गहरे समुद्र में शोध के लिए “डीप ओशन मिशन” को कैबिनेट की हरी झंडी


नई दिल्ली,(इंडिया साइंस वायर): पृथ्वी का 70 प्रतिशत भाग जल से घिरा है जिसमें विभिन्न प्रकार के समुद्री जीव-जंतु पाए जाते है। गहरे समुद्र के लगभग 95.8% भाग मनुष्य के लिए आज भी एक रहस्य हैं। भारतीय समुद्री सीमा में, गहरे समुद्र की टोह लेने के लिए केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने ‘डीप ओशन मिशन’ को मंजूरी दे दी है। इस अभियान का मुख्य लक्ष्य समुद्री संसाधनों को चिह्नित कर ब्लू इकोनॉमी को गति प्रदान करना है। 

इस मिशन के छह प्रमुख उद्देश्य हैं। इनमें गहरे समुद्र में खनन और मानव युक्त पनडुब्बी के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास, महासागर जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाओं का विकास, गहरे समुद्र में जैव विविधता की खोज और संरक्षण के लिए तकनीकी नवाचार, गहरे समुद्र में सर्वेक्षण और अन्वेषण, समुद्र से ऊर्जा और ताजा पानी और समुद्री जीव विज्ञान के लिए उन्नत समुद्री स्टेशन शामिल है। 

समुद्र में 6 हजार मीटर नीचे कई प्रकार के खनिज पाए जाते हैं। इन खनिजों के बारे में अध्ययन नहीं हुआ है। इस मिशन के तहत इन खनिजों के बारे में अध्ययन एवं सर्वेक्षण का काम किया जायेगा और इसके अलावा जलवायु परिवर्तन एवं समुद्र के जलस्तर के बढ़ने सहित गहरे समुद्र में होने वाले परिवर्तनों के बारे में भी अध्ययन किया जायेगा।

वहीं, सूक्ष्म जीवों सहित गहरे समुद्र की वनस्पतियों और जीवों की जैव-पूर्वेक्षण और गहरे समुद्र में जैव-संसाधनों के सतत उपयोग पर अध्ययन इस मिशन के प्रमुख क्षेत्र हैं। इसके साथ ही, हिंद महासागर के मध्य-महासागरीय भागों के साथ बहु-धातु हाइड्रोथर्मल सल्फाइड जैसे खनिजों के संभावित स्थलों का पता लगाना और उनकी पहचान करना भी इस मिशन का एक लक्ष्य है।

अनुमानित 4077 करोड़ रुपये की लागत से पाँच वर्ष की अवधि और दो चरणों में पूरा किए जाने वाले “डीप ओशन मिशन” के तहत अपतटीय महासागर थर्मल ऊर्जा रूपांतरण (ओटीईसी) विलवणीकरण संयंत्र के लिए अध्ययन और विस्तृत इंजीनियरिंग डिजाइन इस अभियान की अवधारणा का हिस्सा हैं। साथ ही इसका उद्देश्य महासागरीय जीव विज्ञान और इंजीनियरिंग में मानव क्षमता और उद्यम का विकास करना भी है।

गहरे समुद्र में खनन के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों को देश के अग्रणी संस्थानों और निजी उद्योगों के सहयोग से स्वदेश में ही निर्मित करने का प्रयास किया जाएगा। यह अभियान समुद्री जीव विज्ञान में क्षमता विकास की दिशा में भी निर्देशित है, जो भारतीय उद्योगों में रोजगार के अवसर भी प्रदान करेगा। इसके अलावा, विशेष उपकरणों, जहाजों के डिजाइन, विकास और निर्माण और आवश्यक बुनियादी ढांचे की स्थापना से एमएसएमई और स्टार्ट-अप के विकास को गति मिलने की उम्मीद भी है।

इस मिशन को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा। यह अभियान भारत सरकार की नील अर्थव्यवस्था पहल का समर्थन करने के लिए एक मिशन आधारित परियोजना होगी। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओइएस) इस बहु-संस्थागत महत्वाकांक्षी मिशन को लागू करने वाला नोडल मंत्रालय होगा। (इंडिया साइंस वायर

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ग्रैंड फिनाले में वरिष्ठ वर्ग में पुरषोत्तम बने सर्वोताम गायक और कनिष्ठ वर्ग में कुमारी हीरत सिसोदिया ने सर्वोत्तम गायिका की बाज़ी मारी

इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल न लाया जाय और निजीकरण का विफल प्रयोग वापस लिया जाय : ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन

मिनी मेवाड़ चैरिटेबल फाउंडेशन द्वारा धूमधाम से मनाई गयी वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की जयंती