह सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 1.4 फ़ीसदी रहा। भारत में पर्यावरण को होने वाले सालाना नुकसान की कीमत 3.75 लाख करोड़ रुपए बैठती है। जल प्रदूषण से स्वास्थ्य लागत करीब 610 अरब अरब रुपए सालाना है शुद्ध जल साफ सफाई और स्वच्छता के अभाव में हर साल 400000 लोग मारे जाते हैं जल जनित बीमारियों के चलते विश्व में 5 साल से कम आयु के करीब 1500000 बच्चों की मौत होती है और 200000000 काम के दिनों का हर साल नुकसान होता है । जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों की सूची में भारत तीसरा सबसे खराब होने वाला देश है।। संसद में दी गई सूचना के अनुसार दिल्ली के कुल 11 जिलों में से 7 जिलों के भूगर्भ जल में अत्यधिक मात्रा में फ्लोराइड पाया गया है, 8 जिलों में नाइट्रेट की मात्रा अधिक है तो 2 जिलों में आरसैनिक और शीशा की मात्रा बढ़ी हुई पाई गई है ।देश के अन्य हिस्सों की बात करें तो 386 जिलों के भूगर्भ जल में अत्यधिक नाइट्रेट पाया गया है, जबकि 335 जिलों में फ्लोराइड की मात्रा अधिक थी, 301 जिलों में आयरन, 153 जिलों में आरसैनिक, 93 जिलों में शीशा ,30 जिलों में क्रोमियम तथा 24 जिलों में कैडिमम अत्यधिक मात्रा में पाया गया है। ‌देश के लगभग 70% घरों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं है।लोग प्रदूषित पानी पीने के लिए बाध्य हैं,जिसके चलते लगभग 4 करोड़ लोग प्रतिवर्ष प्रदूषित पानी पीने से बीमार होते हैं तथा लगभग 6 करोड लोग फ्लोराइड युक्त पानी पीने के लिए विवश हैं। उन्हें पीने के लिए शुद्ध जल उपलब्ध नहीं है। देश में प्रतिवर्ष लगभग 4000 अरब घन मीटर पानी वर्षा के जल के रूप में प्राप्त होता है किंतु उसका लगभग 8% पानी ही हम संरक्षित कर पाते हैं, शेष पानी नदियों ,नालों के माध्यम से बहकर समुद्र में चला जाता है। हमारी सांस्कृतिक परंपरा में वर्षा के जल को संरक्षित करने पर विशेष ध्यान दिया गया था, जिसके चलते स्थान स्थान पर पोखर ,तालाब, बावड़ी, कुआं आदि निर्मित कराए जाते थे , जिनमें वर्षा का जल एकत्र होता था तथा वह वर्ष भर जीव-जंतुओं सहित मनुष्यों के लिए भी उपलब्ध होता था, किंतु वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर इन्हें संरक्षण न दिए जाने के कारण अब तक लगभग 4500 नदियां तथा 20000 तालाब झील आदि सूख गई हैं तथा वह भू माफिया के अवैध कब्जे का शिकार होकर अपना अस्तित्व गवा बैठे हैं। देश की बड़ी-बड़ी नदियों को जल की आपूर्ति करने वाली उनकी सहायक नदियां वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर अपना अस्तित्व गवा बैठी हैं,जो कुछ थोड़े बहुत जल स्रोत आज उपलब्ध हैं,उनमें से अनेक औद्योगिक क्रांति की भेंट चढ़ चुके हैं ।फलस्वरूप उनके पानी में औद्योगिक फैक्ट्रियों से निकलने वाले गंदे पानी कचड़े के मिल जाने से उन का जल इतना प्रदूषित हो गया है कि उसको पीना तो बहुत दूर स्नान करने पर भी अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाने का खतरा विद्यमान है। देश की सबसे पावन नदी गंगा कुंभ के अवसर पर भले ही स्नान योग्य जल से युक्त रही हो ,किंतु आज वह फैक्ट्रियों के कचड़े एवं उनके छोड़े गए प्रदूषित पानी के प्रभाव से गंदे पानी की धारा बन गई है , जिस में स्नान करने से पूर्व श्रद्धालु से श्रद्धालु व्यक्ति को भी अनेक बार सोचना पड़ जाता है। भारत की कृषि पूर्णतया वर्षा जल पर निर्भर है। वर्षा पर्याप्त होने पर सिंचाई के अन्य साधन सुलभ हो जाते हैं किंतु वर्षा न होने पर सभी साधन जवाब दे देते हैं और कृषि सूखे का शिकार हो जाती है। चीनी उत्पादक महाराष्ट्र एवं उत्तर प्रदेश के किसान निरंतर गन्ने की खेती पर बल दे रहे हैं और सरकार भी गन्ना उत्पादन के लिए उन्हें प्रोत्साहित कर रही है ।