करिश्माई ‘कैथा’

 अंकिता

नई दिल्ली


(इंडिया साइंस वायर) कहा जाता है कि “जैसा खाए अन्न, वैसा होए मन” । यदि हम पौष्टिक खाना खाएंगें तो हमारा शरीर और मन दोनों प्रसन्न रहेंगे, क्योंकि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। भारतीय जीवनशैली में भोजन का बहुत महत्व है। भोजन न केवल हमें शारीरिक पोषण देता है बल्कि यह हमारे मानसिक और आत्मिक संपोषण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारत में ऐसे कई परंपरागत भोजन है जिनका उपयोग आजकल कम हो गया है। इन्हीं में से एक है कैथा। कैथा को नाम से बहुत लोग जानते होंगे पर इसका इस्तेमाल भोजन में कम ही घरों में होता है। कैथा का पेड़ सामान्यतः सभी स्थानों पर देखने को मिलता है, परंतु खास तौर पर यह शुष्क स्थानों पर उगने वाला फल है । कैथा लगभग सभी तरह की मिट्टी में लगाया जाता है और विशेषकर सूखे क्षेत्रों में इसका विकास अपेक्षाकृत जल्दी और आसानी से होता है।

इसके पौधे के विकास में देखभाल की जरुरत कम ही पड़ती है और फूल आने के 10 से 12 महीने में फल तैयार हो जाते हैं । पौष्टिकता के साथ-साथ कैथा औषधीय दृष्टि से भी बहुत फायदेमंद होता है। कैथे का कच्चा और पका फल दोनों ही खाने के लिए उपयोगी होता है। कच्चा फल खट्टा, हल्का कसैला और पका फल खट्टा-मीठा होता है। कच्चा फल देखने में ग्रे-सफेद मिश्रित हरे रंग का और पका फल भूरे रंग का होता है। इसका छिलका वास्तव में एक खोल की तरह होता है। 

यह लकड़ी की तरह मोटा और सख्त होता है जैसे बेल के फल का खोल होता है। कैथा का वैज्ञानिक नाम लिमोनिया एसिडिसिमा है और अंग्रेजी में इसे वुड ऐप्पल और मंकी फ्रूट के नाम से भी जाना जाता है। कैथा के पेड़ पर्णपाती होते हैं और जंगलों में बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। कैथा के पेड़ उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में काफी मात्रा में पाए जाते हैं। कैथा के पेड़ की लकड़ी हल्की भूरी, कठोर और टिकाऊ होती है, इसलिए इसका इस्तेमाल इमारती लकड़ी के तौर पर भी किया जाता है।

कैथा विटामिन बी-12 का अच्छा स्त्रोत है। मध्य भारत में इसके द्वारा तैयार खाद्य पदार्थों को अच्छा और पौष्टिक माना जाता है इसके द्वारा तरह-तरह के खाद्य पदार्थ तैयार किये जाते हैं जैसे – जैम, जेली, अमावट, शर्बत, चॉकलेट और चटनी ग्रामीण स्तर पर व्यवसाय का एक अच्छा साधन साबित हो सकता है।

कैथे के कच्चे फल में पके फल की अपेक्षा विटामिन सी और अन्य फ्रूट एसिड की अधिक मात्रा होती है वहीं बीज में प्रोटीन ज्यादा मात्रा में होता है। बीज में सभी आवश्यक लवण पाये जाते हैं और गूदे में कार्बोहाइड्रैट और फाइबर होता है। कैथे का बीज सहित सेवन किया जा सकता है इसके बीज को निकालने की आवश्यकता नहीं होती। 

कैथे का कच्चा फल विटामिन सी का अच्छा स्रोत है। कैथे में आयरन, कैल्शियम, फोस्फोरस और ज़िंक भी पाये जाते हैं। इसमें विटामिन बी1और बी2 भी उपस्थित होता है। कैथे के सूखे बीजयुक्त गूदे में इन लवण और विटामिनों की काफी अच्छी मात्रा होती है। पोषक तत्वों के मुख्य कार्य के आधार पर कार्बोहाइड्रैट ऊर्जा प्रदान करता है। प्रोटीन शरीर निर्माण, वृद्धि और विकास के लिए जरूरी है। आयरन खून की कमी को दूर रखने के लिए जरूरी है। 

कैथा के पेड़ की टहनियों और तने से निकाले गए फेरोनिया गम मधुमेह को रोकने में मदद करते हैं। यह रक्‍त प्रवाह में चीनी के प्रवाह, स्राव और संतुलन के प्रबंधन में विशेष योगदान करता है। इसका नियमित रूप से सेवन करने से यह रक्‍त में ग्लूकोज़ के स्तर को कम करने में सहायक होता है। फेरोनिया गम शरीर में इंसुलिन के उत्पादन में वृद्धि करता है। जिससे रक्त शर्करा के स्तर में भारी स्पाइक्स को रोका जा सकता है। 

