स्तन कैंसर की पहचान के लिए नई तकनीक

नई दिल्ली(इंडिया साइंस वायर): कैंसर असाध्य अवश्य है, पर समय रहते इस रोग का पता चल जाए तो प्रभावी उपचार हो सकता है। वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है, जो स्तन कैंसर का समय रहते पता लगाने में सहायक हो सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तकनीक से स्तन कैंसर से जूझ रही महिलाओं की जिंदगी बचाने में मदद मिलेगी। 

इस अध्ययन के दौरान डीप लर्निंग (डीएल) नेटवर्क के आधार पर एक वर्गीकरण पद्धति विकसित की गई है। इस पद्धति में स्तन कैंसर के लिए जिम्मेदार हार्मोन्स का आकलन करके रोग की पहचान करने में मदद मिल सकती है। इस पद्धति को पारंपरिक मैनुअल माध्यम के मुकाबले विश्वसनीय विकल्प माना जा रहा है। इसमें उस एस्ट्रोजन हार्मोन की मात्रा का उचित आकलन संभव हो सकेगा, जो स्तन कैंसर का एक प्रमुख कारक माना जाता है। 

भारतीय महिलाओं में होने वाले कैंसर के 14 प्रतिशत मामले स्तन कैंसर के होते हैं। ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में इस बीमारी का समान प्रभाव एवं वितरण देखने को मिलता है। कैंसर का उपचार मिलने पर भारतीय महिलाओं के इस बीमारी से उबरने की दर 60 प्रतिशत है, जिसमें से 80 प्रतिशत महिलाएं 60 वर्ष से कम उम्र की होती हैं। ऐसे चिंताजनक आंकड़ों को घटाया जा सकता है, लेकिन यह तभी संभव है, जब कैंसर की पहचान और उसका उपचार शुरुआती चरणों में ही आरंभ कर दिया जाए।

डीप लर्निंग से जुड़ी आईएचसी-नेट नाम की इस पद्धति को गुवाहाटी के इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (आईएएसएसटी) को शोधकर्ताओं ने विकसित किया है। आईएएसएसटी भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग का ही एक स्वायत्त संस्थान है। इस डीप लर्निंग आधारित तकनीक में एस्ट्रोजन या प्रोजेस्ट्रोन के स्तर का आकलन किया जाता है। इसमें इम्यूनोहिस्टोकेमेस्ट्री नमूनों का उपयोग किया जाता है, जिससे स्तन कैंसर के स्तर का पता लगाने में मदद मिलती है।

बायोलॉजिकल शोध एवं चिकित्सीय निदान में टिशू एंटीजेन को चिह्नित करने एवं उनके निरूपण के लिए इम्यूनोहिस्टोकेमेस्ट्री को एक अत्यंत उपयोगी उपकरण एवं माध्यम माना जाता है। इम्यूनोहिस्टोकेमेस्ट्री विभिन्न जैव प्रक्रियाओं या पैथोलॉजी के विशिष्ट गुणों को अभिव्यक्त करने में सक्षम है। घाव का भरना, इम्यून रिस्पॉन्स, टिशू रिजेक्शन एवं टिशू बायोमैटेरियल इंटरेक्शन जैसे पहलुओं को इम्यूनोहिस्टोकेमेस्ट्री के माध्यम से आसानी से साधा जा सकता है।

शोधकर्ताओं ने एक ऐसा एल्गोरिदम विकसित किया है, जो यह पता लगाने में सक्षम है कि कैंसर कोशिकाओं और उनके तल पर हार्मोन के बीच आखिर क्या कड़ी जुड़ी हुई है। यह कैंसर की पहचान के लिए प्रचलित पारंपरिक बायोप्सी विश्लेषण से अलग है। डॉ. लिपि महंता और उनकी टीम ने यह अध्ययन गुवाहाटी के बी. बरुआ कैंसर इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर किया है। इस शोध को ‘अप्लाइड सॉफ्ट कंप्यूटिंग’ शोध पत्रिका में प्रकाशन के लिए स्वीकृत किया गया है। 

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल न लाया जाय और निजीकरण का विफल प्रयोग वापस लिया जाय : ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन

ईश्वर के अनंत आनंद को तलाश रही है हमारी आत्मा

ग्रैंड फिनाले में वरिष्ठ वर्ग में पुरषोत्तम बने सर्वोताम गायक और कनिष्ठ वर्ग में कुमारी हीरत सिसोदिया ने सर्वोत्तम गायिका की बाज़ी मारी