इसी प्रकार धान की खेती के लिए पंजाब छत्तीसगढ़ उत्तर प्रदेश इत्यादि अनेक राज्य धान की फसल का क्षेत्रफल निरंतर बढ़ाते जा रहे हैं किंतु उसके लिए पानी प्राप्त न होने के कारण वह पानी भूगर्भ से निकाल कर खेतों को सींचा जा रहा है जिससे भूगर्भ में स्थित जल का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है, जिस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा और पानी की समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है।, स्पष्ट है कि जल प्रदूषण के अनेक स्रोत हैं जो सामूहिक रूप से जल को प्रदूषित करते हैं। इनमें प्रमुख हैं शहरीकरण के परिणाम घरेलू सीवेज, अनियंत्रित तथा हरित क्रांति के परिणामस्वरूप पानी पर अवलंबित खेती एवं औद्योगिक अपशिष्ट तथा कृषि कार्यों में अत्यधिक प्रयोग में लाए गए कीटनाशक ,जल में घुल मिलकर भूगर्भ के जल को अत्यधिक मात्रा में प्रदूषित कर रहे है ,जिससे निजात पाने के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान यह घोषणा की थी कि पुनः सत्ता में आने पर खेती को पानी तथा हर घर को सन 2024 तक नल के माध्यम से पीने का पानी उपलब्ध कराया जायेगा, जिस को दृष्टि में रखते हुए हर खेत को पानी के साथ हर घर को भी नल के माध्यम से पेयजल उपलब्ध कराने तथा सूख रही नदियों को पुनर्जीवित करने, नदियों में विद्यमान प्रदूषण को समाप्त करने तथा स्वच्छ जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने ,के उद्देश्य से जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया गया है, जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जन सहयोग के साथ सरकारी व्यवस्था के अंतर्गत जल संरक्षण योजना को मूर्त रूप देने का कार्य विचाराधीन है ।संभव है वह निकट भविष्य में मूर्त रूप ले। ‌ स्पष्ट है विद्यमान जल को प्रदूषण मुक्त कर पीने योग्य बनाये रखने हेतु भूगर्भ के जल स्तर का उन्नयन उसका संभरण तथा संरक्षण अति आवश्यक है और यह तभी संभव है जब वर्षा जल की एक एक बूंद एकत्रित होकर भूगर्भ में समाहित हो जाए । वर्षा की एक भी बूंद का व्यर्थ बहकर समुद्र में जा मिलना, जल संरक्षण की दिशा में किए जा रहे कार्यों के समक्ष एक चुनौती है जिसका समाधान प्राप्त किए बिना ना तो भूगर्भ के जल को ऊपर उठाया जा सकता है और ना ही प्रदूषित हो रहे जल को शुद्ध कर माननीय उच्चतम न्यायालय की भावना के अनुरूप जन जन तक शुद्ध पर्यावरण एवं जल उपलब्ध कराया जाए बाना पाना संभव नहीं होगा और आगे आने वाले दिनों में प्रदूषित जल भी कभी महामारी का कारण बन कर मानव जीवन के समक्ष प्रश्न चिन्ह बनकर उपस्थित होगा। अतः आवश्यकता है कि आज समय रहते पानी की एक-एक बूंद को संरक्षित कर भूगर्भ जल में पर्याप्त रूप से ये वृद्धि कर उसे प्रदूषण मुक्त बनाकर प्रकृति के उपहार के रूप में प्रस्तुत किया जाए।

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