कर्फ्यू जैसे लॉकडाउन की जरूरत : विश्वधारा श्रीवास्तव

महामारी को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन के बाबत महिलाओं का नजरिया


कोरोना अब अपने परिचय का मोहताज नहीं है। हर कोई उसके नाम से ही खौफजदा है। इस वायरस के संक्रमण ने वैश्विक आपदा का रूप ले लिया है। भारत में इसके संक्रमण से तीन लाख से अधिक लोग पीड़ित हैं। इस महामारी से निबटने के लिए देश में लॉकडाउन किया गया था। लॉकडाउन कितना जरूरी था, उसका कितना लाभ मिला, उस दौरान घरों में रहने वाली महिलाओं की स्थिति क्या थी। जाने महिलााओं के विचार.....


ग्रेटर नोएडा वेस्ट के लॉ रेसिडेंसिया सोयायटी निवासी गृहणी विश्वधारा श्रीवास्तव कहती हैं कि लॉकडाउन-1 के बाद सभी लॉकडाउन बेकार रहे। लॉकडाउन-2, 3 और 4 के दौरान तो लगा ही नहीं कि जनता पर किसी तरह की कोई पाबंदी है। उसी लापरवाही का नतीजा है कि आज देश में संक्रमित लोगों की संख्या लाखों में पहुंच गई। वह कहती हैं कि लॉकडाउन में अच्छा और बुरा, दोनों ही तरह का अनुभव हुआ। अच्छा रहा कि परिवार के साथ समय गुजरा। सुबह उठकर बच्चे का टिफिन बनाने और उसे स्कूल भेजने से मुक्ति थी। परिवार पूरे समय तक साथ रहा, इसलिए हर रोज पिकनिक जैसा माहौल रहा। लॉकडाउन के बुरे अनुभव के बाबत विश्वधारा श्रीवास्तव कहती हैं कि आउटिंग न होने से कभी-कभी मन ऊब जाता है। डिप्रेशन जैसा फील होता है। लेकिन, वह यह भी मानती हैं कि सुरक्षा ही संक्रमण से बचाव का श्रेष्ठ और कारगर उपाय है। उनका कहना है कि कोरोना के वैश्विक महामारी से निपटने के देश को सख्त लॉकडाउन की जरूरत है। लॉकडाउन बिल्कुल कर्फ्यू जैसा होगा, तभी हम वायरस संक्रमण के चेन को तोड़ने में सफल होंगे। 


लॉकडाउन ही एकमात्र विकल्प था : श्वेता भारती


सामाजिक कार्यकर्ता श्वेता भारती कहती हैं, वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने के लिए लॉकडाउन ही एकमात्र विकल्प था। हालांकि अचानक लॉकडाउन की घोषणा से कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन संक्रमण की रफ्तार को कम करने के लिए ये जरूरी था कि हम घर में ही रहें और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वह कहती हैं कि लॉकडाउन के दौरान महामारी की खबरें मन को विचलित कर रही थीं, लेकिन उससे हमें बहुत कुछ सीखने को मिला। साफ-सफाई पर आम दिनों के मुकाले ज्यादा ध्यान देना शुरू किया। दोस्तों व रिश्तेदारों से भले मिल पाना संभव नहीं हुआ, लेकिन उनकी कमी खलती रही। यूं कहिये, लॉकडाउन के दौरान रिश्तों की अहमियत बढ़ गई। लॉकडाउन से पर्यावरण पर भी काफी अच्छा असर हुआ। लॉकडाउन के दौरान समय की पर्याप्त उपलब्धता के कारण थोड़ी बहुत पेंटिंग, फोटोग्राफी और लेखन वगैरह का भी मौका मिला। कुछ अधूरे प्रोजेक्ट भी पूरे करने का भरपूर समय मिला।