कैथा के फलों के अलावा इसके पेड़ की जड़ों का भी उपयोग कर सकते हैं। आप इसकी जड़ से बने काढ़े का सेवन कर ह्रदय के स्वास्थ्य से जुडी समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं। कैथा की पत्तियों से बने काढ़े का सेवन करने से यह कोलेस्ट्रॉल के स्‍तर को कम करने में मदद करता है। इस काढ़े का प्रभाव कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाओं के बराबर होता है। यह काढ़ा टिशू लिपिड प्रोफाइल और ट्राइग्लिसराइड्स के स्तर को भी प्रब‍ंधित करने मे मदद करता है। आप अपने दिल को स्वस्थ बनाने के लिए कैथा की जड़ों और पत्तियों से बने अर्क का प्रयोग भी कर सकते हैं।

पेट के अल्सर या बवासीर वाले लोगों के लिए भी कैथा की सलाह दी जाती है क्योंकि इसकी पत्तियों में टैनिन होता है जो सूजन को कम करने के लिए जाना जाता है। कैथा में पेट को साफ करने वाले गुण भी होते हैं जो कब्ज से राहत दिलाने में मदद करते हैं। कैथा में एंटीफंगल और विरोधी परजीवी गतिविधियां भी होती हैं जो पाचन प्रक्रिया को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। कैथा स्कर्वी रोग से बचाव और इलाज में सहायक है।  यह लिवर को डैमेज होने से बचाने वाला, लिवर और हार्ट टॉनिक है।

वैज्ञानिक कैथे का इस्तेमाल बीमारियों से बचाव के लिए , स्वास्थ्य वर्धक के तौर पर और पोषण -समृद्ध आहार बनाने के लिए करने के पक्ष में हैं। कैथे में फाइटोकेमिकल भी पाये जाते हैं। इसमें एलकेलोइड और पॉलीफेनोल वर्ग के तत्व काफी अच्छी मात्रा में होते हैं जो इसे कई रोगों से बचाव, रोकथाम और इलाज में सक्षम बनाते हैं। 

म्यांमार सीमा क्षेत्र में महिलाओं द्वारा कैथा का उपयोग कॉस्मेटिक के रूप में किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र में डेंगू और मलेरिया का प्रभाव अधिक होता है। इंडोनेशिया में कैथा के गूदे में शहद मिलाकर सुबह के नाश्ते में खाया जाता है। साथ ही थाईलैंड में इसके पत्तों को सलाद में मिलाकर खाया जाता है।

कुछ अध्य्यनों में पाया गया है कि गर्भवती महिलाओं की त्वचा में कैथा की लुग्दी का लेप लगाने से उन्हें मलेरिया के प्रभाव से बचाया जा सकता है। इस फल से बने लेप का उपयोग त्वचा की जलन से छुटकारा पाने के लिए भी उपयोग किया जा सकता है। दक्षिण भारत में कैथा के गूदे को ताल मिसरी और नारियल के दूध के साथ मिलाकर खाया जाता है। कैथा के गूदे से जेली और चटनी भी बनाई जाती है। 

कैथे को बंगाली में कठबेल, गुजरती में कोथू, कन्नड़ में बेले, मलयालम और तमिल में विलम पजम, मराठी में कवथ, उड़िया में कैथा, तेलगु में वेलेगा पंडु, एलागाकाय, हिंदी में बिलिं या कटबेल, संस्कृत में कपित्थ, कुचफल, गंधफल, चिरपाकी, बैशाख नक्षत्री, और दधिफल कहते हैं।

वैसे तो किसी और फल की तरह कैथे के सेवन से कोई नुक्सान नहीं है पर अगर आप किसी तरह की विशेष दवाइओं का सेवन कर रहें है तो डॉक्टर की सलाह से इसका सेवन करें। पके हुए कैथा के फल पाचन के लिए भारी होते हैं। इसलिए अधिक मात्रा में सेवन करने पर यह अपचन, पेट दर्द और गैस जैसी समस्याहएं पैदा कर सकता है। किसी भी अन्य फल की तरह कैथे के अधिक मात्रा में  सेवन करने से बचें। 

कैथे की खेती लुप्त होने की कगार पर है, हमें इसे संरक्षित करने के ज्यादा से ज्यादा प्रयास करने चाहिए और किसान भाइयों को इसके लाभों से परिचित करवाना चाहिए और परंपरागत भोजन को बढ़ावा देना चाहिए ताकि आने वाले समय में हम पोषक तत्वों की जरूरतों को पूरा करने  के लिए हम केवल दवाइयों पर ही न निर्भर रहे। (इंडिया साइंस वायर)

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