एक बहुत बड़ी उपलब्धि, भारतीय वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के सीक्वेंस का ऑनलाइन अनुमान लगाने के लिए वेब-आधारित कोविड प्रिडिक्टर तैयार किया

नई दिल्ली 


भारत में वैज्ञानिकों का एक समूह देश और पूरे विश्व में सार्स-कोव-2 के जीन संबंधी अनुक्रमों (जीनोमिक सीक्वेंसेज) पर काम कर रहा है, ताकि जीन संबंधी परिवर्तनीयता (वेरीएबिलिटी) और वायरस व इंसानों में संभावित मॉलिक्यूलर टारगेट्स की पहचान करके कोविड-19 वायरस को रोकने के सबसे अच्छे उपाय को खोजा जा सके।


नोवेल कोरोना वायरस चुनौती की जड़ में जाने और इसे अलग-अलग दिशाओं से देखने के लिए कोलकाता स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्निकल टीचर्स ट्रेनिंग एंड रिसर्च के कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. इंद्रजीत साहा और उनकी टीम ने एक वेब-आधारित कोविड-भविष्यदर्शी (प्रिडिक्टर) बनाया है। इसके जरिए मशीन लर्निंग के आधार पर वायरसों के अनुक्रमों (सीक्वेंसेज) का ऑनलाइन अनुमान करने और प्वाइंट म्यूटेशन और सिंगल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमार्फिज्म (एसएनपी) के संदर्भ में जीन संबंधी परिवर्तनीयता का पता लगाने के लिए 566 भारतीय सार्स-कोव-2 जीनोम्स का विश्लेषण करने का लक्ष्य है।


इस अध्ययन को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) का वैधानिक निकाय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) प्रायोजित कर रहा है। यह अध्ययन इन्फेक्शन, जेनेटिक्स और इवोल्यूशन नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है। उन्होंने प्रमुख तौर पर यह पाया है कि भारतीय सार्स-कोव-2 जीनोम्स के 6 कोडिंग क्षेत्रों में 64 एसएनपी में से 57 एसएनपी मौजूद हैं और सभी अपने स्वभाव में एक-दूसरे से अलग हैं।


उन्होंने इस शोध को भारत समेत पूरे विश्व में 10 हजार से ज्यादा अनुक्रमों (सीक्वेंसेज) के लिए विस्तार दिया। इससे भारत समेत पूरे विश्व में 20,260, भारत को छोड़कर पूरे विश्व में 18,997 और सिर्फ भारत में 3,514 अद्वितीय उत्परिवर्तन बिंदुओं (यूनिक म्यूटेशन प्वाइंट्स) का पता चला है।


भारत सहित विश्व भर के वैज्ञानिक सार्स-कोव-2 जीनोमों में जीन संबंधी परिवर्तनीयता (जेनेटिक वेरीएबिलिटी) की पहचान करने, एकल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमोर्फिज्म (एसएनपी) का उपयोग करके वायरस प्रजातियों (स्ट्रेंस) की संख्या का पता लगाने और प्रोटीन-प्रोटीन इंटरैक्शंस के आधार पर वायरस और संक्रमित इंसानों में संभावित टारगेट प्रोटीन्स (लक्षित प्रोटीन) का पता लगाने के रास्ते पर हैं। वे लोग जीन संबंधी परिवर्तनीयता (जेनेटिक वेरीएबिलिटी) की जानकारी को एकीकृत करने, संरक्षित जीनोमिक क्षेत्रों, जो अत्यधिक इम्युनोजेनिक (प्रतिरक्षाजनी) और एंटीजेनिक हैं, के आधार पर सिंथेटिक वैक्सीन के तत्वों को पहचान करने और वायरस के एमआईआरएनए (माइक्रो आरएनए), जो इंसानों के एमआरएनए को रेगुलेट करने में भी शामिल रहता है, को खोजने का काम कर रहे हैं।


उन्होंने विभिन्न देशों के जीनोम अनुक्रमों में उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) में समानता का आकलन किया है। इसके परिणाम बताते हैं कि 72 देशों के उत्परिवर्तन समानता अंक में यूएसए, इंग्लैंड और भारत क्रमश: 3.27%, 3.59% और 5.39% ज्यामितीय औसत (जियोमेट्रिक मीन) के साथ शीर्ष के तीन देश हैं। वैज्ञानिकों ने वैश्विक और देशों के स्तर पर सार्स-कोव-2 जीनोम में उत्परिवर्तन बिंदुओं (म्यूटेशन प्वाइंट्स) का पता लगाने के लिए एक वेब एप्लिकेशन भी विकसित किया है। इसके अलावा वे लोग अब प्रोटीन-प्रोटीन इंटरैक्शन, एपिटोप्स की खोज और वायरस एमआई आरएनए का अनुमान करने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं।


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