संविधान के तीनों अंगों की भूमिका से लेकर मर्यादा तक सबकुछ संविधान में ही वर्णित है: प्रधान मंत्री

केवड़िया : भारत के विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों का 80वां सम्मेलन, जिसका उदघाटन 25 नवंबर 2020 को केवड़िया, गुजरात में हुआ था, आज सम्पन्न हो गया।


आज समापन समारोह में प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज का दिन पूज्य बापू की प्रेरणा को, सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिबद्धता को प्रणाम करने का है। ऐसे अनेक प्रतिनिधियों ने भारत के नवनिर्माण का मार्ग तय किया था । देश उन प्रयासों को याद रखे, इसी उद्देश्य से 5 साल पहले 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया था । उन्होंने कहा कि आज की तारीख, देश पर सबसे बड़े आतंकी हमले के साथ जुड़ी हुई है। 2008 में पाकिस्तान से आए आतंकियों ने मुंबई पर धाबा बोल दिया था। इस हमले में अनेक भारतीयों की मृत्यु हुई थी। कई और देशों के लोग भी मारे गए थे।


उन्होंने मुंबई हमले में मारे गए सभी लोगों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने आगे कहा कि संविधान के तीनों अंगों की भूमिका से लेकर मर्यादा तक सबकुछ संविधान में ही वर्णित है। कोविड-19 की विषम परिस्थिति में भारत की 130 करोड़ से ज्यादा जनता ने जिस परिपक्वता का परिचय दिया है, उसकी एक बड़ी वजह, सभी भारतीयों का संविधान के तीनों अंगों पर पूर्ण विश्वास है। इस विश्वास को बढ़ाने के लिए निरंतर काम भी हुआ है। हमें हमारे संविधान से जो ताकत मिली है, वो ऐसे हर मुश्किल कार्यों को आसान बनाती है। उन्होंने बताया कि इस दौरान संसद के दोनों सदनों में तय समय से ज्यादा काम हुआ है। सांसदों ने अपने वेतन में भी कटौती करके अपनी प्रतिबद्धता जताई है। अनेक राज्यों के विधायकों ने भी अपने वेतन का कुछ अंश देकर कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपना सहयोग दिया है। उन्होंने कहा कि हर नागरिक का आत्मसम्मान और आत्मविश्वास बढ़े, ये संविधान की भी अपेक्षा है और हमारा भी ये निरंतर प्रयास है। ये तभी संभव है जब हम सभी अपने कर्तव्यों को अपने अधिकारों का स्रोत मानेंगे, अपने कर्तव्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे। हमारे कानूनों की भाषा इतनी आसान होनी चाहिए कि सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी उसको समझ सके। हम भारत के लोगों ने ये संविधान खुद को दिया है। इसलिए इसके तहत लिए गए हर फैसले, हर कानून से सामान्य नागरिक सीधा कनेक्ट महसूस करे, ये सुनिश्चित करना होगा। गुजरात के राज्यपाल, श्री आचार्य देवव्रत ने इस अवसर पर कहा कि लोकतान्त्रिक मूल्यों के साथ ही लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली द्वारा प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते