एमएसपी जारी रहेगी, किसानों के जीवन में  क्रांतिकारी बदलाव आएगा- कृषि मंत्री श्री तोमर

किसानों को मनचाही कीमत पर कहीं भी फसल बेचने की स्वतंत्रता


नई दिल्ली। देश के कृषि क्षेत्र में अब आमूलचूल बदलाव आएगा। लोक सभा के बाद रविवार को राज्य सभा में भी कृषि संबंधित दोनों महत्वपूर्ण विधेयक पारित हो गए हैं, जिनसे यह संभव होगा। ये हैं- “कृषक उपज व्‍यापार व वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020’’ तथा “कृषक (सशक्‍तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्‍वासन व कृषि सेवा पर करार विधेयक,2020’’। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि ये दोनों विधेयक ऐतिहासिक है और किसानों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले हैं। इनके माध्यम से किसान को अपनी फसल किसी भी स्थान से किसी भी स्थान पर, मनचाही कीमत पर बेचने की स्वतंत्रता होगी। किसान को महंगी फसलें पैदावार करने का अवसर मिलेगा और विधेयक इस बात का भी प्रावधान करता हैं कि बुवाई के समय ही जो करार होगा, उसमें कीमत का आश्वासन किसान को मिल जाएगा। किसान की संरक्षा हो सकें, किसान की भूमि के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ न हों, इसका प्रावधान भी विधेयक में किया गया है। 


केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने कृषि उपज के व्यापार से संबधित विषय पर कहा कि देश का किसान, देश का सबसे बड़ा उत्पादनकर्ता होने के बावजूद उसे अपनी उपज मनचाही कीमत, मनचाहे स्थान व मनचाहे व्यक्ति को बेचने की स्वतंत्रता नहीं थी। एक लंबे कालखंड से कृषि के क्षेत्र में विचार करने वाले चिंतक, वैज्ञानिक और हमारे नेतागण लगातार इस बात की ओर संकेत करते रहे कि एपीएमसी किसानों के साथ न्याय नहीं कर पा रही हैं, इसकी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता नहीं है और किसान को एपीएमसी के अलावा कोई दूसरा विकल्प भी होना चाहिए। अब विधेयक के माध्यम से वैकल्पिक व्यवस्था हो रही है। इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, किसान को उसके उत्पादन का उचित मूल्य मिलेगा। जो फसल बेची जाएगी, उसका किसान को 3 दिन में भुगतान हो, यह भी प्रावधान भी विधेयक में है। राज्यों के एपीएमसी एक्ट व मंडियां भी यथावत रहेगी।


श्री तोमर ने कहा कि इन विधेयकों के मामले में अनेक प्रकार की धारणाएं बनाई जा रही हैं, उन्होंने सदन को विश्वास दिलाया कि ये विधेयक एमएसपी से संबंधित नहीं है, एमएसपी सरकार का प्रशासनिक निर्णय है। श्री तोमर ने लोक सभा के बाद राज्य सभा में भी कहा कि एमएसपी थी, है और आने वाले समय में भी जारी रहेगी। प्रधानमंत्री जी ने भी यह बात कही हैं। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने भी इस तरह के रिफार्म लाने की राय अनेक अवसरों पर व्यक्त की थी। श्री तोमर ने कहा कि इन विधेयकों के माध्यम से किसानों के जीवन अभूतपूर्व बदलाव आएगा।


श्री तोमर ने कहा कि मुझे लगता था कि राज्यसभा में ऐसे सुझाव आएंगे, जिन पर विचार करना सरकार की बाध्यता होगी, लेकिन सरकार के लिए आसान है किसी भी राजनीतिक भाषण पर जवाब देना। यहां मित्रों ने राजनीतिक बातें ही कही है। विधेयक के विरोध में भी उनके पास कुछ नहीं है क्योंकि कांग्रेस के मेनिफेस्टो में भी ये सुधार शामिल थे। उन्होंने कहा कि आमतौर पर खेती का क्षेत्र विस्तृत है। देश की बड़ी आबादी कृषि क्षेत्र में काम करती है। कोविड के दौरान सभी काम बंद हुए लेकिन देश में किसानों ने खेती के क्षेत्र को जीवंत रखा। खेती का जीडीपी प्रभावित नहीं हुआ, जिसके लिए उन्होंने देशभर के किसानों को बधाई देते हुए उनका अभिनंदन किया। 