श्वेता भारती का कहना है कि लॉकडाउन के फैसले को सिरे से नकारा नहीं जा सकता। निश्चित रूप से वह बेहद अहम कदम था, परंतु भारत जैसे देश में जहां 90 प्रतिशत आबादी निम्न और मध्यम वर्गीय लोगों की हैं, वहां लंबे समय तक लॉकडाउन ने सभी की कमर तोड़कर रख दी। काम छूट जाने के बाद प्रवासी मजदूरों की पैदल घर वापसी और भूख से बेहाल उनके बच्चों की सोशल मीडिया और न्यूज चैनल्स पर दिखाई ए जा रही तस्वीरों ने मन को झकझोर कर रख दिया। लंबे समय तक लॉकडाउन को जारी रखना आमजनों की जरूरतों, उनकी वित्तीय स्थिति व देश की अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से सरकार के लिए संभव नहीं था। इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना से निपटने की तैयारी व लॉकडाउन के पालन में कई कमियां सरकार व प्रशासन के तरफ से रहीं। वह कहती हैं कि देश में कोरोना संक्रमण की स्थिति दिन-प्रतिदिन भयावह होती जा रही है। ऐसे में विशेष ऐहतियात जरूरी है। 


लॉकडाउन, न देखा था और सुना था : अनिता प्रजापति


गौड़ सिटी-एक निवासी समाजसेवी अनिता प्रजापति का कहना है कि लॉकडाउन जैसा कुछ भी देखना पड़ेगा, जीवन में न कभी सोचा था और न ही सुना था। हां, शुरू में सब कुछ अचानक बंद होने से कुछ दिन एडजेस्ट करने में लग गया। कोरोना वायरस का संक्रमण ही ऐसा है कि हमें अपने को सुरक्षित रखने के लिए घर में ही रहना होगा। 


वह कहती हैं कि लॉकडाउन के दौरान घरों में काम बढ़ गया। बच्चों की पढ़ाई की भी जिम्मेदारी बढ़ गई। लेकिन, कुछ अच्छा भी रहा। परिवार के साथ जितना समय बिताने को मिला, उतना कभी नहीं मिला। लॉकडाउन-3 तक तो अच्छा चल रहा था, लेकिन जैसे ही सरकार ने थोड़ी छूट दी, लोगों ने लॉकडाउन के नियमों का पालन करना छोड़ दिया। कुछ लोग तो ऐसे घूमते रहे, जैसे सब ठीक है या उन्हें ये बीमारी नहीं होगी। उनका सुझाव है कि बड़े पैमाने पर लोगों के जमा न होने के फैसले को ऐसे ही कायम रखा जाए। दुकानें, ऑड-इवन के साथ निर्धारित समय तक ही खुलें तो संक्रमण से सुरक्षा संभव हो पाएगा।


लॉकडाउन में पैदा हुई रोजी-रोटी की विकराल समस्या : रश्मि पाण्डेय


समाजसेवी रश्मि पाण्डेय का कहना है कि लॉकडाउन हमेशा नहीं रह सकता। लॉकडाउन के दौरान संक्रमण इतने व्यापक रूप से भारत में नहीं फैला था, जिनता अब फैल रहा है। वह कहती हैं कि लॉकडाउन में बहुत सी समस्यायें आयीं। लोगों के कारोबार बंद हो गए। कामकाज ठप हो गए। लोगों के सामने पेट भरने की विकराल समस्या पैदा हो गई। रोजी-रोटी के अभाव में दिहाड़ी मजदूरों को पलायन करना पड़ा। लॉकडाउन में पुलिस का नया अवतार देखने को मिला। उसकी लोगों ने बहुत सराहना की। सरकारी एजेंसियों के साथ ही कई समाजसेवी संस्थाओं ने हालांकि लोगों के भोजन की व्यवस्था की, लेकिन वह शायद पर्याप्त नहीं थी। कई सस्थाओं ने तो बेजुबान पशु-पक्षियों के भी खाने-पीने का इंतजाम किया। 


रश्मि पाण्डेय कहती हैं कि कोरोना इस समय कम्युनिटी संक्रमण के स्तर पर है। विश्व में हम चौथे नम्बर पर हैं। संक्रमण लगातार अपना दायरा बढ़ा रहा है। लॉकडाउन खुलते ही लोग कोविड को लेकर सीरियस नहीं दिख रहे हैं। लोग बिना मास्क के इधर उधर घूम रहे हैं। बच्चे पार्क में खेल रहे हैं और बुजुर्ग बिना मास्क के सोसायटी में घूमते दिख जाते हैं। यह सही नहीं है। उनका कहना है कि जब बचाव ही समाधान है, तो हमें अधिकतम एहतियात बरतना चाहिए, जिससे हम खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित कर सकें। वह कहती हैं कि इस सक्रमित लोगों की हौसला अफजाई ही सबसे कारगर दवा है।


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