हुए भारत ने विश्व के विकसित देशों में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। निस्संदेह ही इसमें संसद और राज्य की विधानसभाओं के साथ साथ न्यायपालिका और कार्यपालिका की प्रभावी कार्यवाही का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। श्री देवव्रत ने आगे कहा कि सदन को सफलतापूर्वक चलाने की जिम्मेदारी सदन के स्पीकर और जनप्रतिनिधि दोनों की है। स्पीकर को सदन के नियमों और उपनियमों के साथ साथ परंपराओं की भी गहरी जानकारी होनी चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि सभी जनप्रतिनिधियों, विशेषतः पिछड़े समुदायों के जनप्रतिनिधियों को सदन में विशेष रूप से बोलने के अवसर मिलने चाहिए जिससे वह उनकी समस्याओं को सही तरह सदन के समक्ष रख सकें। उन्होंने सदन में जनप्रतिनिधियों के शालीनतापूर्ण आचरण पर बल दिया। लोक सभा अध्यक्ष, श्री ओम बिरला ने अपने समापन भाषण में कहा कि संपूर्ण केवड़िया क्षेत्र माननीय प्रधानमंत्री जी के नये भारत के निर्माण के विजन का प्रतिबिंब है। उन्होंने एक पिछड़े आदिवासी क्षेत्र में पर्यावरण और विकास का अदभुत संतुलन रखते हुए एक विश्वस्तरीय एवं आत्मनिर्भर क्षेत्रीय विकास का मॉडल प्रस्तुत किया है। सभी पीठासीन अधिकारी उनकी इस दूरदर्शिता से प्रेरित हुए हैं। उन्होंने हर्ष व्यक्त किया कि आज भारत के संविधान की 71वीं सालगिरह के पुनीत अवसर पर देश की एकता एवं अखंडता के सूत्रधार सरदार वल्लभभाई पटेल की विशाल प्रतिमा की छत्रछाया में संविधान की शपथ लेकर पीठसीन अधिकारीयों को दिव्य अनुभूति हुई है। श्री बिरला ने कहा कि विषम परिस्थितियों के बावजूद दो दिनों के इस महासम्मेलन में 20 विधानमंडलों के पीठासीन अधिकारी उपस्थित रहे। सम्मेलन में सभी का यह मत था कि संविधान की मूल भावना के अनुसार लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को अपनी-अपनी सीमाओं के अंदर सहयोग, सामंजस्य और समन्वय की भावना से कार्य करना चाहिए। सभा ने लोकतंत्र उत्सव के आयोजन, राष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ विधायिका पुरस्कार की स्थापना और नागरिकों में मौलिक कर्तव्यों के प्रति जागरूकता के प्रसार का भी निर्णय लिया। श्री बिरला ने कहा कि हमारे राष्ट्रनायकों ने दलगत और व्यक्तिगत प्रतिबद्धताओं से ऊपर उठकर एवं नागरिकों को केन्द्र में रखकर संविधान की रचना की थी। आज हमारा भी यही कर्तव्य है कि हम राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में कार्य करें। हम भले ही अलग-अलग दलों से चुनकर आते हैं, परंतु हमारा उद्देश्य देशहित और जनहित ही होता है। उन्होंने यह भी कहा कि आज के परिप्रेक्ष्य में यह आवश्यक है कि हम अपने अधिकारों से ऊपर उठकर राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का समर्पित भाव से पालन करें। ।