श्री तोमर ने कहा कि वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा कामकाज संभालने के बाद से उनकी घोषणानुसार किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार ने पूरे प्रयत्न कर रही हैं। राज्य सरकारों व किसानों के सहयोग से केंद्र सरकार अनेक योजनाएं और कार्यक्रम चला रही है। सरकार ने 6 वर्ष में इसके लिए सिलसिलेवार कई कार्य किए हैं। एमएसपी के विषय में श्री तोमर ने कहा कि लोकसभा में भी मैंने कहा था और प्रधानमंत्री जी ने भी देश को भी आश्वस्त किया है कि एमएसपी का इस बिल से कोई संबंध नहीं है। एमएसपी पर खरीद होती थी और होती रहेगी, इसमें शंका की जरूरत नहीं हे। श्री स्वामीनाथन ने काफी अध्ययन के बाद कृषि सुधारों के लिए सिफारिशें की थी, जिनमें किसानों की लागत में 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर एमएसपी लागू करने की बात भी कही थी, जिस पर यूपीए सरकार ने तो अमल में नहीं किया, मोदी सरकार ने अवश्य इन सिफारिशों को माना है, तो अब इस पर प्रश्न नहीं होना चाहिए। सरकार किसानों की आय बढ़ाने के अपने संकल्प को साकार करने में क्रियाशील है। 


श्री तोमर ने बताया कि प्रधानमंत्री जी के किसान हितैषी निर्णयों के परिणामस्वरूप छह साल में कृषि क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। राज्यों में वर्ष 2009-14 अवधि में मात्र 89.79 LMT धान खरीदा गया था, जबकि वर्ष 2014-21 के कालखंड में आंध्र में 311.92 LMT व तेलंगाना 319.96 LMT, दोनों राज्य मिलाकर ही 631.88 LMT धान खरीदा गया, जो सात गुना ज्यादा है। इस प्रकार राज्य सरकारों से मिलकर Cooperative Federalism निभाते हुए किसान हित में केंद्र सरकार लगातार काम कर रही है। 


 केंद्रीय मंत्री ने बताया कि वर्ष 2009 से 2014 के दौरान एमएसपी पर दलहन, तिलहन व खोपरा की खरीद 7.24 एलएमटी थी, जबकि वर्ष 2014 से 2020 (रबी-2020 तक) में यह 170.70 एलएमटी है, जो 23.60 गुना अधिक है। वर्ष 2009-2013 के दौरान पीएसएस के तहत खरीदे दलहनों व तिलहनों का एमएसपी मूल्य 3,10,480 करोड़ रू. था, जबकि वर्ष 2014 से 2020 के दौरान किसानों को भुगतान किया गया एमएसपी मूल्य 74,81,071 करोड़ रू. था। वर्ष 2009-14 की तुलना में, पिछले पांच वर्षों के दौरान धान के लिए किसानों को MSP भुगतान में 2.4 गुना की वृद्धि हुई। गत 5 साल में 2.06 लाख करोड़ रू. के मुकाबले 4.95 लाख करोड़ रू. MSP का भुगतान किया गया। वर्ष 2009-14 की तुलना में, पिछले पांच वर्षों के दौरान गेहूं के लिए किसानों को MSP भुगतान में 1.77 गुना वृद्धि हुई है। गत 5 साल में 1.68 लाख करोड़ रू. के मुकाबले 2.97 लाख करोड़ रू. MSP का पेमेंट किया गया। वर्ष 2009-14 की तुलना में, पिछले पांच साल में दलहन के लिए किसानों को MSP भुगतान 75 गुना बढ़ा है। गत 5 साल में, 645 करोड़ रू. के मुकाबले, 49,000 करोड़ रू. MSP का भुगतान हुआ। इसी तरह वर्ष 2009-14 की तुलना में, पिछले पांच वर्षों के दौरान तिलहनों व कोपरा के किसानों के लिए MSP भुगतान 10 गुना बढ़ा है। पिछले 5 साल में, 2460 करोड़ रू. के मुकाबले 25,000 करोड़ रू. MSP भुगतान किया गया।


