रोगजनक सूक्ष्मजीव-रोधी प्रदूषकों की निगरानी के लिए नया पेपर आधारित सेंसर


नई दिल्ली
 (इंडिया साइंस वायर): दवा निर्माण उद्योगों, अस्पतालों और क्लीनिकों से निकले अनुपचारित अपशिष्ट, और अप्रयुक्त या एक्सपायर्ड दवाओं का अनुचित निपटान पर्यावरण में मौजूद रोगाणुओं को एंटीबायोटिक (जैव-प्रतिरोधी) दवाओं के संपर्क में ला सकता है, और इस तरह रोगजनक सूक्ष्मजीवों में दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध के विकास को गति प्रदान कर सकता है। जैव-प्रतिरोधी दवाओं के प्रति रोगजनक सूक्ष्मजीवों में बढ़ता प्रतिरोध दुनियाभर में स्वास्थ्य संकट को बढ़ावा देने से जुड़ी एक प्रमुख चुनौती है, क्योंकि इसके कारण दवाएं रोगजनकों के खिलाफ बेअसर होने लगती हैं। इस प्रतिरोध को एंटी-माइक्रोबियल रिजिस्टन्स (एएमआर) कहा जाता है।

जलस्रोत एएमआर के प्रसार का प्रमुख जरिया माने जाते हैं। रोगजनक सूक्ष्मजीव-रोधी दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध की निगरानी इस चुनौती से निपटने में महत्वपूर्ण हो सकती है। जलस्रोतों में एएमआर की पहचान और उनकी निगरानी के लिए अत्याधुनिक सेंसर उपयोगी हो सकते हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास और यूनाइटेड किंगडम के शोधर्थियों के एक संयुक्त अध्ययन में पेपर आधारित एक ऐसा सेंसर विकसित किया गया है, जो रोगजनक सूक्ष्मजीव-रोधी प्रदूषकों (एंटीमाइक्रोबियल पॉल्यूटेंट्स) की पहचान करने में सक्षम है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह सेंसर जल इकाइयों में रोगाणु-रोधी प्रतिरोध (एएमआर) को उत्प्रेरित करता है, और अनूठी प्रविधि के अनुरूप कार्य करता है, जिससे इसका व्यापक इस्तेमाल आसान है।

इस अध्ययन से जुड़े आईआईटी मद्रास के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर एस. पुष्पवणम ने कहा है कि “पेपर आधारित यह सेंसर एक किफायती विकल्प है, क्योंकि इसमें एक बत्ती के माध्यम से द्रव का प्रवाह होता है और समूची प्रक्रिया केशिका बल (capillary forces) द्वारा संचालित होती है। इसमें पंप के माध्यम से द्रवों के प्रवाह की आवश्यकता नहीं रह जाती। हमने वाणिज्यिक लेजर प्रिंटर के माध्यम से पेपर आधारित उपकरण को आकार दिया है। यह सेंसर पर्यावरणीय निगरानी, खाद्य सुरक्षा विश्लेषण और स्वास्थ्य संबंधी निगरानी में उपयोगी हो सकता है।”

अध्ययन में शामिल आईआईटी मद्रास के एक अन्य शोधकर्ता डॉ. टी. रंगनाथन ने कहा है कि “इन उपकरणों के माध्यम से हमने सिप्रोफ्लोक्सेसिन जैसे एंटीबायोटिक, ट्राइक्लोसेन जैसे बायोसाइड्स और क्रोमियम, कॉपर एवं लेड जैसी भारी धातुओं का पता लगाया है। इस उपकरण को जलस्रोतों में एंटी-माइक्रोबियल रिजिस्टन्स (एएमआर) की निगरानी के लिए उपयोग किया जा सकता है।” डॉ. रंगनाथन ने बताया कि बिना किसी बदलाव के हमने सामान्य लेजर प्रिंटर का इस्तेमाल किया है, और उससे हाई रेजोल्यूशन के साथ सटीक नतीजे मिले हैं। इसमें हाइड्रफोबिक अवरोधक कार्बनिक विलयन और उच्च तापमान के साथ सुसंगत रहे हैं। यह व्यापक स्तर पर उपयोग के दृष्टिकोण से अनुकूल होने के साथ-साथ किफायती भी है।

शोध पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित होने के बाद इस अध्ययन को काफी सराहा गया है, और इसे रसायन क्षेत्र के शीर्ष 100 अनुसंधानों में से एक बताया गया है। भारत-ब्रिटेन जल गुणवत्ता अनुसंधान कार्यक्रम के अंतर्गत भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अनुदान पर आधारित यह अध्ययन युनाइटेड किंगडम की नेचुरल एन्वायरमेंट रिसर्च काउंसिल एवं इंजीनियरिंग ऐंड फिजिकल साइंसेज रिसर्च काउंसिल के द्विपक्षीय सहयोग के आधार पर किया गया है। 

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