अपने उद्बोधन में राज्य सभा के उपसभापति श्री हरिवंश ने विधायिकाओं द्वारा कानूनों के फास्टट्रैक आधार पर पारित होने पर जोर देते हुए कहा कि इसमें देरी होने से व्यापक सामाजिक-आर्थिक हानि होने की संभावना होती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि कानूनों को समय की आवश्यकताओं के आधार पर बदलते रहना चाहिए। उन्होंने विचार व्यक्त किया कि डिजिटल ऐज में फिजिकल ऐज के कानूनों की समीक्षा आवश्यक है। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो निस्संदेह देश में उपलब्ध विशाल मानव संसाधन और तकनीकी संसाधनों का उचित प्रयोग नहीं हो पायेगा। इस सन्दर्भ में  हरिवंश ने विधायिकाओं के नियमों और प्रक्रियाओं की समीक्षा और आधुनिकीकरण पर भी जोर दिया जिससे वे समय की आवश्यकताओं के अनुसार बदल सकें। पीठासीन अधिकारियों का 80वां अखिल भारतीय सम्मेलन 25 और 26 नवंबर 2020 को केवड़िया में आयोजित किया गया । वैश्विक महामारी कोविड 19 के काल में, राष्ट्रपति, राम नाथ कोविंद पहली बार व्यक्तिगत रूप से किसी कार्यक्रम में शामिल हुए और कल, यानी 25 नवंबर को, सम्मलेन का उद्घाटन किया। भारत के उपराष्ट्रपति, श्री एम वेंकैया नायडू; गुजरात के राज्यपाल, श्री आचार्य देवव्रत; गुजरात के मुख्यमंत्री, श्री विजय रुपाणी; केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री, श्री प्रहलाद जोशी; राज्य सभा के उपसभापति, श्री हरिवंश; केंद्रीय संसदीय कार्य राज्य मंत्री, श्री अर्जुन राम मेघवाल; वरिष्ठ कांग्रेस नेता, श्री अधीर रंजन चौधरी और अन्य विशिष्टजन भी उद्घाटन समारोह में शामिल हुए । पीठासीन अधिकारीयों ने 71 वें संविधान दिवस के अवसर पर विधानमंडलों को और अधिक जवाबदेह बनाने की शपथ ली। इसके अतिरिक्त, सम्मेलन में आए शिष्टमंडल के सभी सदस्यों ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना का भी पाठ किया। 25 नवंबर 2020 को लोकसभा अध्यक्ष, श्री ओम बिरला द्वारा संविधान दिवस के उपलक्ष्य पर एक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया। इस दो दिवसीय प्रदर्शनी को लोक सभा सचिवालय द्वारा आयोजित किया गया था। जिसमें संविधान का विकास, संविधान सभा के वाद-विवाद, मौलिक कर्तव्यों के साथ-साथ पूर्व पीठासीन अधिकारी सम्मेलन से जुड़े अन्य सूचनाएं, एवं चित्र प्रदर्शित किए गए। 2020 को पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के शताब्दी वर्ष के रूप में भी मनाया जा रहा है। सम्मेलन की शुरूआत वर्ष 1921 में हुई थी। केवड़िया सम्मलेन लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाने हेतु नए अनुभवों और विचारों को साझा करने के लिए एक उपयुक्त मंच सिद्ध हुआ है। सम्मेलन में “सशक्त लोकतंत्र हेतु विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका का आदर्श समनव्य“ विषय पर दो दिन गहन चर्चा हुई, जिसमे प्रतिनिधियों ने महत्त्वपूर्ण अनुभव और सुझाव साझा किये। सम्मलेन के बाद एक संकल्प पारित किया गया, जिसमे कहा गया है कि “संविधान ने सदैव जनता को केंद्र में रखा है। राज्य का प्रत्येक अंग किसी न किसी रूप में जनता के प्रति उत्तरदायी है। संविधान की सुरक्षा करने और उसे सुदृढ़ बनाने की साझा ज़िम्मेदारी राज्य के तीनों अंगों की है। यह भी निर्णय लिया गया की उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार की तर्ज पर उत्कृष्ट विधानमंडल पुरस्कार स्थापित किया जाये । दो दिवसीय चर्चा के बाद यह भी महसूस किया गया कि राज्य की विधान मंडलों को वित्तीय अधिकार देने के विषय पर राज्यों से संवाद की नितांत आवश्यकता है। सम्मलेन के दौरान एक प्रस्ताव यह भी पारित किया गया कि राष्ट्रीय सम्मेलनों में लोकतन्त्र के उत्सव का आयोजन किया जाये ताकि विधायी कार्यो के साथ साथ इन सम्मेलनों के माध्यम से जनता को लोकतन्त्र के विभिन्न आयामों से भी अवगत कराया जा सके। इसके अतिरिक्त, “संविधान और मौलिक कर्तव्यों” विषय पर भी एक संकल्प पारित किया गया। इसमें इस बात पर जोर दिया गया है की हम सब अपने अधिकारों का लाभ उठाते हुए अपने कर्तव्यों का भी ईमानदारी से निर्वहन करें ताकि देश के सभी वर्गों का जीवन बदलने में हम अपना योगदान दे सकें। बाद में दिन में, लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने प्रेस से मुलाकात की और उन्हें सम्मेलन के निष्कर्षों के बारे में जानकारी दी।


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