श्री तोमर ने बताया कि केंद्र सरकार किसानों के हित में लगातार कार्य कर रही है। इस साल रबी-2020 में गेहूं, धान, दलहन और तिलहन को मिलाकर किसानों को 1 लाख 13 हज़ार करोड़ रू. MSP के रूप में भुगतान किया गया। यह राशि पिछले साल की तुलना में 31% ज्यादा है, पिछले साल 86.8 हज़ार करोड़ रू. भुगतान हुआ था। श्री तोमर ने बताया कि प्रधानमंत्री जी ने देशभर में दस हजार एफपीओ बनाने की शुरूआत की है, इससे भी किसानों को लाभ होना प्रारंभ हुआ है। यह भी पहली बार हुआ है कि एक लाख करोड़ रू. का पैकेज कृषि अधोसंरचना के लिए पीएम ने दिया है।


कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020


मुख्य प्रावधान- 


- किसानों को उनकी उपज के विक्रय की स्वतंत्रता प्रदान करते हुए ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना जहां किसान एवं व्यापारी कृषि उपज मंडी के बाहर भी अन्य माध्यम से भी उत्पादों का सरलतापूर्वक व्यापार कर सकें।


- राज्य के भीतर एवं बाहर देश के किसी भी स्थान पर किसानों को अपनी उपज निर्बाध रूप से बेंचने के लिए अवसर एवं व्यवस्थाएं प्रदान करना।


- मंडिया समाप्त नहीं होंगी, वहां पूर्ववत व्यापार होता रहेगा। इस व्यवस्था में किसानों को मंडी के साथ ही अन्य स्थानों पर अपनी उपज बेचने का विकल्प प्राप्त होगा।


- परिवहन लागत एवं कर में कमी लाकर किसानों को उत्पाद की अधिक कीमत दिलाना


- ई-ट्रेडिंग के माध्यम से किसानों को उपज विक्रय के लिए ज्यादा सुविधाजनक तंत्र उपलब्ध कराना। 


- मंडियों के अतिरिक्त व्यापार क्षेत्र में फार्मगेट, कोल्ड स्टोरेज, वेयर हाउस, प्रसंस्करण यूनिटों पर भी व्यापार की स्वतंत्रता।


- किसानों के साथ प्रोसेसर्स, निर्यातकों, संगठित रिटेलरों का सीधा एकीकरण, ताकि बिचौलिये कम हों ।


- इलेक्ट्रानिक प्लेटफार्मो पर कृषि उत्पादों का व्यापार बढेगा। पारदर्शिता के साथ समय की बचत होगी।


कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020


मुख्य प्रावधान- 


-कृषकों को व्यापारियों, कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयों, निर्यातकों से सीधे जोड़ना। कृषि करार के माध्यम से बुवाई से पूर्व ही किसान को उसकी उपज के दाम निर्धारित करना। बुवाई से पूर्व किसान को मूल्य का आश्वासन। दाम बढ़ने पर न्यूनतम मूल्य के साथ अतिरिक्त लाभ। 


- बाजार की अनिश्चितता से कृषकों को बचाना। मूल्य पूर्व में ही तय हो जाने से बाजार में कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव का प्रतिकूल प्रभाव किसान पर नहीं पड़ेगा।


- किसानो तक अत्याधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी, कृषि उपकरण एवं उन्नत खाद-बीज पहुंचाना।


- विपणन की लागत कम करके किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित करना। 


- किसी भी विवाद की स्थिति में उसका निपटारा 30 दिवस में स्थानीय स्तर पर करना। 


- कृषि क्षेत्र में शोध एवं नई तकनीकी को बढ़ावा देना। 


- किसान को अनुंबध में पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी, वह अपनी इच्छा के अनुरूप दाम तय कर उपज बेचेगा । उन्हें अधिक से अधिक 3 दिन के भीतर भुगतान प्राप्त होगा। 


- अनुबंध के बाद किसान को व्यापारियों के चक्कर काटने की आवश्यक्ता नहीं होगी। खरीदार/ उपभोक्ता उसके खेत से ही उपज लेकर जा सकेगा। 


- विवाद की स्थिति में कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने की आवश्यक्ता नहीं होगी। स्थानीय स्तर पर ही विवाद के निपटाने की व्यवस्था रहेगी। 


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