पंचतत्व में विलीन हुआ किसान नेता चौधरी बिहारी सिंह बागी का पार्थिव शरीर

सर्कस के शेर से नाकाम की थी इंदिरा गांधी की जनसभा


नोएडा। किसान नेता चौधरी बिहारी सिंह (बागी) का पार्थिव शरीर सोमवार को पंचतत्व में विलीन हो गया। रविवार को उनका निधन हो गया था। उनके निधन पर राजनीतिक दलों के नेता, सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारी और क्षेत्र के गणमान्य लोगों ने गहरा शोक व्यक्त किया। मूल रूप से दादरी ब्लाक के गांव रूपवास के रहने वाले चौधरी बिहारी सिंह (बागी) नोएडा में अपने पुत्र के साथ रह रहे थे। उनका अंतिम संस्कार रूपवास गांव में किया गया।


चौधरी बिहारी सिंह (बागी) ने छात्र जीवन से अपनी राजनीति की शुरुआत की थी। वर्ष 1962 में उन्होंने सिकंदराबाद स्थित अग्रवाल कॉलेज से छात्र संघ का चुनाव लड़ा था। वर्ष 1967 में उन्होंने दिल्ली में मिल्क कंट्रोल एक्ट को खत्म कराने के लिए स्थानीय लोगों के साथ मिलकर दिल्ली-हावड़ा रेल मार्ग पर ट्रेनों का आवागमन बंद कर दिया था। इस आंदोलन से चौधरी बिहारी सिंह (बागी) को राष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान मिली थी। चौधरी बिहारी सिंह ने वर्ष 1974 में दादरी से विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस से टिकट की दावेदारी की थी, लेकिन मिल्क कंट्रोल एक्ट का विरोध करने के कारण कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया। इसके बाद वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में कूद गए थे। विधानसभा चुनाव में उन्हें चुनाव आयोग की तरफ से शेर का चुनाव चिह्न आवंटित हुआ था। इस चुनाव के दौरान मिहिर भोज कॉलेज में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की चुनावी सभा का आयोजन किया गया था। चौधरी बिहारी सिंह (बागी) गाजियाबाद में चल रहे एक सर्कस से 500 रुपये में एक शेर लेकर चुनावी सभा में पहुंच गए और इस सभा को विफल कर दिया। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1991 में भी विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन वह दोनों बार चुनाव हार गए थे।


उन्होंने जीवन पर्यंत किसानों के लिए संघर्ष किया। भ्रष्टाचार के सख्त विरोधी थे बागी : चौधरी बिहारी सिंह (बागी) क्षेत्र में एक ईमानदार, निडर व जुझारू किसान नेता के रूप में प्रख्यात थे। जहां पर भी गरीब, मजदूर, किसानों के साथ कोई अन्याय होता था, वहा वह न्याय दिलाने के लिए धरने पर बैठ जाते थे। जब तक न्याय नहीं मिलता था, तब तक उनका संघर्ष जारी रहता था। उनके धरने प्रदर्शन के भय से नोएडा, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण और जिला प्रशासन के अफसर भी कांपते थे। उनकी राजनीतिक दृढ़ता इस कदर थी कि वह अपने नजदीकी लोगों का भी भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करते थे। उन्होंने कई लोगों को भ्रष्टाचार करने पर सार्वजनिक मंचों से खुली फटकार भी लगाई थी।


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